शारीरिक परेशानियां अगर शुरू हो जाए या महसूस हो तो ऐसे में डॉक्टर से इलाज करवाना जरूरी होता है। वहीं डॉक्टर्स के लिए भी पेशेंट द्वारा बताये बीमारी के लक्षणों को समझने के साथ-साथ कुछ टेस्ट करवाना भी जरूरी होता है। टेस्ट से बीमारी की गंभीरता पता चलने के साथ-साथ इलाज भी बेहतर तरीके से किया जाता है। इसलिए आज टिल्ट टेबल टेस्ट (Tilt Table Test) से जुड़ी जानकारी शेयर करेंगे।
टिल्ट टेबल टेस्ट क्या है?
टिल्ट टेबल टेस्ट करवाने की सलाह कब दी जाती है?
टिल्ट टेबल टेस्ट से पहले किन-किन बातों की जानकारी होनी चाहिए?
टिल्ट टेबल टेस्ट के लिए कैसे तैयारी करें?
टिल्ट टेबल टेस्ट के दौरान क्या होता है?
टिल्ट टेबल टेस्ट के बाद क्या होता है?
टेस्ट रिपोर्ट क्या हो सकते हैं?
चलिए अब टिल्ट टेबल टेस्ट (Tilt Table Test) से जुड़े इन सवालों का जवाब जानते हैं।
यदि किसी व्यक्ति को अक्सरबेहोशीया चक्कर आने की समस्या रहती है, तो तकलीफ को जानने के लिए डॉक्टर टिल्ट टेबल टेस्ट करते हैं। इस टेस्ट के दौरान पेशेंट टेबल पर लेट जाते हैं और टेबल धीरे-धीरे ऊपर की ओर टिल्ट होने लगता है। इस टेस्ट से गुरुत्वाकर्षण बल के साथब्लड प्रेशर (Blood Pressure) औरहार्ट रेट (Heart Rate) पर क्या प्रभाव पड़ता है इसकी जानकारी मिलती है। नर्स या हेल्थ एक्सपर्ट पेशेंट के ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट पर नजर बनाए रखता है और देखता है कि टेस्ट के दौरान ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट में क्या बदलाव आता है।
निम्नलिखित स्थितियों में टिल्ट टेबल टेस्ट की सलाह दी जाती है। जैसे:
टिल्ट टेबल टेस्ट की सहायता से व्यक्ति को बेहोशी या चक्कर जैसी समस्या के कारणों का पता चलता है। टिल्ट टेबल टेस्ट यह पता लगाने के लिए किया जा सकता है कि चक्कर का कारण कहीं असामान्य हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर तो नहीं है। हार्ट रेट बहुत कम होने पर भी चक्कर आने की समस्या हो सकती है।
बेहोशी के कारणों को समझने के लिए डॉक्टर टिल्ट टेस्ट की सलाह दी जा सकती है। अगर डॉक्टर को संदेह है कि वैसोवेगल सिंकोप बेहोशी का कारण है, तो इसके बाद डायग्नोस की पुष्टि के लिए अन्य टेस्ट भी करवाने की सलाह दी जा सकती है।
यह टेस्टहृदय की मांसपेशियों या वॉल्व से जुड़ी किसी भी समस्या का निदान करने के लिए किया जा सकता है। हृदय की मांसपेशियों में वृद्धि या दिल के वॉल्व में से एक या ज्यादा खराबी हृदय के भीतर रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध कर सकती है।
टिल्ट टेबल टेस्ट से पहले किन-किन बातों की जानकारी होनी चाहिए?
जो मरीज बार-बार बेहोश होते हैं और कारण का पता नहीं चल पा रहा है, तो टिल्ट टेबल टेस्ट के लिए कहा जा सकता है।
टिल्ट टेबल टेस्ट से कुछ जोखिम जुड़े हैं। लोग टेस्ट के दौरान बेहोश हों ऐसा कम ही होता है। अगर बेहोश हों भी तो यह सुरक्षित है, क्योंकि इस दौरान डॉक्टर एवं हेल्थ एक्सपर्ट की टीम पेशेंट की हेल्थ पर नजर बनाए रखते हैं । यदि किसो को टेस्ट के दौरानचक्कर आता भी है तो कुछ ही देर में वह ठीक महसूस करने लगते हैं या फिर जैसे ही टेबल सीधा होता है चक्कर आना बंद हो जाता है। टेस्ट के बाद पेशेंटथकान और पेट में कुछ तकलीफ महसूस कर सकते हैं। वैसे तो टिल्ट टेबल टेस्ट सुरक्षित होता है, मगर कुछ संभावित जटिलताएं हो सकती हैं जैसे:
टिल्ट टेबल टेस्ट से 2 घंटे या उससे भी पहले पेशेंट को कुछ खाने और पीने की सलाह नहीं दी जाती है। वैसी इसकी जानकारी डॉक्टर पेशेंट को या उनके केयर टेकर को जरूर देते हैं।
टिल्ट टेबल टेस्ट के दौरान क्या होता है?
टिल्ट टेबल टेस्ट के दो भाग होते हैं और दोनों भाग करने में 90 मिनट तक का वक्त लग सकता है, लेकिन यदि एक ही भाग किया जाए तो उसमें 30 से 40 मिनट का समय लगता है।
टेस्ट का पहला भाग
टेस्ट का पहला हिस्सा दिखाता है कि पुजीशन बदलने पर आपका शरीर किस तरह से प्रतिक्रिया करता है।
टेबल पर पीठ के बल लेट जाते हैं। कमर और घुटनों पर बंधी पट्टियां आपको सीधा बने रहने में मदद करती है। बांह में IV (इंट्रावेनस लाइन) डाली जाती है। वायर से जुड़े छोटे से डिस्क को आपकी छाती से कनेक्ट किया जाता है और उसे हार्ट बीट ट्रेक करने के लिए ECG मशीन से जोड़ा जाता है। बांह पर लगे कफ से ब्लड प्रेशर मापा जाता है।
नर्स टेबल को ऊपर की ओर उठाती है जिससे आपका सिर बाकी शरीर से थोड़ा ऊंचा (30 डिग्री) हो जाता है। नर्स आपका ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट चेक करती है।
5 मिनट के बाद नर्स टेबल को थोड़ा और ऊपर करती है। अब आप 60 डिग्री या इससे भी ऊपर हो जाते हैं। नर्स लगातार 45 मिनट तक आपका ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट चेक करती है। नर्स आपको इस दौरान शांत और स्थिर रहने के लिए कहेगी, लेकिन असहज महसूस होने पर आप नर्स को बता सकते हैं।
यदि आपकाब्लड प्रेशर इस दौरान कम होता है तो नर्स टेबल को नीचे करके टेस्ट रोक देगी। आपको टेस्ट का दूसरा भाग करवाने की जरूरत नहीं है। यदि टेबल ऊपर करने के दौरान आपका ब्लड प्रेशर कम नहीं होता है तो नर्स टेस्ट का दूसरा भाग करेगी।
टेस्ट का दूसरा भाग
टेस्ट का यह हिस्सा दिखाता है कि हार्ट बीट को तेज और मजबूत करने वाली दवा (आइसोप्रोटीनॉल) के प्रति शरीर कैसी प्रतिक्रिया देता है। यह दवा हार्मोन एड्रेनालाईन की तरह है जो आपके शरीर को तनाव में होने पर उत्पन्न होता है। यह दवा लेने पर आपको ऐसा महसूस होगा जैसे आप एक्सरसाइज कर रहे हैं। यदि आपका ब्लड प्रेशर टेस्ट के पहले हिस्से में नहीं बदला है तो यह आपको टिल्ट टेबल टेस्ट के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है।
नर्स आईवी ट्यूब के माध्यम से दवा देती है।
फिर वह टेबल को ऊपर 60 डिग्री तक ले जाती है।
दवा लेने की वजह से आपको हार्ट बीट बढ़ी हुई महसूस होगी।
यदि आपका ब्लड प्रेशर कम होता है तो नर्स टेबल को नीचे झुका देगी व दवा देना भी बंद कर देगी और टेस्ट खत्म हो जाएगा।
यदि आपका ब्लड प्रेशर 15 मिनट तक कम नहीं होता है तो नर्स टेबल नीचे कर देगी और टेस्ट पूरा हो जाएगा।
यदि आप टेस्ट के दौरान बेहोश हो जाते हैं तो टेबल को तुरंत सीधा कर दिया जाता है और डॉक्टर आपकी जांच करेगा। अधिकांश लोग तुंरत होश में आ जाते हैं।
कुछ मामलों में यदि ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट में बदलाव संकेत देता है कि आप बेहोश होने वाले हैं तो टेबल को तुरंत सीधा कर दिया जाता है और आप बेहोश नहीं होते हैं
टिल्ट टेबल टेस्ट से जुड़े किसी सवाल और इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए, कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
टेस्ट रिपोर्ट क्या हो सकते हैं?
अगर टेस्ट के दौरान आपका ब्लड प्रेशर कम नहीं होता है और आपके पास कोई अन्य लक्षण नहीं हैं, तो परीक्षण के परिणाम नकारात्मक (सामान्य) हो सकते हैं।
अगर परीक्षण के दौरान आपका रक्तचाप कम हो जाता है और आप बेहोश या चक्कर महसूस करते हैं, तो परीक्षण सकारात्मक हो सकता है। ऐसी स्थिति में आपका डॉक्टर आपकी दवाओं को बदलने या अधिक परीक्षण करने का सुझाव दे सकते हैं। अगर आपकी बेहोशी धीमी गति से हृदय गति (ब्रैडीकार्डिया) के कारण होती है, तो आपका डॉक्टरपेसमेकर की सलाह दे सकते हैं।
स्वस्थ्य रहने के लिए अपने दिनचर्या में नियमित योगासन शामिल करें। योग की शुरुआत करने से पहले नीचे दिए इस वीडियो लिंक पर क्लिक करें और योग के फायदे (Benefits of yoga) और योग करने के लिए क्या है सही तरीका इसे समझें। ध्यान रखें गलत तरीके से योग करने से शारीरिक परेशानी बढ़ सकती है।
डिस्क्लेमर
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