बड़े होकर हम सब भले ही अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हो लेकिन जीवन की शुरुआत तो खेल से ही होती है। खेल हर बच्चे का पसंदीदा होता है। बच्चे भले ही दिन में एक बार खाना भूल जाएं लेकिन वो खेल खेलना नहीं भूल सकते हैं। खेल एक तरह का फन है, जो बच्चे हेल्दी डेवलपमेंट के लिए बहुत जरूरी होता है। खेल से बच्चों के इमोशनल स्किल का भी डेवलपमेंट होता है। खेल के माध्यम से बच्चों की इमेजिनेशन पॉवर, क्रिएटिविटी भी बढ़ती है। बच्चे खेल-खेल में प्रॉब्लम सॉल्व करना भी सीख जाते है। हम सभी जानते हैं बच्चे खुद के खेल आसानी से बना लेते हैं और फिर अपने भाई-बहनों के साथ खेलते हैं। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बच्चों में खेल के प्रकार (Types of play) या प्ले टाइप के बारे में बताएंगे। खेल के प्रकार के बारे में लोगों को कम ही जानकारी होती है। आइए जानते हैं बच्चों से जुड़े इस अहम विषय के बारे में।
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बच्चों में खेल के प्रकार (Types of play)
अर्ली चाइल्डहुड के दौरान खेल छह प्रकार के होते हैं, जो कि बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। बच्चों को इन खेलों के माध्यम से खुद को निखारने का मौका मिलता है और साथ ही उन्हें बहुत मजा भी आता है। जानिए खेलों के कुछ प्रकार के बारे में।
अनऑक्युपाइड प्ले (Unoccupied Play)
तीन महीने तक के शिशु अनऑक्युपाइड खेल (Unoccupied Play) खेलते हैं। इसे खेल की पहली स्टेज भी कहा जा सकता है। हो सकता है कि देखने में आपको ये खेल जैसा बिल्कुल न लगे लेकिन बच्चों के लिए ये खेल की शुरुआत है। बच्चे अपने हाथ पैरों को हिलाना शुरू कर देते हैं। कुछ बच्चे अपने बालों को बार-बार छू कर खेलते हैं। अपने आस-पास की चीजों को छूना या फिर नई चीजों को देर तक देखना बच्चों के खेल में शामिल होता है। माता-पिता को ऐसे में बच्चों से बातें करनी चाहिए या फिर बच्चे जो गतिविधि कर रहे हैं, आप भी उसमें उनका प्रोत्साहन बढ़ा सकते हैं।
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अकेले खेलना (Solitary Play)
छह माह से करीब दो साल तक के बच्चे इंडिपेंडेंट यानी स्वतंत्र रूप से खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं। अगर ये कहा जाए कि बच्चे खुद को इंटरटेन करना शुरू कर देते हैं, तो ये गलत नहीं होगा। बच्चों में खेल के प्रकार (Types of play) या प्ले टाइप में सॉलिटरी प्ले अहम प्रकार है, क्योंकि इसमें बच्चे खुद खेलना सीखते हैं और खेल-खेल में कई बातें भी सीखते हैं। ऐसे में बच्चों को खिलौनों खासतौर जानवरों या फिर ट्रेस-अप कॉस्ट्यूम आदि से खेलना बहुत अच्छा लगता है। इस उम्र में बच्चों को किताबों में विभिन्न प्रकार के चित्रों को देखना भी खूब भाता है। चूंकि बच्चे दो से तीन साल की उम्र में सेल्फ फोकस (Self focus) करने लगते हैं। अगर बच्चे को साथ खेलने वाले अन्य लोग हैं, तो बच्चे आपस में भी खेलना सीख जाते हैं। वहीं शर्मीले बच्चे (Shy kids) बड़ी उम्र तक अकेले ही खेलना पसंद करते हैं।
बच्चों में खेल के प्रकार: ऑनलुकर प्ले (Onlooker Play)
जिस तरह से आप और हम कोई नई चीज देखकर सीखते हैं, वैसा ही बच्चों में भी होता है। ऑनलुकर प्ले (Onlooker Play) में बच्चा अन्य बच्चों के खेल को देर तक देखता है और फिर उनसे सीखता है। दो से तीन साल के बच्चो लिए ये खेल आम है। वहीं यंगर चिल्ड्रन ऑनलुकर प्ले से सीखकर खेलना शुरू कर देते हैं। बच्चा खेल को देखते-देखते अपनी स्किल भी डेवलप करने लगता है। अगर आप ध्यान नहीं देंगे, तो आपको एहसास होगा कि कुछ दिनों में आपका बच्चा नया गेम सीख गया है और आपको पता भी नहीं चला। आपको ऐसे में ये ध्यान रखने की भी जरूरत है कि बच्चा कहीं कुछ गलत तो नहीं सीख रहा है।
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बच्चों में खेल के प्रकार: पैरलल प्ले (Parallel Play)
अगर आप दो से तीन बच्चों के एक कमरे में साथ बिठा देंगे, तो पाएंगे कि कुछ ही समय बाद उनका खेल शुरू हो गया है। हो सकता है कि केवल दो ही बच्चे आपस में खेल रहे हो और तीसरा बच्चा किसी और काम में लगा हो। पैरलल प्ले या समानांतर खेल के माध्यम से भी बच्चे एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखते हैं। समानांतर खेल में एक-दूसरे के साथ कार खेलना, एक-दूसरे की नकल उतारना या फिर ड्रॉइंग (Drawing) करना शामिल है। बच्चों को आकार पेंट करना पसंद आता है, आप उन्हें उनका पसंदीदा शेप बना कर कलर करने के लिए कह सकते हैं।
एसोसिएटिव प्ले (Associative Play)
ये प्ले समानान्तर प्ले से अलग होता है। तीन से चार साल की उम्र में बच्चे ये खेल खेलना शुरू कर देते हैं। इसमें बच्चे पहले तो खुद से खेलते हैं और फिर बाद में दूसरे बच्चों को भी शामिल कर सकते हैं। मान लीजिए कि एक बच्चे ने ब्लॉक के माध्यम से बिल्डिंग बनानी शुरू की और बिल्डिंग के आधा हो जाने के बाद वो दूसरे बच्चे को भी इस खेल में शामिल कर लेता है। खेल के माध्यम से बच्चे आगे कि प्लानिंग शुरू कर देते हैं, जैसे कि अब क्या बनाया जाए या फिर बिल्डिंग को कैसे और अच्छा बनाया जा सकता है आदि। इस दौरान बच्चों में गहरी दोस्ती भी हो जाती है।
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बच्चों में खेल के प्रकार: सिम्बोलिक प्ले (Symbolic Play)
बच्चों में खेल के प्रकार(Types of play) या प्ले टाइप में सिम्बोलिक प्ले भी शामिल है। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि सिम्बोलिक प्ले में वोकल एक्टिविटी को शामिल किया जाता है। गायन, चुटकुले, या राइम्स की मदद से बच्चे खेलते हैं। क्ले के माध्यम से खेलना या फिर कलर करना आदि सिम्बोलिक प्ले (Symbolic Play) में शामिल है। इस दौरान बच्चों को खुद को एक्सप्लोर करने का मौका मिलता है और साथ ही उन्हें नए आइडिया भी आते हैं। जब बच्चे खेल रहे हो, तो आप भी उनकी मदद कर सकते हैं।
बच्चों के डेवलपमेंट के लिए खेल बहुत जरूरी होता है। बच्चों को अपना टाइम और स्पेस चाहिए होता है और साथ ही पेरेंट्स का सपोर्ट भी। जो बच्चे खेल के माध्यम से सीखते हैं, आप उन्हें पढ़ा कर नहीं सिखा सकते हैं। खेल-खेल में बच्चों को रोचक जानकारियां भी मिलती हैं। अगर आपके बच्चे ने खेलना शुरू कर दिया है, तो इस बात का ध्यान रखें कि बच्चा खेल के दौरान सावधानी रखें और उसे किसी तरह की चोट न पहुंचे। बच्चों को साथ में खेलने दें लेकिन उनपर नजर रखना भी पेरेंट्स के लिए बहुत जरूरी है। अगर आपका बच्चा अकेले या फिर अन्य बच्चों के साथ नहीं खेलता है, तो आपको इस बारे में डॉक्टर को जरूर बताना चाहिए।
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हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार उपलब्ध नहीं कराता हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से आपको बच्चों में खेल के प्रकार (Types of play) या प्ले टाइप के बारे में जानकारी मिल गई होगी। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्स्पर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।
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