क्या है डबल्यूएचओ का कहना?
डब्ल्यूएचओ का मानना है कि इस तरह का नया ओरल ट्रीटमेंट ज्यादा प्रभावी और मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के मरीजों में कम साइड इफेक्ट पैदा करता है। पुराने इलाज के तरीकों की वजह से पागलपन के दौरे, हाइपोथायरॉइड, मिरगी आदि की समस्याएं उत्पन्न होती थीं, जिससे एमडीआर-टीबी का इलाज बेहद मुश्किल हो जाता था। इसके अलावा डबल्यूएचओ ने बैकअप ट्रीटमेंट, दवाईयों के असर पर लगातार निगरानी और मरीजों को काउंसलर जैसी सुविधाएं देने पर जोर डाला है, जिससे वे अपना ट्रीटमेंट पूरा कर सकें।
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टीबी की वजह से होने वाली मौतें कम हुईं
सन 2000 के बाद से टीबी जैसी बीमारी से विश्वभर में 5.4 करोड़ लोगों को बचाया जा चुका है। इस वजह से टीबी से होने वाली मौतों का आंकड़ा एक तिहाई तक गिरा है। इसके बावजूद हर साल विश्व में 1 करोड़ लोग टीबी का शिकार बनते हैं, जिनमें से ज्यादातर को सही इलाज नहीं मिल पाता। वर्तमान में टीबी दुनिया की सबसे बड़ी संक्रामक बीमारी है जो हर दिन 4500 लोगों की मौत का कारण बनती है। हर साल करीब 15 लाख लोग इसकी वजह से अपनी जान गंवा देते हैं। इसका सबसे ज्यादा खतरा उन जगहों पर हैं जहां जीवन जीने की मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है।
यह नई गाइडलाइन 2018 में यूएन में हुई उस वैश्विक बैठक से निकलकर आई जिसमें दुनियाभर में टीबी से निपटने और हर टीबी रोगी तक इलाज पहुंचाने का वादा किया गया था। इसी कड़ी में कुछ और गाइडलाइन बनाई गईं, जिससे दुनिया के सभी देश इस जानलेवा बीमारी को प्रभावी तरीके से खत्म करें। इस गाइडलाइन के तहत निम्नलिखित प्रक्रिया की जाएंगी-
– टीबी से संबंधित सभी संस्थानों के काम की निगरानी और उनके काम की समीक्षा प्रणाली बनाना।
– टीबी की बीमारी के आंकड़े ऑनलाइन और रियलटाइम जुटाना, जिससे देश अपने क्षेत्र की स्थिति पर डैशबोर्ड के जरिए निगरानी रख पाएं।