यूटीआई (Urinary tract infections) बैक्टीरिया के कारण फैलने वाला इंफेक्शन है। यूटीआई के कारण किडनी, यूरेटर, ब्लैडर (Bladder) या यूरेथ्रा आदि में समस्या हो सकती है। लोअर यूरीनरी ट्रैक्ट में ये इंफेक्शन बहुत कॉमन है। अगर किसी महिला को प्रेग्नेंसी के दौरान यूटीआई (UTI) की समस्या हो जाती है, तो ऐसे में यूरिन का रंग बदल सकता है। कुछ महिलाओं में यूरिन का रंग क्लाउडी होने के साथ ही उसमें ब्लड भी आ सकता है।
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डिहायड्रेशन (Dehydration) के कारण प्रेग्नेंसी में क्लाउडी यूरिन
डिहायड्रेशन की समस्या शरीर में पानी की कमी के कारण पैदा होती है। जब शरीर को पर्याप्त मात्रा में जल नहीं मिल पाता है, तो शरीर का काम भी बाधित होता है। ऐसे में यूरिन यानी मूत्र के रंग में भी बदलाव होता है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती दौर में अगर महिला के शरीर में पानी की कमी हो जाती है, तो ऐसे में प्रेग्नेंसी में क्लाउडी यूरिन (Cloudy urine during pregnancy) आ सकता है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती दौर में महिलाओं को अधिक वॉमिटिंग (Vomiting) के साथ ही ओवर हीटिंग, मॉर्निंग सिकनेस (Morning sickness) आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बीमारी के कारण भी शरीर में पानी की कमी हो जाती है। ऐसे में जरूरी मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी होता है। पानी की पर्याप्त मात्रा प्रेग्नेंसी के दौरान प्लासेंटा के साथ ही एम्नियॉटिक फ्लूड (Amniotic fluid) को सोपर्ट करने का काम करती है। प्रेग्नेंसी के दौरान महिला को आठ से नौ ग्लास या करीब दस कप तक पानी जरूर पीना चाहिए। आप इस बारे में डॉक्टर से अधिक जानकारी ले सकते हैं।
प्रीएक्लेम्पसिया (Preeclampsia) की समस्या
प्रीएक्लेम्पसिया (Preeclampsia) की समस्या प्रेग्नेंसी के 20 वें सप्ताह में होने की अधिक संभावना होती है। प्रीएक्लेम्पसिया के कारण महिला का बीपी अधिक हो जाता है और साथ ही यूरिन में अधिक मात्रा में प्रोटीन की मात्रा शामिल हो जाती है, जिस कारण से यूरिन का रंग बदल जाता है। महिलाओं को पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। इस कारण से समय से पहले सी-सेक्शन डिलिवरी का भी खतरा पैदा हो जाता है।
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