शिशु की स्कल यानी खोपड़ी जन्म से शुरुआती चार महीनों की उम्र तक बेहद सॉफ्ट और मोल्डेबल होती है। इस दौरान शिशु की स्कल की शेप सही रहे, इसके लिए पेरेंट्स कई तरीके अपनाते हैं। जैसे एक ही पोजीशन में उसे न सोने देना, खास तकिये का इस्तेमाल आदि। क्योंकि, ऐसा न करने से शिशु फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) का शिकार हो सकता है। अगर आपने इस सिंड्रोम के बारे में नहीं सुना है, तो कोई बात नहीं। इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको जानकारी देने वाले हैं फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) के बार में। आइए, जानें क्या है यह समस्या और किस तरह से संभव है इसका उपचार?
फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) क्या है?
फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) को प्लेजियोसेफली (Plagiocephaly) के नाम से भी जाना जाता है। यह समस्या तब होती है, जब शिशु के सिर के पीछे या साइड में फ्लैट स्पॉट डेवेलप हो जाता है। इसके कारण शिशु का सिर असमिट्रिक लगता है। जैसा कि पहले ही बताया गया है कि जन्म के पहले कुछ महीनों तक शिशु के स्कल बोन्स सॉफ्ट होती है और पूरी तरह से हार्ड नहीं हुई होती। सॉफ्ट और लचीली बोन्स बर्थ कैनाल के माध्यम से इजियर पैसेज की अनुमति देती है और बच्चे के ब्रेन को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह देती हैं। सॉफ्ट बोन्स का यह अर्थ भी है कि शिशु के सिर का आकार बदल सकता है। फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) का एक सामान्य कारण नियमित रूप से एक ही स्थिति में सोना या लेटना है। अब जानते हैं इस समस्या के लक्षणों के बारे में।
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फ्लैट हेड सिंड्रोम के क्या हैं लक्षण? (Symptoms of Flat Head Syndrome)
इस सिड्रोम के लक्षणों को सामने आने में कई महीने लग सकते हैं। आप अपने बच्चे में इस समस्या को आप उस दौरान भी चेक कर सकते हैं, जब आप उन्हें नहला रहे हों और उनके बाल गीले हों। क्योंकि, इस दौरान शिशु के सिर की शेप अधिक विजिबल होगी। इसके अन्य लक्षण इस प्रकार हैं:
- सिर के साइड या बैक पर फ्लैट एरिया। इसमें राउंड की जगह शिशु का सिर किसी खास एरिया से तिरछा दिखाई देता है।
- ऐसे बच्चों के कान भी इवन नहीं होते हैं। सिर का एक चपटा होना कानों के दिखने में समस्या का कारण बन सकता है।
- सिर के किसी हिस्से पर बाल्ड स्पॉट होना।
- हेड पर सॉफ्ट स्पॉट की कमी
इसके अलावा भी इस समस्या के कई अन्य लक्षण हो सकते हैं। अब जानते हैं कि क्या हैं इस रोग के कारण?
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फ्लैट हेड सिंड्रोम के कारण (Cause of Flat Head Syndrome)
शिशु की स्कल सॉफ्ट और मोल्डेबल होती है और नवजात शिशु दिन में कई घंटों तक अपनी पीठ के बल सोता है। सोते हुए वो लगातार अपना सिर एक तरफ घुमा सकता। लेकिन, अगर आपका शिशु सोते हुए बार-बार सिर घुमाता है, तो सिर का वह भाग सरफेस पर बार-बार रेस्ट करता है। इस तरह से नियमित दबाव बच्चे के नरम सिर के उस हिस्से को समतल कर सकता है। यह सिंड्रोम अक्सर शिशु के सिर की एक तरफ होता है लेकिन यह दोनों तरफ या पीठ में भी हो सकती है। जितनी देर तक शिशु के सिर का एक हिस्सा सरफेस पर फ्लैट रहता और, उतना ही अधिक फ्लैट होता जाता है।
प्रीमैच्योर शिशुओं को फ्लैट सिर होने की समस्या अधिक होती है क्योंकि उनकी स्कल कम डेवलप्ड होती हैं। कुछ बच्चों को मस्कुलर टॉर्टिकलीस (Torticollis) की समस्या होती है, जो टाइट नैक मसल्स से जुडी समस्या है। अगर किसी बच्चे को यह रोग है तो भी उसे फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) की संभावना हो सकती है। अब जानते हैं इस सिंड्रोम के निदान के बारे में।
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फ्लैट हेड सिंड्रोम का निदान कैसे है संभव? (Diagnosis of Flat Head Syndrome)
फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) यानी प्लेजियोसेफली (Plagiocephaly) का निदान स्कल को देखकर किया जा सकता है। डॉक्टर सबसे पहले शिशु में इस समस्या का निदान शिशु के स्कल को ऑब्जर्व कर के कर सकते हैं। कोई भी टेस्ट इस सिंड्रोम को कंफर्म नहीं करता है। इस समस्या के कारण शिशु की अपीयरेंस में बदलाव आ सकता है। इससे फ्लैट स्पॉट पर कम हेयर की समस्या भी हो सकती है। इस रोगी का उपचार बच्चे की स्थिति की गंभीरता और कारण पर निर्भर करता है। अब जानते हैं इसके उपचार के तरीकों के बारे में।
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फ्लैट हेड सिंड्रोम का उपचार (Treatment for Flat Head Syndrome)
फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) का उपचार कई तरीकों से संभव है। डॉक्टर शिशु में इसके निदान के बाद उपचार के सही तरीकों को निर्धारित करेंगे। अब जानते हैं क्या हैं यह तरीके:
काउंटर-पोजीशन थेरेपी (Counter-position therapy)
हालांकि, सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम (Sudden infant death syndrome) यानी एसआईडीएस के जोखिम को कम करने के लिए बच्चे को हमेशा उनकी पीठ के बल सुलाने की सलाह दी जाती है। लेकिन, उनकी स्थिति बदलने के प्रति सावधान रहें। उदाहरण के लिए, यदि आपका बच्चा अपने बाएं गाल की साइड सोना पसंद करता है, तो उसके सिर को इस तरह रखें कि वह अपने दाहिने गाल के बल भी सोए और एक ही तरफ अधिक दबाव न पड़े।
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व्यायाम (Exercises)
अगर आपके बच्चे को मस्कुलर टॉर्टिकलीस(torticollis) की समस्या है, तो डॉक्टर उनके लिए स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज के लिए कह सकते हैं। ताकि, उनके गले के मोशन की रेंज को बढ़ाया जा सके। लेकिन, डॉक्टर की एप्रूव्ड के बिना नैक-स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज को ट्राय न करें।
मोल्डिंग हेलमेट थेरिपी (Molding helmet therapy)
मोल्डिंग हेलमेट थेरिपी में शिशु के लिए ऐसे कस्टम-मॉडल्ड हेलमेट या बैंड आदि का इस्तेमाल शामिल है। ताकि, शिशु की स्कल को सयंमेट्रिकल शेप मिल सके। इसके इस्तेमाल की सही उम्र जन्म के बाद 3 से 6 महीने की है। इसके इस्तेमाल से स्कल को रीशेप में आने में बारह हफ्ते लग सकते हैं। मोल्डिंग हेलमेट थेरिपी की जरूरत उन बच्चों को पड़ती है, जो फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) यानी प्लेजियोसेफली (Plagiocephaly) के मॉडरेट से गंभीर मामले से पीड़ित होते हैं। मोल्डिंग हेलमेट के इस्तेमाल से पहले डॉक्टर की सलाह आवश्यक है।
सर्जरी (Surgery)
हालांकि, इस समस्या में अधिकतर मामलों में सर्जरी की जरूरत नहीं होती है। इसकी जरूरत तब होती है जब सिट्रस (Sutures) क्लोज हों और स्कल के प्रेशर को रिलीज करना हो। अब जानते हैं इससे बचाव के तरीकों के बारे में।
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फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) से बच्चों को कैसे बचाएं?
फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) यानी प्लेजियोसेफली (Plagiocephaly) के सभी मामलों से बचाव संभव है। लेकिन, कुछ तरीकों से इसकी संभावना को कम किया जा सकता है, जैसे:
- शिशु की स्लीप पोजीशन को बदलते रहें।
- अपने बच्चे को सुपरवाइज्ड टम्मी टाइम दें। जैसे ही आप अपने बच्चे को अस्पताल से घर ले आती हैं या जन्म के कुछ दिनों के भीतर, शुरुआत में दिन में दो से तीन बार इस सेशन को तीन से पांच मिनट के लिए करें।
- अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से बात करें।
- अगर आप कर सकते हैं तो अपने बच्चे को पालने, कार की सीट या बच्चे के झूले में रखने के बजाय सीधा पकड़ें।
- बच्चे की फीडिंग पोजीशन को बदलते रहें।
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यह तो थी फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) के बारे में जानकारी। यह सिंड्रोम शिशुओं में सामान्य है। हालांकि यह अस्थायी रूप से यह मिसहेपन हेड और कानों व आंखों के संभावित मिसअलाइनमेंट का कारण बन सकता है। इसके प्रभाव आमतौर पर हल्के होते हैं और एक उम्र के बाद यह खुद ही ठीक हो जाते हैं। यह समस्या बच्चों की ब्रेन डेवलपमेंट को प्रभावित नहीं करती है और इसके अधिकतर मामलों में बिना मेडिकल केयर के यह समस्या खुद ही ठीक हो जाती है। अगर आपके मन में इस बारे में कोई भी सवाल है तो अपने डॉक्टर से इसे अवश्य जानें।
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