परिचय
कॉर्टिसॉल क्या है ?
कॉर्टिसॉल ब्लड टेस्ट हमारे शरीर में कॉर्टिसॉल के लेवल को चेक करने के लिए किया जाता है। इसमें ब्ल्ड का सैंपल लिया जाता है ताकि खून में मौजूद कॉर्टिसॉल के स्तर मापा जा सके। अगर आप इस टेस्ट के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको जानने की आवश्यकता है। कॉर्टिसॉल एड्रेनल ग्लैंडस (adrenal glands) से निकलने वाले स्टेरॉयड हॉर्मोन(steroid hormone) है। एड्रेनल ग्लैंडस हमारी किडनी के ऊपरी हिस्से में होते हैं।
कॉर्टिसॉल एक ऐसा हार्मोन है तो हमारे शरीर के हर अंग और टिश्यू को प्रभावित करता है। यह हार्मोन्स इन चीजो में हमारी मदद करते हैं। जैसे:
- तनाव को दूर करने में
- इंफेक्शन से लड़ने में
- ब्लड शुगर को संतुलित रखने में
- रक्तचाप को सही बनाये रखने में
- मेटाबोलिज्म को सही बनाये रखने में
इस टेस्ट में खून ,पेशाब और थूक की लार के माध्यम से कॉर्टिसॉल के स्तर को जांचा जाता है। कॉर्टिसॉल को जांचने के लिए ब्लड टेस्ट बहुत ही सामान्य तरीका है। अगर कॉर्टिसॉल बहुत अधिक या बहुत कम होगा तो इसका अर्थ है कि आपके एड्रेनल ग्लैंडस में कोई समस्या है। अगर इसका उपचार सही समय पर नहीं कराया जाए यह समस्याएं गभीर हो सकती हैं।
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कॉर्टिसॉल ब्लड टेस्ट क्यों किया जाता है
कॉर्टिसॉल टेस्ट को एड्रेनल ग्लैंड में मौजूद समस्याओं को जांचने के लिए किया जाता है। इनमे कशिंग सिंड्रोम(Cushing’s syndrome) भी शामिल है। कशिंग सिंड्रोम वो स्थिति है जिसमे हमारा शरीर बहुत अधिक कॉर्टिसॉल बनाने लगता है। इसके साथ ही जब हमारा शरीर पर्याप्त कॉर्टिसॉल नहीं बना पाता तो उस स्थिति को एडिसन डिजीज (Addison disease ) कहा जाता है।
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कोर्टिसोल ब्लड टेस्ट की जरूरत कब पड़ती है?
आपको कॉर्टिसॉल टेस्ट की आवश्यकता तब पड़ती है जब आपमें कशिंग सिंड्रोम या एडिसन डिजीज के लक्षण देखने को मिलते हैं
कशिंग सिंड्रोम के लक्षण इस प्रकार हैं
- मोटापा
- उच्च रक्तचाप
- अधिक ब्लड शुगर
- पेट पर बैंगनी धारियां
- त्वचा जिसमे जल्दी नील पड़ जाना या छिल जाना
- कमजोर मांसपेशियां
- महिलाओं के मासिक धर्म में अनियमितता आ सकती है या उनके चेहरे पर अधिक बाल आ सकते हैं
एडिसन डिजीज के लक्षण
- वजन का कम होना
- थकावट
- कमजोर मांसपेशियां
- पेट में दर्द
- त्वचा में गहरे धब्बे
- रक्तचाप का कम होना
- मतली और उल्टी
- डायरिया
- शरीर के बालों का कम होना
एड्रेनल क्राइसिस के कुछ लक्षण यह भी हो सकते हैं
- बहुत कम रक्तचाप
- अधिक उल्टियां
- अधिक डायरिया
- डिहाइड्रेशन
- पेट, कमर के नीचे और टांगों में अचानक और बहुत अधिक दर्द होना
- बेहोशी
कोर्टिसोल ब्लड टेस्ट कैसे होता है?
कोर्टिसोल टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल लिया जाता है। कॉर्टिसॉल का स्तर दिन के दौरान बदलता रहता है इसलिए इसके टेस्ट का समय बहुत महत्व रखता है। कॉर्टिसॉल ब्लड टेस्ट दिन में दो बार किया जाता है। एक बार सुबह जब कॉर्टिसॉल लेवल अधिक होता है और इसके बाद शाम को जब इसका लेवल कम होता है।
कुछ ऐसी दवाईयां हैं जो कॉर्टिसॉल लेवल को प्रभावित करती हैं। हो सकता है कि आपके डॉक्टर आपको इस टेस्ट से पहले इन दवाईओं का सेवन न करने की सलाह दे।
कभी-कभी कॉर्टिसॉल लेवल इन कारणों से बढ़ सकता है:
- दवाईयां जिनमें एस्ट्रोजन होता है
- सिंथेटिक ग्लुकोकोर्टीकोइडस जैसे प्रेडनिसोन (prednisone)
- प्रेग्नेंसी
कॉर्टिसॉल लेवल इन कारणों से कम हो सकता है:
- दवाईयां जिनमें एंड्रोजनस हो
- फेनीटोइन (phenytoin)
कोर्टिसॉल टेस्ट करने के अन्य तरीके
यूरिन टेस्ट
कोर्टिसोल को यूरिन और थूक टेस्ट से भी जांचा जाता है। कॉर्टिसॉल यूरिन टेस्ट के लिए आपको यूरिन का सैंपल लिया जाता है, जैसे
- इसमें 24 घंटे में होने वाले यूरिन को कलैक्ट किया जाता है।
- इसके लिए डॉक्टर आपको कंटेनर देंगे।
सलाइवा टेस्ट
कॉर्टिसॉल सलाइवा टेस्ट यानि थूक टेस्ट को रात को किया जाता है क्योंकि इस समय कॉर्टिसॉल स्तर कम होता है। डॉक्टर इसके लिए आपको एक किट दे देंगे। इसमें एक सवाब यानि पट्टी होगी जिसमे आपको थूक का नमूना इकठ्ठा करना है। इसके बाद इसे कंटेनर में डाल कर स्टोर करना होगा। अगले दिन लैब में इसे जमा करा दें।
टेस्ट के पहले की तैयारी
तनाव के कारण कॉर्टिसॉल का स्तर बढ़ सकता है। इसलिए पूरी कोशिश करनी चाहिए कि इस टेस्ट से पहले आप पूरा आराम करें। चिंता या तनाव से बचे। कॉर्टिसॉल ब्लड टेस्ट के लिए आपको दो बार डॉक्टर के पास जाना होगा जबकि यूरिन और सलाइवा टेस्ट आप घर पर ही अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार कर सकते हैं।
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जोखिम
हालांकि इसमें कोई जोखिम नहीं होता है लेकिन ब्लड टेस्ट के समय आपको थोड़ा दर्द हो सकता है। जब आपकी नस में सुई लगाई जायेगी। लेकिन यह दर्द केवल कुछ ही पलों का ही होता है। इसके अलावा कुछ लोगों को नस से खून निकालने के कारण यह समस्याएं भी हो सकती हैं। जैसे कि :
- अधिक ब्लीडिंग
- त्वचा में ब्लड कलॉटेज हो जाना
- चक्कर आना या बेहोश हो जाना
- इंफेक्शन होना
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परिणाम
अगर आपके कॉर्टिसॉल का लेवल अधिक आता है तो इसका अर्थ है आपको कशिंग सिंड्रोम है और अगर कम आता है तो यह एडिसन डिजीज या अन्य तरह की एड्रेनल डिजीज हो सकती है। अगर आपकी रिपोर्ट ठीक नहीं आती है तो इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आपको तुरंत उपचार की जरूरत है कई बार इंफेक्शन, तनाव या गर्भावस्था भी इस टेस्ट के परिणामों में अपना प्रभाव डाल देती हैं। यही नहीं ,गर्भनिरोधक गोलियां और अन्य दवाईआं भी कॉर्टिसॉल के स्तर को प्रभावित करती हैं। इसके लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें। वो आपको सही राय दे सकते हैं।
अगर आपका कॉर्टिसॉल लेवल सामान्य नहीं आता है तो आपके डॉक्टर आपको कुछ और टेस्ट कराने के लिए कह सकते हैं जिसमे अन्य ब्लड, यूरिन या इमेजिंग टेस्ट जैसे MRI आदि शामिल हो सकते हैं ताकि आपकी मेडिकल कंडीशन का अच्छे से पता चल सके और उसके बाद सही उपचार शुरू किया जा सके।
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