आईसीयू में वेंटीलेटर पर मरीज को इसलिए रखा जाता है क्योंकि वेंटीलेटर्स की मदद से ही मरीज सामान्य लोगों की तरह सांस ले पाता है। किसी को भी आईसीयू में वेंटीलेटर की जरूरत तब पड़ती है जब उसे सांस लेने में तकलीफ होती है। किसी बीमारी के कारण, किसी एक्सीडेंट, अनुवांशिक डिफेक्ट के काण या फिर ड्रग्स का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने पर मरीज को आईसीयू में वेंटीलेटर पर रखा जाता है। आपने कोरोना महामारी के दौरान वेंटिलेटर का नाम बहुत सुना होगा। वेंटिलेटर की सहायता तब ली जाती है, जब पेशेंट किसी कारण से सही से सांस नहीं ले पाता है। ये स्थिति बहुत नाजुक होती है। कोरोना महामारी के दौरान लोगों को फेफड़ों में जकड़न की समस्या से अधिक गुजरना पड़ा, जिसके कारण वेंटिलेटर की जरूरत अधिक पड़ी। आपने अब तक वेंटिलेटर का नाम सुना होगा, लेकिन आप इस आर्टिकल के माध्यम से जान सकते हैं कि वेंटिलेटर की जरूरत आखिर क्यों पड़ती है।
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आईसीयू में वेंटीलेटर
आईसीयू में वेंटीलेटर की बात की जाए तो उसमें सांस लेने के कई सर्किट, कंट्रोल सिस्टम के साथ मॉनिटर और अलॉर्म होता है। ब्रीदिंग सर्किट का इस्तेमाल कर गैस भेजी जाती है। आईसीयू के वेंटीलेटर की खासियत यह भी है कि यह गैस को गर्म करने के साथ भाप भी बना देता है। ऐसा करने से मरीज सामान्य तौर पर सांस छोड़ पाता है। आईसीयू (intensive care unit) के वेंटीलेटर ज्यादातर वॉल गैस सप्लाई से जुड़े होते हैं। इसलिए मरीज के बेड तक गैस आसानी से पहुंच जाता है। कई वेंटीलेटर माइक्रोप्रोसेसर युक्त होते हैं जिन्हें आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। वहीं जब चाहे तो प्रेशर, वॉल्यूम, एफआई ओ2 की मात्रा को बढ़ाया व घटाया जा सकता है। आईसीयू के वेंटीलेटर को चलाने के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है, ऐसे में बिजली के कनेक्शन या फिर बैटरी की बिजली की मदद से इसको चलाया जाता है।
मरीज को कब और क्यों दिया जाता है आईसीयू में वेंटीलेटर?
आईसीयू में वेंटीलेटर मरीज को उस स्थिति में दिया जाता है जब उसकी स्थिति गंभीर होती है, सही से सांस नहीं ले पाता तो वेंटीलेटर देकर मरीज की जान बचाई जाती है। मेडिकल टर्म में वेंटीलेयर उस मशीन को कहा जाता है जिसकी मदद से हमारे लंग्स ठीक से काम करते हैं। वेंटीलेटर को रेसपिरेटर (respirator), ब्रीदिंग मशीन (breathing machine), मैकेनिकल वेंटिलेशन (mechanical ventilation) के नाम से जाना जाता है।
लोगों को इस बात का भ्रम होता है कि वेंटिलेट मशीन से केवल सांस अंदर की ओर खींची जाती है, बल्कि सच तो ये भी है कि वेंटिलेटर शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड गैस को निकालने का काम भी करता है। आमतौर पर सर्जरी के बाद व्यक्ति सांस लेने में असहाय महसूस कर सकता है, इसलिए उसे कुछ समय के लिए वेंटिलेटर में रखा जाता है। ऐसा आमतौर पर एनेस्थीसिया देने पर होता है, जब व्यक्ति को होश नहीं रहता है। सांस लेने और सांस छोड़ने के दौरान फेफड़े अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में वेंटिलेटर लंग प्रॉब्लम होने पर यूज किया जाता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकती हैं।
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ऐसे किया जाता है ऑपरेट
आईसीयू के वेंटीलेटर को चलाने की बात करें तो यह इतना आधुनिक है कि सही जानकारी के बाद इसे ऑपरेट करना काफी आसान है। वहीं, जो मरीज खुद सांस नहीं ले पाते हैं उन्हें यह अच्छे से सांस पहुंचाता है। वेंटीलेटर की मदद से मरीज को जरूरत के समय या फिर कुछ देर के अंतराल पर ही सांस दी जा सकती है, इसके द्वारा लगातार सांस देते रहना संभव नहीं है। असिस्ट व कंट्रोल मोड की मदद से मरीज को कुछ समय के अंतराल पर आसानी से सांस दी जा सकती है। वहीं वॉल्यूम कंट्रोल ब्रिद की मदद से एक खास गति पर वेंटीलेटर से निकलने वाले ऑक्सीजन को सेट कर दिया जाता है। जिससे मरीज समय- समय पर सामान्य रूप से सांस लेता रहता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकती हैं। प्रेशर कंट्रोल ब्रिद की मदद से मरीज के सांस लेने के प्रेशर को तय मानक के रूप में सेट कर दिया जाता है, जिससे मरीज को सांस लेने में तकलीफ नहीं होती, लेकिन यह तमाम चीजें एक्सपर्ट के निर्देश पर और उनकी आंखों के सामने की जाती हैं।
ऐसे किया जाता है इस्तेमाल
आईसीयू में वेंटीलेटर का इस्तेमाल करने के लिए सबसे पहले यह चेक किया जाता है कि यूनिट इस्तेमाल करने के लिए तैयार है या नहीं। उदाहरण के तौर पर रन परफॉर्मेंस व केलिब्रेशन चेक किया जाता है। इसके बाद सेटिंग्स को अच्छे से देखने के बाद अलॉर्म लेवल की जांच की जाती है, मरीज की स्थिति व मरीज की जांच कर उसी हिसाब से उन्हें ऑक्सीजन पहुंचाया जाता है। यह तमाम जांच करने के बाद मरीज को वेंटीलेटर से जोड़ दिया जाता है। जब आईसीयू में वेंटीलेयर और मरीज दोनों ही आपस में जुड़ जाते हैं तो एक्सपर्ट इस बात की अच्छे से जांच करता है कि मरीज को सामान्य रूप से सांस मिल रही है या नहीं। जब मरीज अच्छे से वेंटीलेटर का इस्तेमाल करने लगता है तो उस स्थिति में एक्सपर्ट मॉनीटर की मदद से मरीज के सेहत की जांच करते हैं, वहीं अलॉर्म के बजने पर वेंटीलेटर को चालू व बंद किया जाता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकती हैं।
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यह हो सकती है समस्याएं
यदि इंफेक्शन को कंट्रोल करने के प्रॉसेस को ठीक से न अपनाया गया तो आईसीयू में वेंटीलेटर के इस्तेमाल से मरीज को निमोनिया (pneumonia) की बीमारी हो सकती है। वहीं यदि सांस लेने के उपकरण में कहीं किसी प्रकार की लीकेज की समस्या आती है तो उस स्थिति में यह संभव नहीं है कि मरीज को तय मात्रा में वेंटीलेशन मिल रहा है या नहीं। नियमित मेंटेनेंस न होने के कारण, ऑपरेटिंग एरर होने व मशीन खराब होने से स्थिति गंभीर हो सकती है। वहीं यदि तय समय पर अलॉर्म न बजा, अलॉर्म को सही से सेट नहीं किया या फिर किसी क्लीनिकल स्टाफ की नजर उस पर नहीं पड़ी तो ऐसी स्थिति में मरीज की जान को खतरा हो सकता है। मरीज को आईसीयू में वेंटीलेटर पर रखने पर निमोनिया की समस्या का काफी रिस्क होता है। वहीं यदि ठीक से उपचार न किया गया तो न्यूरो संबंधी परेशानियां हो सकती हैं।
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आईसीयू वेंटीलेटर आखिर कैसे कर सकता है दिमाग को डैमेज?
ऐसे मरीज जिनको आईसीयू में वेंटीलेटर पर लंबे समय तक रखा गया हो उनमें से कईयों में यह देखा जाता है कि उन्हें मानसिक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ता है। रिसर्चर इस पर शोध कर रहे हैं। स्पेन के यूनिवर्सिटी ऑफ ओविडो और सेंट माइकल हॉस्पिटल कनाडा के संयुक्त तत्वाधान में अमेरिकन जर्नल ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन में छपे शोध के अनुसार आईसीयू के 30 फीसदी मरीज को दिमाग संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्हें दिमाग का सही से काम न करना (dysfunction), गुस्सा, तनाव, डिलिरियम (delirium) जैसी समस्या हो सकती है। वहीं आईसीयू में वेंटीलेटर पर रहे मरीजों में करीब 80 फीसदी लोगों में डिलिरियम की समस्या देखने को मिलती है। वहीं आईसीयू में वेंटीलेटर के कारण होने वाली परेशानी को अब तक स्पष्ट नहीं किया जा सका है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकती हैं।
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बच्चों से बड़ों को किस समय पड़ती है आईसीयू में वेंटीलेटर की जरूरत
बच्चों से लेकर बड़ों को आईसीयू में वेंटीलेटर की जरूरत पड़ सकती है। बीमारी से ठीक होने के लिए इसका इस्तेमाल कम समय के लिए किया जाता है। सामान्य तौर पर सर्जरी के दौरान, सर्जरी से ठीक होने के लिए और जब सांस लेने में तकलीफ हो तब इसका इस्तेमाल किया जाता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकती हैं।
वहीं कुछ केस में तो लो गेरिग डिजीज (Lou Gerhig’s disease) होने पर, कोमा की स्थिति में, ब्रेन इंजरी, लंग्स सही से काम न करने की स्थिति में, क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पुलमोनरी डिजीज (chronic obstructive pulmonary disease (COPD)), ड्रग का ओवरडोज, लंग्स इंफेक्शन, मायएस्थिनिया ग्रेविस (myasthenia gravis), निमोनिया, पोलियो, बच्चों में प्रीमैच्योर लंग डेवलप्मेंट की स्थिति के साथ स्ट्रोक और अपर स्पाइनल कॉर्ड की स्थिति में मरीज को आईसीयू में वेंटीलेटर दिया जाता है ताकि उसकी जान बचाई जा सके। वहीं इसके द्वारा शरीर में जहां ऑक्सीजन जाती है वहीं कार्बन डाईऑक्साइड को निकालने में मदद करता है। यही इसका मुख्य काम है।
हम आशा करते हैं कि आपको आईसीयू में वेंटीलेटर के बारे में इस आर्टिकल के माध्यम से जरूरी जानकारी मिली होगी। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाॅक्टरी सलाह लें। । आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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