माइक्रोसेफली के अन्य संभावित कारणों में शामिल हैं –

ऊपर बताए कारणों के अलावा कई बार वायरस से प्रभावित होने पर भी मस्तिष्क का विकास (brain devlopment) प्रभावित होता है। प्रेग्नेंट महिला के कई तरह के वायरस के संपर्क में आने से गर्भ में पल रहे शिशु को माइक्रोसेफली होने का खतरा बढ़ जाता है।
जीका वायरस (zika virus)- संक्रमित मच्छर इंसानों में जीका वायरस फैला सकता है। प्रेग्नेंसी के दौरान (during pregnancy) यदि महिला इससे संक्रमित होती है तो यह शिशु तक पहुंच सकता है और इसकी वजह से बच्चा इस न्यूरोलॉजिकल स्थिति और अन्य जन्मजात रोगों से ग्रसित हो सकता है जैसे-
- देखने और सुनने में परेशानी
- सही विकास न होना
- मिथाइलमर्करी पॉइजनिंग (Methylmercury poisoning)
कुछ लोग मिथाइलमर्करी का उपयोग जानवरों को खिलाए जाने वाले दानों को संरक्षित करने के लिए करते हैं। साथ यह पॉइजनिंग पानी में भी बन सकती है, जिससे मछलियां भी जहरीली हो जाती है। ऐसे में यदि कोई दूषित सीफूड या ऐसे जानवरों का मीट खाते हैं जिसने मिथाइलमर्करी वाला दाना खाया हो तो यह उनके शरीर में भी प्रवेश कर जाता है और यदि प्रेग्नेंट महिला (pregnant women)ऐसी चीजों का सेवन कर ले तो इस जहर का असर शिशु के मस्तिष्क विकास (child brain development) पर होता है और इससे स्पाइनल कॉर्ड इंजरी (spinal cord injury) भी हो सकती है।
जन्मजात रूबेला (Congenital rubella)- यदि प्रेग्नेंसी के पहले 3 महीने में आम जर्मन मिजल्स या रूबेला फैलाने वाले वायरस के संपर्क में आती हैं तो बच्चे में गंभीर विकास संबंधी समस्या हो सकता है
- बहरापन (hearing loss)
- बौद्धिक विकलांगता
- सिजर्स
हालांकि रूबेला वैक्सीन (rubella vaccine) की वजह से यह स्थितियां अब आम नहीं रह गई हैं।
जन्मजात टोक्सोप्लाज़मोसिज़ (Congenital toxoplasmosis)- यदि आप प्रेग्नेंसी के दौरान पैरासाइट टोक्सोप्लाज़मोसिज़ गॉन्डी (toxoplasmosis gondii) से पीड़ित होती हैं, तो बच्चे में विकास संबंधी समस्या हो सकती है। प्रीमेच्योर डिलिवरी (premature delivery) के साथ ही बच्चे को कई शारीरिक परेशानियां हो सकती हैं-
- सिजर्स (Sizers)
- अंधापन और बहरापन
यह पैरासाइट बिल्ली के मल और कुछ बिना पके भोजन में पाया जाता है।
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डिलिवरी की जटिलताएं (complications in delivery)
यह न्यूरोलॉजिकल स्थिति कई बार डिलिवरी के समय होने वाली जटिलताओं के कारण भी हो सकती है। बच्चे के मस्तिष्क तक ऑक्सीजन सप्लाई (oxygen supply) कम होने पर इस डिसऑर्डर का खतरा बढ़ जाता है। मां का गंभीर कुपोषण भी इसकी संभावना बढ़ा देता है।
माइक्रोसेफली का निदान कैसे किया जाता है? (Microcephaly diagnosis)
आपके बच्चे को माइक्रोसफली है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर विस्तार से बच्चे के जन्म से पहले, जन्म और फैमिली हिस्टी के बारे में पूछता है और शारीरिक परीक्षण (physical examination)) करता है। वह आपके बच्चे की सिर के घेरे को मापता है और उम्र के अनुसार विकास चार्ट से उसकी तुलना करता है और भविष्य में विकास के बारे योजना बनाता है। पैरेंट्स के सिर का आकार भी मापा जाता है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं छोटे सिर का पारिवारिक इतिहास तो नहीं है। कुछ मामलों में यदि आपके बच्चे का विकास धीमा है, तो डॉक्टर आपको सीटी स्कैन (CT scan) या एमआरई (MRI) और ब्लड टेस्ट (blood tests) करके इसके अंर्तनिहित कारणों को जानने की कोशिश करता है।
माइक्रोसेफली का उपचार (Microcephaly Treatment)

क्रेनियोसेनोस्टोसिस (craniosynostosis) एक प्रकार का बर्थ डिफेक्ट (Birth defect) है जिसमें बच्चे की खोपड़ी में हड्डियां बहुत जल्दी एक साथ जुड़ जाती हैं और ऐसा बच्चे के मस्तिष्क के पूरी तरह से बनने से पहले ही हो जाता है। सिर्फ क्रेनियोसेनोस्टोसिस (बच्चे की खोपड़ी में हड्डियां बहुत जल्दी जुड़ जाती हैं) के लिए सर्जरी (surgery) की जाती है, जबकि माइक्रोसेफली के लिए कोई इलाज नहीं है जो बच्चे के सिर का आकार बढ़ा सकते या अन्य जटिलताओं को खत्म कर सकते। उपचार सिर्फ इस स्थिति को मैनेज करने पर केंद्रित होता है यानी इस स्थिति के साथ ही बच्चे को कैसे बेहतर जिंदगी के लिए प्रेरित किया जा सकता है। चाइल्डहुड इंटरवेन्शल प्रोग्राम (childhood Internationale program ) जिसमें स्पीच, फिजिकल और ऑक्यूपेशनल थेरेपी शामिल है वह बच्चे की क्षमताओं को मजबूत करने में मदद कर सकता है। माइक्रोसेफली के कारण होने वाली कुछ जटिलताओं के लिए डॉक्टर दवा की सलाह दे सकता है जैसे सिजर्स (seizure ) या हाइपरएक्टिविटी (hyperactivity)।