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2. खून की जांच से प्रेग्नेंसी टेस्ट
गर्भावस्था की बिल्कुल शुरुआती स्थिति में गर्भ के बारे में जानकारी जुटाने के लिए कभी-कभार खून की भी टेस्ट की जाती है। यह टेस्ट यूरिन की जांच से ज्यादा संवेदनशील होती है। खून की जांच से डिंबोत्सर्जन के 6 दिन बाद ही या निषेचित अंडे के प्रत्यारोपण के तत्काल बाद ही आपकी गर्भावस्था के बारे में पक्की जानकारी मिल सकती है। इस तरह की जाँच से अस्थानिक (एक्टोपिक) या मोलर प्रेग्नेंसी का भी पता लगाया जा सकता है।
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3. अल्ट्रा साउंड तकनीक से प्रेग्नेंसी टेस्ट
इस तकनीक में उच्च आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) वाली ध्वनि तरंगों को गर्भाशय में शिशु तक भेजा जाता है, जो वापस लौटकर कंप्यूटर स्क्रीन पर तस्वीर में बदल जाती हैं। इस तरह की जाँच में एमनियोटिक द्रव (वह तरल पदार्थ, जिसमें शिशु रहता है) ध्वनि तरंगों के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता है। इसलिए, यह द्रव तस्वीर में काला नज़र आता है। जबकि, हड्डी जैसे ठोस ऊत्तक सफेद रंग में और नरम ऊत्तक स्लेटी या चितकबरे रंग में दिखाई देते हैं। इन तीनों रंगों (स्लेटी, काला और सफ़ेद) की अलग-अलग स्थितियों की तुलना करके डॉक्टर गर्भ में मौजूद शिशु की सही स्थिति की व्याख्या करते हैं।
अगर आपको प्रेग्नेंसी के लक्षण दिख रहे हैं तो सही जांच के लिए बेहतर हो कि आप डॉक्टर से संपर्क करें। कई बार फॉल्स प्रेग्नेंसी के लक्षण भी महिलाओं में भ्रम की स्थिति पैदा कर सकते हैं। ऐसी समस्या से बचने के लिए बेहतर होगा कि डॉक्टर से संपर्क करें। कई बार पीरियड्स के मिस होने पर भी घर में ही टेस्ट करते हैं और रिजल्ट को सच मान लेते हैं। भ्रम की स्थिति से बचने से बचने के लिए आप विश्वसनीय तरीका अपनाएं।
उम्मीद है कि इस लेख को पढ़ने के बाद, घरेलू प्रेग्नेंसी टेस्ट से जुड़ी आपकी सभी शंकाओं और सवालों के जवाब मिल गए होंगे। कमेंट बॉक्स में घरेलू प्रेग्नेंसी टेस्ट से जुड़े अपने रोचक अनुभवों के बारे में बताना न भूलें। साथ ही अगर आप प्रेग्नेंसी टेस्ट करने का कोई और घरेलू नुस्खा जानते हैं, तो उसके बारे में भी हमें जरूर बताएं।