आईसीयू में वेंटीलेटर
आईसीयू में वेंटीलेटर की बात की जाए तो उसमें सांस लेने के कई सर्किट, कंट्रोल सिस्टम के साथ मॉनिटर और अलॉर्म होता है। ब्रीदिंग सर्किट का इस्तेमाल कर गैस भेजी जाती है। आईसीयू के वेंटीलेटर की खासियत यह भी है कि यह गैस को गर्म करने के साथ भाप भी बना देता है। ऐसा करने से मरीज सामान्य तौर पर सांस छोड़ पाता है। आईसीयू (intensive care unit) के वेंटीलेटर ज्यादातर वॉल गैस सप्लाई से जुड़े होते हैं। इसलिए मरीज के बेड तक गैस आसानी से पहुंच जाता है। कई वेंटीलेटर माइक्रोप्रोसेसर युक्त होते हैं जिन्हें आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। वहीं जब चाहे तो प्रेशर, वॉल्यूम, एफआई ओ2 की मात्रा को बढ़ाया व घटाया जा सकता है। आईसीयू के वेंटीलेटर को चलाने के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है, ऐसे में बिजली के कनेक्शन या फिर बैटरी की बिजली की मदद से इसको चलाया जाता है।
मरीज को कब और क्यों दिया जाता है आईसीयू में वेंटीलेटर?
आईसीयू में वेंटीलेटर मरीज को उस स्थिति में दिया जाता है जब उसकी स्थिति गंभीर होती है, सही से सांस नहीं ले पाता तो वेंटीलेटर देकर मरीज की जान बचाई जाती है। मेडिकल टर्म में वेंटीलेयर उस मशीन को कहा जाता है जिसकी मदद से हमारे लंग्स ठीक से काम करते हैं। वेंटीलेटर को रेसपिरेटर (respirator), ब्रीदिंग मशीन (breathing machine), मैकेनिकल वेंटिलेशन (mechanical ventilation) के नाम से जाना जाता है।
लोगों को इस बात का भ्रम होता है कि वेंटिलेट मशीन से केवल सांस अंदर की ओर खींची जाती है, बल्कि सच तो ये भी है कि वेंटिलेटर शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड गैस को निकालने का काम भी करता है। आमतौर पर सर्जरी के बाद व्यक्ति सांस लेने में असहाय महसूस कर सकता है, इसलिए उसे कुछ समय के लिए वेंटिलेटर में रखा जाता है। ऐसा आमतौर पर एनेस्थीसिया देने पर होता है, जब व्यक्ति को होश नहीं रहता है। सांस लेने और सांस छोड़ने के दौरान फेफड़े अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में वेंटिलेटर लंग प्रॉब्लम होने पर यूज किया जाता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकती हैं।
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ऐसे किया जाता है ऑपरेट
आईसीयू के वेंटीलेटर को चलाने की बात करें तो यह इतना आधुनिक है कि सही जानकारी के बाद इसे ऑपरेट करना काफी आसान है। वहीं, जो मरीज खुद सांस नहीं ले पाते हैं उन्हें यह अच्छे से सांस पहुंचाता है। वेंटीलेटर की मदद से मरीज को जरूरत के समय या फिर कुछ देर के अंतराल पर ही सांस दी जा सकती है, इसके द्वारा लगातार सांस देते रहना संभव नहीं है। असिस्ट व कंट्रोल मोड की मदद से मरीज को कुछ समय के अंतराल पर आसानी से सांस दी जा सकती है। वहीं वॉल्यूम कंट्रोल ब्रिद की मदद से एक खास गति पर वेंटीलेटर से निकलने वाले ऑक्सीजन को सेट कर दिया जाता है। जिससे मरीज समय- समय पर सामान्य रूप से सांस लेता रहता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकती हैं। प्रेशर कंट्रोल ब्रिद की मदद से मरीज के सांस लेने के प्रेशर को तय मानक के रूप में सेट कर दिया जाता है, जिससे मरीज को सांस लेने में तकलीफ नहीं होती, लेकिन यह तमाम चीजें एक्सपर्ट के निर्देश पर और उनकी आंखों के सामने की जाती हैं।
ऐसे किया जाता है इस्तेमाल
आईसीयू में वेंटीलेटर का इस्तेमाल करने के लिए सबसे पहले यह चेक किया जाता है कि यूनिट इस्तेमाल करने के लिए तैयार है या नहीं। उदाहरण के तौर पर रन परफॉर्मेंस व केलिब्रेशन चेक किया जाता है। इसके बाद सेटिंग्स को अच्छे से देखने के बाद अलॉर्म लेवल की जांच की जाती है, मरीज की स्थिति व मरीज की जांच कर उसी हिसाब से उन्हें ऑक्सीजन पहुंचाया जाता है। यह तमाम जांच करने के बाद मरीज को वेंटीलेटर से जोड़ दिया जाता है। जब आईसीयू में वेंटीलेयर और मरीज दोनों ही आपस में जुड़ जाते हैं तो एक्सपर्ट इस बात की अच्छे से जांच करता है कि मरीज को सामान्य रूप से सांस मिल रही है या नहीं। जब मरीज अच्छे से वेंटीलेटर का इस्तेमाल करने लगता है तो उस स्थिति में एक्सपर्ट मॉनीटर की मदद से मरीज के सेहत की जांच करते हैं, वहीं अलॉर्म के बजने पर वेंटीलेटर को चालू व बंद किया जाता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकती हैं।