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क्या है नेत्रदान की प्रक्रिया?
कुछ लोग इसलिए भी नेत्रदान नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें इसकी प्रक्रिया का पता ही नहीं होता। उन्हें लगता है कि ये काफी जटिल है, लेकिन ऐसा नहीं है। नेत्रदान की प्रक्रिया इस प्रकार है।
- नेत्रदान (eye donation) के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है। अगर आप आंखें दान करना चाहते हैं तो, आपको सबसे पहले आईबैंक जाना होगा। आईबैंक अलग-अलग जगहों पर खुले होते हैं। आईबैंक में जाने के बाद आपको कुछ फॉर्म भरकर देने होंगे। इसके बाद आपका रजिस्ट्रेशन हो जाता है और आपको एक कार्ड दिया जाता है। आपकी मृत्यु के बाद आपकी आंखें किसी और को दे दी जाती हैं।
- अगर आपने जीवित रहते हुए नेत्रदान के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है और आपकी मौत के बाद आपके परिवार वाले आपकी आंखों को दान करना चाहते हैं, तो ये भी संभव होता है। इसके लिए परिवार वालों को निकटतम आईबैंक में जानकारी देनी होगी। इसके बाद आईबैंक वाले खुद आकर सारी प्रक्रिया पूरी करते हैं। यह पूरी प्रक्रिया लीगल है।
- जिसने नेत्रदान किया है, अगर उसकी मौत होती है तो, आईबैंक को फौरन सूचना देनी चाहिए। आंखे निकालने के लिए मृतक को आईबैंक लेकर जाने की जरूरत नहीं होती है। सूचना के बाद आईबैंक की टीम घर या अस्पताल पहुंचकर कॉर्निया निकाल लेती है।
- मौत के बाद आंखे निकालने में सिर्फ 10-15 मिनट लगते हैं और इससे चेहरे पर कोई निशान या विकृति नहीं आती है। इसलिए इस भ्रांति को भूल जाएं कि इससे अंतिम संस्कार में देरी होती है।
- नेत्रदान की प्रक्रिया में आंखें दान करने वाले और जिसको आंखें दी जा रहीं हैं, उसकी पहचान गुप्त रखी जाती है।
- नेत्रदान करने पर न तो कोई चार्ज लगता है और न ही कोई पैसा मिलता है। यह परोपकार का काम है।
- आप नेत्रदान के लिए कॉलसेंटर नंबर पर कॉल करके भी जानकारी ले सकते हैं।
कौन-कौन कर सकता है नेत्रदान का संकल्प
नेत्रदान के लिए किसी भी प्रकार की बंदिश नहीं है। कोई भी शख्स अपनी आंखों का दान कर सकता है। इस नेक काम में न तो आयु की अड़चन है और न ही लिंग की बाधा। चश्मा लगाने वाले व पूर्व में मोतियाबिंद सर्जरी करा चुके लोग भी अपनी आंखें दान कर सकते हैं। आप भी इस नेक काम में शामिल हो सकते हैं, बस आपको इरादा मजबूत करके एक संकल्प लेने की जरूरत है।
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ये लोग नहीं कर सकते नेत्रदान
ऐसे लोग जो सिफलिस (Syphillis), एड्स, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, रेबीज, एन्सेफलाइटिस (Encephalitis), हैजा, मेनिनजाइटिस (Meningitis) जैसे संचारी रोग से ग्रसित हैं, अपने आंखें किसी को दान नहीं कर सकते।
मयंक देसाई का मानना है कि आंखें दान करने को लेकर काफी भ्रांतियां हैं, जिसे दूर करने की जरूरत है। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि यह परोपकार का काम है। लोगों को जागरूक करने के संदर्भ में उन्होंने बताया कि एक तो बहुत कम लोग आई डोनेशन के लिए आते हैं। वहीं इनमें भी यदि युवा हैं तो, जरूरतमंदों को कई वर्षों बाद जाकर फायदा पहुंचता है। मयंक कहते हैं कि यदि आपके आसपास किसी की मृत्यु हो जाए तो, कोशिश करें कि तुरंत उस व्यक्ति की आंखें दान कर दी जाएं। इससे कई लोगों की जिंदगी रोशन हो सकती है।