बच्चों में गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज का इलाज सही समय पर होना आवश्यक है। आपके बच्चे में एसिड रिफ्लक्स के इलाज के विकल्प उनकी उम्र और समस्या की गंभीरता पर निर्भर करता है। जीवनशैली में बदलाव और घर की देखभाल कभी-कभी अच्छी तरह से काम कर सकती है। लेकिन अपने बच्चे के डॉक्टर को हमेशा जानकारी में रखें।
और पढ़ें : पेट की एसिडिटी को कम करने वाली इस दवा से हो सकता है कैंसर
इस बारे में दिल्ली के जनलर फीजिश्यन डॉक्टर अशोक रामपाल का कहना है कि हाइटल हर्निया की समस्या भी आजकल लोगों में ज्यादा देखने को मिल रही है। हाइटल हर्निया में हमारे पेट का कुछ हिस्सा फैल कर सीने के नीचे चले जाता है। इसमें होने वाला एक छोटा से छेद (आमाशय के ऊपर मौजूद छिद्र) बड़ी शरीरिक समस्याओं का कारण बन जाता है। इस छेद के जरिए हमारा फूड पाइप पेट तक जाने से पहले गुजरती है लेकिन इस हर्निया के होने से पेट का हिस्सा इसी छेद से ऊपर की ओर आ जाता है। ऐसा होने पर खाना पेट से वापस फूड पाइप में चढ़ने लगता है व्यक्ति को सीने में भयानक जलन और एसिडिटी का अहसास होता है।
और पढ़ें: पाचन तंत्र को करना है मजबूत तो अपनाइए आयुर्वेद के ये सरल नियम
बच्चों में गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज का क्या कारण है (What causes gastroesophageal reflux disease in children) ?
विशेषज्ञों का मानना है कि शिशुओं में कई कारक उन्हें जीईआर की ओर ले जाते हैं। जैसा कि जीवन के पहले 6 महीनों में, शिशु अपना अधिकांश समय लेटने में बिताते हैं और उनके पास पूरी तरह से विकसित अन्नप्रणाली और उसके निचले एसोफेजियल स्फिंक्टर नहीं होते हैं। इसी के साथ ही चौथे और पांचवे महीने से उनक दूध के साथ हल्का भाेजन भी शुरू हो जाता है।ऐसे में अधिक संभावना होती हैं कि पेट का खाना वापस एसोफैगस में चला जाता है। इसलिए बच्चे की बच्चे की फीडिंग प्रॉसेज पर जरूर ध्यान दें।
बच्चे को कैसे और कब खिलाएं (Kids Diet)
बच्चे की फीडिंग प्रॉसेज पर ध्यान दें। एक बार में आपके बच्चे का पेट बहुत अधिक भर जाने पर रिफ्लक्स और थूकने की समस्या की संभावना अधिक हो सकती है। प्रत्येक फ़ीड पर मात्रा कम करते हुए फीडिंग की आवृत्ति बढ़ाने से संभवतः मदद मिलेगी। अपने बच्चे के डायट में अपने मन से कोई भी परिवर्तन करने से बचें। बच्चे का कम भरा हुआ पेट निचले एसोफेजियल स्फिंक्टर (LES) पर कम दबाव डालता है। इससे एलईएस मांसपेशियां भोजन को पेट से फूड पाइप में वापस जाने से रोकता है। मांसपेशियों पर दबाव पड़ने से इसकी प्रभावशीलता कम हो जाती है, जिससे पेट का खाना गले में आ जाता है। एलईएस को पहले वर्ष में विकसित होने में समय लगता है, इसलिए कई शिशु स्वाभाविक रूप से अक्सर थूकते हैं। इसलिए मां का दूध शिशु को तब ही ही दें, जब उसे भूंख लगे। इसके अलावा बच्चे को दूध पिलाने और कुछ ठोस डायट देने के बीच में करीब 30 मिनट का अंतराल रखें। इन बाताें का भी ध्यान रखें।