बच्चे और मां के बीच गर्भनाल होती है जिससे सारा पोषण उस तक पहुंचता है। शिशु को जब मां के गर्भ से बाहर निकाला जाता है तो गर्भनाल काट दी जाती है। इसके तुरंत बाद शिशु को उल्टा लटकाकर उसके फेफड़ों से एम्नियोटिक द्रव को निकाला जाता है। ऐसा करना बहुत जरूरी होता है। इससे फेफड़ों को सास लेने के लिए तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए जरूरी है कि बच्चा लंबी-लंबी सांसे लें। लंबी सांसे लेने पर उसके फेफड़ों के हर कोने से एम्नियोटिक द्रव निकल जाएगा और श्वास का मार्ग खुल जाता है और वायु का संचार होने लगता है।
यही कारण है कि रोने की क्रिया बेहद जरूरी होती है। कई बार बच्चा जन्म के बाद नहीं रोता है तो उसकी पीठ पर थप्पड़ लगाकर रुलाया जाता है। डिलिवरी की प्रक्रिया मां और बच्चे दोनों के लिए बहुत मुश्किलों भरी होती है। बच्चे को एक संकरे मार्ग से निकलकर बाहर आना होता है। बाहर जो उसे वातावरण मिलता है वो मां के शरीर के अंदर के वातावरण से काफी अलग होता है। मां के गर्भ में वह खुद को बेहद सुरक्षित पाता है। उस माहौल से निकलकर बाहर की दुनिया देखकर भी शिशु का रोना का कारण हो सकता है। कुल मिलाकर बच्चे के रोने से उसके स्वास्थ्य के बारे में पता चल पाता है।
डिलिवरी के ठीक बाद अगर आपका बच्चा न रोए तो?
ऐसा बहुत बार हुआ है कि डिलिवरी के समय शिशु का रोना नहीं हो पाता हैं, उनके लिए शायद यह एक सामान्य बात हो सकती है। लेकिन, अगर आप यह देखेंगे या सुनेंगे तो आपके लिए यह बात बहुत ही असामान्य हो सकती है। शिशु का रोना यह दर्शाता है कि उसके फेफड़े एकदम सही है और वो अच्छे से सांस ले सकता है। अगर आपका बच्चा डिलिवरी के बाद तुरंत न रोए तो घबराए नहीं। बहुत बार ऐसा होता है कि बच्चा पहले हाथ पैर हिलाता है और कुछ देर बाद रोता है। इसलिए ऐसी अवस्था में पैनिक करने की जरूरत नहीं है।
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यदि बच्चा जन्म के समय रोता है तो उसके शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन जाती है। ऐसा होने से उसके मस्तिष्क का विकास होता है। बहुत सारे बच्चे जन्म के समय देरी से रोते हैं। ऐसे बच्चों के दिमाग में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है। इन बच्चों में मानसिक विकृति का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में इन बच्चों को सीएफएम मशीन से रोने का पता लगाकर आगे का इलाज दिया जाता है।