लिवर फाइब्रोसिस (Liver fibrosis) उस स्थिति को कहते हैं जब लिवर के हेल्दी टिशूज पर घाव हो जाते हैं और वह ठीक से काम नहीं कर पाता। फाइब्रोसिस से घायल हुए टिशूज लिवर के अंदर ब्लड के फ्लो को ब्लॉक कर देते हैं। इससे स्वस्थ लिवर कोशिकाएं मर जाती हैं और टिशूज को नुकसान पहुंचता है। फाइब्रोसिस लिवर डैमेज की पहली स्टेज है जब लिवर इससे भी ज्यादा डैमेज हो जाता हैं तो इसे लिवर सिरोसिस (liver cirrhosis) कहा जाता है, जो कि लिवर की एक गंभीर बीमारी है। इसमें लिवर ट्रांसप्लांट (Liver Transplant) तक करवाना पड़ जाता है। कुछ एनिमल स्टडीज में लिवर की खुद से हील करने की क्षमता के बारे में बताया गया है जबकि अगर ह्यूमन्स में एक बार लिवर के डैमेज होने पर यह आमतौर पर ठीक नहीं होता। हालांकि दवाओं और जीवनशैली में बदलाव करके फाइब्रोसिस को सिरोसिस तक पहुंचने से बचाया जा सकता है।
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लिवर फाइब्रोसिस की स्टेज (stages of liver fibrosis)
लिवर फाइब्रोसिस की अलग-अलग स्टेजेज हैं। डॉक्टर लिवर डैमेज के आधार पर डिग्री निर्धारित करता है। इसकी स्टेज व्यक्ति पर निर्भर करती है। किसी का लिवर दूसरे के लिवर से ज्यादा डैमेज हो सकता है। हालांकि डॉक्टर लिवर फाइब्रोसिस के लिए स्टेज जरूर निर्धारित करते हैं क्योंकि इससे मरीज और दूसरे डॉक्टर्स भी समझ पाते हैं कि लिवर कितना प्रभावित हुआ है।
लिवर फाइब्रोसिस के लिए जिस स्कोर सिस्टम का सबसे ज्यादा यूज किया जाता है वो है एमईटीएवीआईआर स्कोरिंग सिस्टम (METAVIR scoring system)। इस सिस्टम में एक्टिविटी “Activity’ के लिए एक स्कोर दिया जाता है। जिसमें यह अनुमान लगाया जाता है कि फाइब्रोसिस (fibrosis) कितना बढ़ रहा है। डॉक्टर लिवर की बायोप्सी या टिशू सेंपल लेने के बाद ही स्कोर असाइन करता है। एक्टिविटी ग्रेड की रेंज A0 से A3 तक होती है।
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A0- नो एक्टिविटी (no activity)
A1- माइल्ड एक्टिविटी (mild activity)
A2- मॉडरेट एक्टिविटी (moderate activity)
A3- सीवियर एक्टिविटी (severe activity)
फाइब्रोसिस की स्टेज F0-F4
F0- फाइब्रोसिस नहीं (No fibrosis)
F1- पोर्टल फाइब्रोसिस (Portal fibrosis)
F2- नए सेप्टा के साथ पोर्टल फाइब्रोसिस (Portal fibrosis with new septa)
F3- सिरोसिस के साथ कई सेप्टा (numerous septa with cirrhosis)
F4- सिरोसिस (cirrhosis)
A3, F4 MERAVIR Score को गंभीर बीमारी का संकेत माना जाता है। दूसरे स्कोरिंग सिस्टम में बैट्स (Batts) और ल्यूडविग (Ludwig) है। जिसमें फाइब्रोसिस के लिए 1 से 4 तक ग्रेड दिया जाता है। इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ द स्टडी ऑफ द लिवर (IASL) भी चार कैटेगरी में स्कोर देता है जिसमें मिनिमल क्रोनिक हेपेटाइटिस (minimal chronic hepatitis) से सीवियर क्रोनिक हेपेटाइटिस (Severe Chronic hepatitis) की रेंज तक स्कोर दिया जाता है।
लिवर फाइब्रोसिस के लक्षण क्या हैं?
डॉक्टर लिवर फाइब्रोसिस के बारे में इसकी माइल्ड से मॉडरेट स्टेज पर पता नहीं लगा सकते क्योंकि लिवर फाइब्रोसिस के लक्षण दिखाई नहीं देते जब तक कि लिवर डैमेज नहीं हो जाता। जब लिवर डिजीज की शुरुआत होने लगती है तब निम्न लक्षण दिखाई देते हैं।
- भूख में कमी
- सोचने और निर्णय लेने की क्षमता में कमी
- पैरों और पेट में गैस बनना
- पीलिया
- उल्टी आना
- अचानक वजन कम होना
- कमजोरी
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एक स्टडी के अनुसार दुनियाभर में 6-7 प्रतिशत लोग फाइब्रोसिस के शिकार होते हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं होता क्योंकि इसके लक्षण शुरुआती तौर पर दिखाई नहीं देते।
लिवर फाइब्रोसिस का कारण क्या हैं? (What are the causes of liver fibrosis)
लिवर फाइब्रोसिस तब होता है जब कोई व्यक्ति को लिवर में इंजरी या इंफ्लामेशन होता है। इस दौरान लिवर की कोशिकाएं घाव को भरने के लिए स्टिम्युलेट होती हैं। हीलिंग के दौरान प्रोटीन जैसे कि कोलेजन (Collagen) और ग्लाइकोप्रोटीन्स (glycoproteins) लिवर में बिल्ड अप हो जाते हैं। कई बार रिपेरिंग करने के बाद लिवर सेल्स रिपेयर नहीं कर पातीं जो फाइब्रोसिस का कारण बनता है।
कई प्रकार की लिवर की बीमारियां हैं जो फाइब्रोसिस का कारण बनती हैं। जिनमें शामिल हैं:
- ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (autoimmune hepatitis)
- आयरन की अधिक मात्रा (iron overload)
- नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज nonalcoholic fatty liver disease, जिसमें नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर (NAFL) और नॉन एल्कोहॉलिक स्टिटोहेपेटाइटिस nonalcoholic steatohepatitis (NASH) शामिल है।
- वायरल हेपेटाइटिस बी और सी (viral hepatitis B and C)
- एल्कोहॉलिक लिवर डिजीज (alcoholic liver disease)
लिवर फाइब्रोसिस का सबसे सामान्य कारण नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) है। दूसरा सबसे सामान्य कारण एल्कोहॉलिक लिवर डिजीज है जो लंबे समय तक एल्कोहॉल का उपयोग करने से होती है।
लिवर फाइब्रोसिस का निदान (Diagnosis)
डॉक्टर लिवर से जुड़ी इस बीमारी का पता लगाने के लिए कुछ टेस्ट करते हैं। उनके बारे में भी जान लेते हैं।
लिवर बायोप्सी (Liver biopsy)
लिवर फाइब्रोसिस की जांच के लिए डॉक्टर लिवर बायोप्सी कर सकते हैं। ये एक सर्जिकल प्रोसेस होता है, जिसमें डॉक्टर टिशू सैम्पल ले सकते हैं। स्पेशलिस्ट टिशू सैम्पल में स्कारिंग या फाइब्रोसिस की जांच करता है। यह प्राथमिक परीक्षण् होता है लिवर से जुड़ी बीमारी का पता लगाने के लिए।
ट्रांसिएंट एलास्टोग्राफी (Transient elastography)
लिवर फाइब्रोसिस के डायग्नोज के लिए अन्य ऑप्शन ट्रांसिएंट एलास्टोग्राफी होता है। इसे इमेजिंग टेस्ट भी कहते हैं। ये टेस्ट लिवर की कठोरता की जांच के लिए किया जाता है। लिवर फाइब्रोसिस के कारण लिवर कठोर हो जाता है, जिसकी जानकारी टेस्ट के दौरान मिल जाती है। इस टेस्ट में लो फ्रीक्वेंसी साउंड वेव्स का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि कुछ अन्य कारणों से भी लिवर स्टिफ हो सकता है। इसलिए अगर डॉक्टर को किसी तरह का डाउट होता है तो वह लिवर बायोप्सी का ही सहारा लेता है।
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नॉन सर्जिकल टेस्ट (Nonsurgical tests)
नॉन सर्जिकल टेस्ट में सर्जरी की जरूरत नहीं होती है। इसमें ब्लड टेस्ट किया जाता है। क्रोनिक हेपेटाइटिस सी संक्रमण वाले व्यक्तियों के लिए ये टेस्ट किया जा सकता है क्योंकि उन्हें लिवर फाइब्रोसिस की अधिक संभावना रहती है।
उपरोक्त टेस्ट के साथ ही डॉक्टर ऐसे टेस्ट भी कर सकते हैं, जिनमें कैल्युकुलेशन की जरूरत होती है। कुछ टेस्ट जैसे कि एमिनोट्रांस्फरेज-टू-प्लेटलेट रेशियो (aminotransferase to platelet ratio) या फिर ब्लड टेस्ट (blood test called) जैसे कि फाइब्रोस्योर (Fibrosure) आदि लिवर फंक्शन के छह मार्कर को नापने का काम करता है। इन टेस्ट के माध्यम से लिवर फाइब्रोसिस की स्टेज के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। डॉक्टर पहले व्यक्ति के लक्षणों के आधार पर डायग्नोज करेंगे। अधिकतर मामलों में पहली स्टेज में बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। टेस्ट के बाद अब हम इस बीमारी ट्रीटमेंट के बारे में भी जान लेते हैं।
लिवर फाइब्रोसिस के लिए ट्रीटमेंट (Treatment options)
लिवर फाइब्रोसिस के लिए ट्रीटमेंट फाइब्रोसिस के कारण पर निर्भर करता है। डॉक्टर अंडरलाइन इलनेस का इलाज करेंगे जिससे लिवर फाइब्रोसिस में भी राहत मिलेगी। जैसे अगर कोई इंसान अधिक मात्रा में एल्कोहॉल का सेवन करता है तो डॉक्टर शराब छोड़ने की सिफारिश कर सकता है ताकि यह ट्रीटमेंट प्रोग्राम को सपोर्ट करें। अगर मरीज को नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज है तो डॉक्टर वजन कम करने के लिए डायट में चेंज करने की सलाह भी दे सकता है। इसके साथ ही ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए मेडिकेशन और एक्सरसाइज भी बता सकता है। वजन कम करने से बीमारी की प्रोग्रेस धीमी हो सकती है। इसके साथ ही डॉक्टर एंटीफायब्रोटिक्स (antifibrotics) दे सकता है। यह लिवर स्केरिंग (liver scarring) को कम करता है।
अभी वैज्ञानिक इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं ताकि ऐसे ट्रीटमेंट्स को ला जा सकें जो लिवर फाइब्रोसिस को रिवर्स कर सके। हांलाकि अभी के समय में अगर कोई व्यक्ति लिवर फाइब्रोसिस की गंभीर स्थिति में पहुंच गया है तो उसके पास लिवर ट्रांसप्लांट के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है।
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आपको बता दें कि लिवर सिरोरिस दुनिया में मौत का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। इसलिए जरूरी है कि लिवर फाइब्रोसिस का इलाज समय रहते करवा लिया जाए क्योंकि यही आगे चलकर लिवर सिरोसिस में बदल जाता है। इसके शुरुआती सिम्पटम्स के बारे में पता न चलना भी इसका सबसे बड़ा जोखिम है।
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