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5- विटिलिगो (Vitiligo)

विटिलिगो ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसे सामान्य भाषा में सफेद दाग भी कहा जाता है। विटिलिगो में त्वचा का रंग जगह-जगह पर सफेद होने लगता है। त्वचा को रंग देने के लिए मेलेनिन पिगमेंट जिम्मेदार होता है। विटिलिगो में मेलेनिन बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। विटिलिगो से ग्रसित व्यक्ति को सामाजिक तौर पर बहुत हीनता महसूस होती है। विटिलिगो से पीड़ित व्यक्ति में स्कीन कैंसर होने का जोखिम सबसे ज्यादा होता है। वहीं, विटिलिगो के लिए प्रयोग होने वाले कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स का इस्तेमाल करने से संक्रमण, डायबिटीज और ऑस्टियोपोरोसिस का रिस्क भी बढ़ जाता है। विटिलिगो का कोई सटीक इलाज नहीं है। लेकिन होम्योपैथ में विटिलिगो का इलाज है, पर वह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है। डॉक्टर्स आज भी इसका इलाज खोजने में लगे हुए हैं।
6- ग्रैन्यूलोमेटॉसिस (Granulomatosis)
ग्रैन्यूलोमेटॉसिस ऑटोइम्यून बीमारी है। जिसमें खून की नसों में सूजन हो जाती है। ग्रैन्यूलोमेटॉसिस बहुत रेयर डिजीज है। ग्रैन्यूलोमेटॉसिस में वजन का घटना, थकान और सांस लेने में समस्या आदि होती है। ग्रैन्यूलोमेटॉसिस का इलाज कॉर्टिकोस्टेरॉइड और इम्यूनोसप्प्रेसेंट ड्रग्स दे कर किया जाता है। जो संक्रमण होने के जोखिम को बढ़ा देता है। निदरलैंड में यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रॉनिंजेन ने समुद्री एनामन से एक दवा बनाई है जिससे ग्रैन्यूलोमेटॉसिस का इलाज किया जा सकता है। लेकिन अभी तक ये दवा पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हो पाई है। इसलिए वैज्ञानिक अभी भी ग्रैन्यूलोमेटॉसिस का इलाज खोजने में लगे हैं।
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7- सारकॉइडोसिस (Sarcoidosis)

सारकॉइडोसिस एक ऑटोइम्यून बीमारी है। जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों में इंफ्लेमेट्री सेल्स के जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है। फेफड़े, ब्लड के लिम्फ नोड, आंखें, सांस लेने में परेशानी और त्वचा पर सूजन इसके प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं। सारकॉइट ग्रेन्युलोमास को ग्रनुलोमाटोस डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। ग्रेन्युलोमास को ट्यूमर का शुरुआती स्टेज भी माना जाता है। माइक्रोस्कोप की मदद से ऐसे ट्यूमर को देखा जा सकता है। सारकॉइडोसिस के कारण कभी-कभी मस्तिष्क पर भी प्रभाव पड़ता है।
अगर आप बीमारी के शुरुआती चरणों ध्यान देंगे तो बीमारी से बचा जा सकता है। लेकिन ध्यान न देने पर सारकॉइडोसिस बदतर स्थिति में चली जाती है। इस बीमारी हालांकि, समस्या सालों पुरानी है तो इलाज में वक्त लग सकता है। ग्रेन्युलोमा और ज्यादा न बढ़ें इसलिए सबसे कम खुराक में कम से कम 6 से 12 महीने तक प्रेडनिसोन कॉर्टिसोलस्टेरॉइड इम्यूनोस्प्रेसिव और एंटी-इंफ्लेमेटरी जैसे ड्रग्स आमतौर पर दिए जाते हैं।
सारकॉइडोसिस के दोबारा होने की संभावना होती है। इसलिए डॉक्टर इलाज से पहले लक्षणों को समझ सकते हैं। इस दौरान एक्स-रे और सांस से जुड़े टेस्ट कर सकते हैं। यदि आपकी स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है, तो एंटीबायोटिक्स प्रभावी नहीं होते हैं। इसलिए डॉक्टर मेथोट्रेक्सेट, इम्युनोसुप्रेसेंटएजैथोप्रिन या हाइड्रोक्सी क्लोरो लाइन एंटीवायरस जैसी ज्यादा प्रभावी वाली दवाएं दे सकते हैं। सारकॉइडोसिस का सटीक इलाज वैज्ञानिक अभी भी ढूंढ रहे हैं।