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फेफड़ों की बीमारी के बारे में वे सारी बातें जो आपको जानना बेहद जरूरी है

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar


Surender aggarwal द्वारा लिखित · अपडेटेड 06/05/2022

    फेफड़ों की बीमारी के बारे में वे सारी बातें जो आपको जानना बेहद जरूरी है

    हमारे शरीर का प्रमुख काम है सांस लेना, जिसमें हमारे फेफड़े मदद करते हैं। फेफड़े पर्यावरण में मौजूद ऑक्सीजन को सोखकर उसे खून में भेजते हैं और फिर वहां से कार्बनडाइऑक्साइड को लेकर शरीर से बाहर छोड़ते हैं। जिससे हमारे शरीर के जरूरी अंग जैसे दिमाग, आंखें, हाथ, पैरों को ऑक्सीजन युक्त ब्लड सप्लाई मिलती है और उनकी कार्यक्षमता बेहतर तरीके से चलती रहती है, लेकिन संक्रमण या अन्य कारणों की वजह से फेफड़ों की बीमारी विकसित हो जाती है और इनकी कार्यक्षमता प्रभावित कर देती है। इन फेफड़ों की बीमारी (Lungs Diseases) की वजह से स्थिति गंभीर भी हो सकती है और कई बार जानलेवा भी साबित हो सकती है।

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    फेफड़ों की बीमारी से पहले समझें फेफड़ों की संरचना

    हमारे शरीर में दो फेफड़े होते हैं, जो कि छाती के दोनों ओर साइड में स्थित होते हैं। पर्यावरण में मौजूद हवा हमारी नाक के द्वारा ट्रेकिआ (Trachea) से होते हुए फेफड़ों में जाती है। ट्रेकिआ को विंडपाइप भी कहा जाता है। ट्रेकिआ अपनी पाइपनुमा ब्रांच जिसे ब्रॉन्काई (Bronchi) कहा जाता है, के द्वारा हवा को फेफड़ों के भीतर पहुंचाता है। जो कि आगे छोटी पाइपनुमा ब्रांच ब्रांकिओल्स (Bronchioles) में पहुंचती है। यही ब्रांकिओल्स माइक्रोस्कॉपिक एयर सैक में परिवर्तित हो जाते हैं, जिन्हें एल्वियोली (Alveoli) कहा जाता है। एल्वियोली में हमारे द्वारा ली गई हवा में मौजूद ऑक्सीजन को खून में अवशोषित कर लिया जाता है।

    दूसरी तरफ, शरीर में ऑक्सीजन के मेटाबॉलिज्म के बाद पैदा हुई कार्बनडाइऑक्साइड को एल्वियोली के द्वारा ही शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। एल्वियोली के बीच सेल्स की एक पतली परत होती है, जिसे इंटरस्टिटियम (interstitium) कहा जाता है। इस परत में एल्वियोली को सपोर्ट करने के लिए रक्त धमनियां और कोशिकाएं होती हैं। इसके अलावा, फेफड़ों के ऊपर टिश्यू की एक पतली परत होती है, जिसे प्लूरा (Pleura) कहा जाता है। यह परत फेफड़ों के लिए एक ल्यूब्रीकेंट की तरह काम करते हैं, ताकि वह सांस लेते और छोड़ते हुए आसानी से फैल और सिकुड़ सकें।

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    लंग्स को प्रभावित करने वाली फेफड़ों की बीमारी

    स्मोकिंग, वायु प्रदूषण और खराब जीवनशैली की वजह से फेफड़ों की बीमारी होना आम बात हो गई है। जिसमें आपके फेफड़ों के किसी हिस्से में खराबी या इंफेक्शन होने से लंग्स की कार्यक्षमता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। आइए, विभिन्न फेफड़ों की बीमारी के बारे में विस्तार से जानते हैं।

    अस्थमा (Asthma)

    अस्थमा फेफड़ों की बीमारी है, जिसका इलाज करना बहुत जरूरी है। वरना आपको गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। फेफड़ों में मौजूद ब्रॉन्काई के सूज जाने या उसमें ऐंठन आने की वजह से अस्थमा हो जाता है। जिसमें आपको सांस फूलने की समस्या और सांस के साथ घरघराहट की आवाज आ सकती है। एलर्जी, वायरल इंफेक्शन और वायु प्रदूषण आदि अस्थमा के लक्षणों का कारण बन सकते हैं।

    निमोनिया (Pneumonia)

    बैक्टीरिया खासकर स्ट्रैपटोकोकस निमोनिया की वजह से एक या दोनों फेफड़ों में संक्रमण हो जाने पर निमोनिया बनता है। निमोनिया खासकर अन्य शारीरिक समस्याओं से ग्रसित बुजुर्गों और बच्चों में जान का खतरा भी हो सकता है। निमोनिया के लक्षणों में खांस या सांस लेते समय सीने में दर्द, फीवर, थकान, जी मिचलाना आदि शामिल हैं।

    इंफ्ल्युएंजा (Influenza)

    किसी एक या एक से ज्यादा फ्लू के वायरस की वजह से संक्रमण होने को इंफ्लुएंजा की बीमारी होती है। जिसमें एक हफ्ते या उससे ज्यादा तक बुखार, शरीर में दर्द और खांसी की समस्या रह सकती है।

    एस्बेस्टॉसिस (Asbestosis)

    एस्बेस्टॉसिस फेफड़ों से जुडी एक बीमारी है जो एस्बेस्टस फाइबर के सांस द्वारा शरीर के अंदर चले जाने पर होती है। सांस लेने में परेशानी, लगातार कफ बना रहना, बहुत थकान, सीने और कंधों में दर्द इसके लक्षणों में शामिल हैं।

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    क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) (Chronic Obstructive Pulmonary Diseases)

    फेफड़ों को नुकसान हो जाने की वजह से सांस छोड़ने में दिक्कत होने को क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज कहा जाता है। जिसमें सांस फूलने की शिकायत होने लगती है। अभी तक, इस समस्या का सबसे आम कारण स्मोकिंग देखा गया है।

    क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस (Chronic Bronchitis)

    बार-बार और थोड़े-थोड़े समय पर खांसी की समस्या हो जाने को क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस कहा जाता है। जो कि, एक प्रकार का सीओपीडी ही है, जिसमें सांस लेने में परेशानी होने लगती है।

    एंफायसेमा (Emphysema)

    यह फेफड़ों की बीमारी भी स्मोकिंग की वजह से होने वाली सीओपीडी का एक प्रकार है। जिसमें एल्वियोली के बीच में मौजूद सेल्स की नाजुक दीवार डैमेज हो जाती है। इस कारण फेफड़ों में हवा फंसने लगती है और सांस लेने में दिक्कत पैदा करती है।

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    एक्यूट ब्रोंकाइटिस (Acute Bronchitis)

    वायरस की वजह से फेफड़ों में मौजूद ब्रॉन्काई में संक्रमण होने को एक्यूट ब्रोंकाइटिस कहा जाता है, जिसमें काफी खांसी आती है।

    सारकॉइडोसिस (Sarcoidosis)

    सारकॉइडोसिस में शरीर में छोटी-छोटी सूजन आने की वजह से सभी शारीरिक अंगों पर प्रभाव पड़ता है, जिसमें से सबसे ज्यादा फेफड़ों पर असर पड़ता है। इस फेफड़ों की बीमारी के लक्षण ज्यादा परेशान नहीं करते, जिस वजह से यह समस्या आमतौर पर, दूसरे कारणों की वजह से किए गए एक्सरे की मदद से पता लगती है।

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    पल्मोनरी फाइब्रोसिस (Pulmonary Fibrosis)

    यह फेफड़ों की बीमारी इंटरस्टिटियल लंग डिजीज का एक रूप है। जिसमें, इंटरस्टिटियम खराब होने लगती है और इस वजह से फेफड़े अकड़ जाते हैं और सांस लेने के लिए ढंग से फैल नहीं पाते हैं।

    प्लूरल इफ्यूजन (Pleural Effusion)

    फेफड़ों की इस बीमारी में फेफड़ों और छाती की अंदरुनी दीवार के बीच छोटी जगहों में फ्लूड जमने लगता है। जो कि ज्यादा होने पर सांस संबंधित समस्या पैदा कर सकती है।

    ओबेसिटी हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम (Obesity Hypoventilation Syndrome)

    ओबेसिटी हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम में ज्यादा वजन बढ़ने के कारण सांस लेने के लिए छाती पूरी तरह नहीं फूल पाती। इसकी वजह से सांस संबंधी लंबी बीमारियां हो सकती हैं।

    प्लूरिसी (Pleurisy)

    फेफड़ों की इस समस्या में फेफड़ों की बाहरी रेखा में सूजन आ जाती है, जिससे सांस लेते हुए दर्द महसूस होता है। ऑटोइम्यून कंडिशन, संक्रमण और पल्मोनरी एंबोलिज्म की वजह से प्लूरिसी हो सकती है।

    सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis)

    यह एक जेनेटिक फेफड़ों की बीमारी है, जिसमें ब्रॉन्काई में मौजूद म्यूकस आसानी से साफ नहीं होता। अत्यधिक म्यूकस रहने की वजह से जिंदगीभर ब्रोंकाइटिस और निमोनिया की शिकायत रहती है। यह डायजेस्टिव सिस्टम और शरीर के दूसरे अंगों को बुरी तरह डैमेज कर देती है।

    ब्रोंकिइक्टेसिस (Bronchiectasis)

    इस बीमारी में बार-बार संक्रमण आने की वजह से ब्रॉन्काई में सूजन और असामान्य फैलाव आ जाता है। जिसकी वजह से अत्यधिक बलगम के साथ खांसी आना इस फेफड़ों की बीमारी का मुख्य लक्षण हो जाते हैं।

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    लिंफ-एंजिओलियो-माइओमेटोसिस (Lymphangioleiomyomatosis; LAM)

    यह दुर्लभ फेफड़ों की बीमारी है, जिसमें पूरे फेफड़ों में सिस्ट बन जाता है। जिसकी वजह से एंफायसेमा की तरह ही सांस संबंधित परेशानी होती है।

    फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer)

    फेफड़ों के किसी भी हिस्से में कैंसरकृत ट्यूमर विकसित हो सकता है। जो कि एक गंभीर बीमारी है और यह जानलेवा साबित हो सकती है। इसलिए, इसके लक्षणों आदि के बारे में जानकारी जरूर रखें और जब भी इससे संबंधित कोई भी समस्या पता लगे तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।

    इंटरस्टिटियल लंग डिजीज (Interstitial Lung Disease)

    इस बीमारी में एयर सैक के बीच में मौजूद लाइनिंग यानि इंटरस्टिटियम प्रभावित होता। जिस वजह से इंटरस्टिटियम सूख जाता है और सांस की दिक्कत हो सकती है।

    ट्यूबरक्युलॉसिस (Tuberculosis)

    माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलॉसिस बैक्टीरिया की वजह से धीरे-धीरे पनप रहे इस इंफेक्शन को ट्यूबरकुलोसिस कहा जाता है। इस बीमारी में क्रोनिक खांसरी, बुखार, वजन घटना और सोते हुए पसीने आ सकते हैं।

    एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (Acute Respiratory Distress Syndrome; ARSD)

    गंभीर बीमारी की वजह से गंभीर और अचानक फेफड़ों को चोट पहुंचने को एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम कहा जाता है। ऐसी स्थिति में फेफड़ों के रिकवर हो जाने तक मैकेनिकल वेंटिलेशन के साथ लाइफ सपोर्ट दी जाती है।

    हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (Hypersensitivity Pneumonitis)

    धूल या अन्य हानिकारक तत्वों को सांस के साथ अंदर लेने की वजह से फेफड़ों में एलर्जिक रिएक्शन होने लगता है। आमतौर पर, यह फेफड़ों की बीमारी किसानों या सूखे व धूल वाले पौधों के उत्पादों के साथ काम करने वाले लोगों में होती ही।

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    हिस्टोप्लास्मोसिस (Histoplasmosis)

    मिट्टी में मौजूद हिस्टोप्लास्मा कैपसुलेटम फंगस को सांस के द्वारा अंदर लेने पर होने वाले संक्रमण को हिस्टोप्लास्मोसिस कहा जाता है। यह एक माइल्ड समस्या है, जिसमें खांसी और फ्लू के लक्षण दिखते हैं।

    पल्मोनरी एंबोलिज्म (Pulmonary Embolism)

    इस बीमारी में पैर की नसों में बनने वाला ब्लड क्लॉट जब दिल तक जा पहुंचता है और यहां से दिल उसे फेफड़ों की तरफ पंप कर देता है। जिस वजह से अचानक सांस फूलने की समस्या हो जाती है।

    फेफड़ों की बीमारी किस वजह से होती है?

    विशेषज्ञों को सभी फेफड़ों की बीमारी के कारणों के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ कारणों की वजह से इन सभी बीमारियों का उत्पादन माना जाता है।

    रेडॉन गैस (Radon Gas)

    यह एक बेरंग और बेगंध गैस होती है, जो कई घरों में मौजूद होती है और यह फेफड़ों के कैंसर का जाना पहचाना कारण है। अगर, आपके घर पर भी राडोण का अत्यधिक स्तर है, तो आप इसे कम कर सकते हैं।

    स्मोकिंग

    सिगरेट, सिगार और पाइप को स्मोक करने से फेफड़ों की बीमारी हो सकती हैं। अगर, आप स्मोक नहीं करते और आपके आसपास कोई स्मोक करता है, तो आप ऐसी जगहों से खुद को दूर कर लें।

    वायु प्रदूषण

    हाल ही में हुए कई शोध के मुताबिक वायु प्रदूषण में अस्थमा, सीओपीडी, लंग कैंसर और अन्य फेफड़ों की बीमारी में हालत खराब हो सकती है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण इन बीमारियों का कारण भी बन सकता है।

    कीटाणु

    बैक्टीरिया, वायरस और फंगस जैसे कुछ  कीटाणुओं के संपर्क में आने से भी फेफड़ों की बीमारी विकसित हो जाती है। इसलिए, आपको इन कीटाणुओं से बचाव के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए।

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    फेफड़ों की बीमारी से बचने के लिए क्या टिप्स अपनाएं

    1. स्मोकिंग करने पर आप निकोटीन, कार्बन मोनोक्साइड और टार जैसे कई सारे खतरनाक केमिकल के संपर्क में आते हैं। जो कि आपके फेफड़ों को खराब कर देते हैं। इसकी वजह से शरीर में अत्यधिक म्यूकस का निर्माण होता है, जो कि फेफड़े आसानी से साफ नहीं कर पाते और समस्या पैदा हो जाती हैं।
    2. इसके अलावा, स्मोकिंग की वजह से आपका विंड पाइप भी सिकुड़ने लगता है और आपको सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। स्मोकिंग करने से आपको लंग कैंसर, सीओपीडी, पल्मोनरी फाइब्रोसिस और अस्थमा की समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है। जो कि काफी खतरनाक और जानलेवा साबित हो सकती है।
    3. स्मोकिंग छोड़ने के अलावा, आपको एक्सरसाइज भी करनी चाहिए। जिससे आपके फेफड़ों का स्वास्थ्य सुधरता है और उनकी कार्यक्षमता बेहतर होती है। आप जितना खुद को फिट रखेंगे, उतना ही आपके फेफड़ों का स्वास्थ्य और आकार फिट रहेगा और सांस लेने और छोड़ने में दिक्कत नहीं आएगी। इसके अलावा, स्वस्थ फेफड़े संक्रमण पैदा करने वाले अनेक कीटाणुओं से लड़ने में भी सक्षम बनते हैं।
    4. कुछ लोग लंबी और गहरी सांस नहीं लेते। जिस वजह से उनके फेफड़ों का अधिकतर भाग निष्क्रिय रहता है और एक समय बाद उसकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। इसलिए, आपको गहरी और लंबी सांस लेनी चाहिए। जिससे आपके फेफड़े पूर्ण फैल पाएं और आपके शरीर को ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन मिल पाए। गहरी और लंबी सांस लेने की वजह से फेफड़े पूरी तरह फैल पाते हैं और उसके किसी भी हिस्से में मौजूद म्यूकस आदि साफ किया जा सकता है।

    अन्य टिप्स

    फेफड़ों की बीमारी से दूर रहने के लिए आपको प्रदूषित तत्वों से भी दूर रहना चाहिए। क्योंकि, प्रदूषित तत्व आपके फेफड़ों को डैमेज करने के साथ-साथ उनकी उम्र भी बढ़ाते हैं। जिसकी वजह से फेफड़े टॉक्सिन को साफ नहीं कर पाते। इसके लिए आप नीचे दिए गए तरीकों को अपना सकते हैं। जैसे-

    1. ट्रैफिक या वायु प्रदूषण वाली जगह पर एक्सरसाइज न करें। इसकी जगह आप पार्क या घर में साफ हवा के बीच व्यायाम करें, जिससे आपको ताजी हवा प्राप्त हो सके।
    2. अगर, आपके आसपास कोई स्मोक कर रहा है, तो आपको तुरंत वहां से दूर हो जाना चाहिए। क्योंकि, इस तरह सेकेंड हैंड स्मोक से भी स्मोकिंग करने जितना नुकसान होता है।
    3. अगर, किसी मौसम के दौरान आपके शहर या घर के आसपास वायु प्रदूषण ज्यादा रहता है, तो कम से कम घर से बाहर निकलें। यदि आपको घर से बाहर निकलना भी पड़े तो पूरी एहतियात को बरतें। ताकि, वायु प्रदूषण में मौजूद खतरनाक तत्वों से बचा जा सके।
    4. अपने घर को स्मोक-फ्री जोन बनाएं।
    5. फर्नीचर और वैक्यूम को हफ्ते में एक बार जरूर साफ करें।
    6. इंडोर एयर वेंटिलेशन बढ़ाने के लिए घर की खिड़कियों को सुबह के समय खोलकर रखें।
    7. अपने घर को जितना हो सके, उतना साफ रखें। जिससे, मोल्ड, धूल और एनिमल डैंडर जैसे एलर्जी पैदा करने वाले एलर्जन से बचाव किया जा सके।

    उम्मीद करते हैं कि आपको फेफड़ों की बीमारियों से संबंधित जानकारी मिल गई होगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। इस आर्टिकल में बताए गए टिप्स को अपनाकर इन बीमारियों से बचा जा सकता है। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

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