कॉर्निया आंखों की पुतली की सुरक्षा करने वाला एक पारदर्शी टिशू होता है, जिसे क्षति पहुंचने का मतलब है आंखों की रोशनी का जाना। कॉर्नियल फ्लैश बर्न में कॉर्निया को तेज प्रकाश से क्षति पहुंचती है। कॉर्नियल फ्लैश बर्न को अल्ट्रावॉयलेट केराटाइटिस भी कहा जाता है, क्योंकि कॉर्निया को यूवी किरणों से नुकसान पहुंचता है। कॉर्नियल फ्लैश कैसे होता है और इसके इलाज के क्या विकल्प हैं जानिए इस आर्टिकल में।
जब तेज प्रकाश आंखों के कॉर्निया को नुकसान पहुंचाता है तो इसे कॉर्नियल फ्लैश बर्न कहा जाता है। सूर्य की हानिकारक किरणों के अलावा, वेल्डिंग काम के दौरान निकलने वाली तेज रोशनी, फोटोशूट के दौरान कैमरे से आने वाला प्रकाश यदि सीधे आंखों पर पड़े या तेज धूप में बिना किसी प्रोटेक्शन के आप बहुत देर तक खड़े रहते हैं तो कॉर्निया को नुकसान पहुंच सकता है। इसी तरह स्कीइंग के दौरान डार्क ग्लासेस न पहनने से सूर्य की रोशनी बर्फ से टकराकर आंखों पर रिफ्लेक्ट होती है, जिससे कॉर्निया को नुकसान पहुंच सकता है। कॉर्नियल फ्लैश बर्न दरअसल, आंखों की सतह पर होने वाला सनबर्न है। कॉर्निया आंख के रंगीन हिस्से जिसे आइरिस कहते हैं, को सुरक्षित रखता है, रेटिना पर प्रकाश केंद्रित करता है और यह आंख की गहरी सरंचना को सुरक्षा प्रदान करता है यानी यह आंख के विंडशील्ड की तरह काम करता है। कॉर्निया की सतह ठीक उसी तरह की कोशिकाओं से बनी है जैसे की त्वचा। कॉर्नियल फ्लैश बर्न या किसी बीमारी के कारण कॉर्निया को नुकसान पहुंचने पर दर्द होता है, दृष्टि में परिवर्तन या आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
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कॉर्नियल फ्लैश बर्न कई कारणों से हो सकता हैः
वेल्डिंग टूल : वेल्डिंग आर्क टॉर्च से चमकदार चिंगारी निकलती है जिससे कॉर्नियल फ्लैश बर्न हो सकता है।
सूर्य की रोशनी : जब आप सूर्य की ओर सीधे देखते हैं तो उसका प्रकाश आंख के कॉर्निया को क्षतिग्रस्त कर सकता है।
सन रिफ्लेक्शन : सूर्य का प्रकाश रेत, बर्फ और पानी से रिफ्लेक्ट करके जब आंखों पर सीधे पड़ता है तो कॉर्नयिल फ्लैश बर्न हो सकता है।
टैनिंग बेड : टैनिंग बेड की चमकदार रोशनी कॉर्निया को जला सकती है।
ब्राइट लाइट्स : लेजर और हैलोजन लाइट्स ब्राइट लाइट्स का उदाहरण हैं, जिसकी वजह से कॉर्नियल फ्लैश बर्न हो सकता है। लैब और डेंटल ऑफिस में इस्तेमाल होने वाले लैंप और चमकदार संकेतों से भी कॉर्निया को भी नुकसान पहुंच सकता है। इसके अलावा फोटोग्राफी के दौरान इस्तेमाल होने वाले तेज फ्लैश लाइट्स की अत्यधिक रोशनी भी कॉर्निया को नुकसान पहुंचाती है।
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अल्ट्रावॉयलेट लाइट के संपर्क में आने के 3 से 12 घंटों के अंदर आपको कॉर्नियल फ्लैश बर्न के लक्षण दिखने लगेंगेः
कॉर्नियल फ्लैशबर्न से दोनों आंखें प्रभावित हो सकती है, लेकिन जिस आंख में अधिक अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन गया हो उसमें लक्षण अधिक दिखते हैं।
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आंखें बहुत संवेदनशील होती हैं, इसलिए किसी तरह की बीमारी या क्षति से आंखों की रोशनी जा सकती है। इसलिए धुंधला नजर आने, दर्द या दृष्टि में बदलाव होने पर तुंरत नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास जाएं।
डॉक्टर आपसे पहले लक्षणों के बारे में पूछेगा फिर परीक्षण करेगा। वह पूछ सकता है कि लक्षण दिखने के समय आप क्या कर रहे थे। वह आपकी पलकों की भी जांच करता है। इसके आलावा आपको निम्न टेस्ट के लिए भी कहा जा सकता हैः
स्लिट लैंप टेस्ट- इस टेस्ट में माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल आंख के अंदर की चोट को देखने के लिए किया जाता है। कॉर्निया को हुई क्षति को देखने के लिए डाई का उपयोग किया जा सकता है।
विजुअल एक्युटी टेस्ट- यह टेस्ट दृष्टि और आंख के मूवमेंट की जांच करता है।
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यदि कॉर्नियल फ्लैश बर्न की वजह से कॉर्निया को गंभीर क्षति हुई है, तो सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। डॉक्टर क्षतिग्रस्त कॉर्निया की जगह नया कॉर्निया लगा सकते हैं। हालांकि, ये ऑपरेशन काफी जटिल हो सकता है।
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कॉर्नियल फ्लैश बर्न के कारण आपकी आंख की रोशनी भी जा सकती है। आपको आई इंफेक्शन भी हो सकता है। यदि कॉर्निया रिप्लेस के लिए सर्जरी हुई है, तो आपकी बॉडी नई कॉर्निया को रिजेक्ट कर सकती है। इसके बाद आपको दूसरी सर्जरी की भी जरूरत हो सकती है। आपको मोतियाबिंद भी हो सकता है। यदि इसका इलाज नहीं किया जाए तो स्थिति गंभीर हो सकती है।
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