मोलर प्रेग्नेंसी के क्या कारण हैं? (Causes of Molar Pregnancy)
गर्भावस्था में 20 साल की उम्र से कम और 35 साल से बड़ी महिलाओं को इसका सबसे अधिक खतरा है। मोलर प्रेग्नेंसी एक तरह से जेनेटिक समस्या भी है।
अगर महिला के परिवार में किसी अन्य को गर्भावस्था की यह समस्या हो चुकी है तो दोबारा इसके होने की संभावना बनी रहती है। यदि कोई महिला लंबे समय तक एंटी-प्रेग्नेंसी दवाइयों का सेवन करती है तो उसे ये परेशानी होने की संभावना रहती है। किसी महिला का एक से अधिक बार गर्भपात हुआ हो तो भी दाढ़ गर्भावस्था को खतरा बना रहता है।
कई बार जब महिला के अंडे को निषेचित किया जाता है तो उनके फर्टिलाइज किए गए अंडे में 23 क्रोमोसोम होते हैं। उचित गर्भधारण के लिए पुरुष के शुक्राणुओं में भी 23 क्रोमोसोम की आवश्यकता होती है, जबकि उस समय 46 क्रोमोसोम हो जाते हैं। इस प्रकार दोनों के गुणसूत्रों को मिलाकर 46 के बजाए महिला के ओवम में 69 क्रोमोसोम आ जाते हैं। जिससे प्रेग्नेंसी में गर्भावस्था में भ्रूण के साथ प्लासेंटा में कुछ असामान्य टिश्यूज भी विकसित हो जाते हैं। इसे मल्टीपल प्रेग्नेंसी भी कहा जाता है। इसमें भ्रूण का विकास आखिरी गर्भावस्था के आखिरी समय तक नहीं हो पाता। दुर्भाग्य से यह भ्रूण कुछ ही महीने में खत्म हो जाता है।
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मोलर प्रेग्नेंसी का इलाज क्या है? (Treatment for Molar Pregnancy)
मोलर प्रेग्नेंसी के इलाज में इन निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
सक्शन इवैल्यूएशन या वैक्यूम एस्पिरेशन: जिसमें महिला की योनि के माध्यम से गर्भ तक पतली ट्यूब डाली जाती है और सक्शन से एब्नॉर्मल टिश्यूज को बाहर निकाला जाता है।
डायलेशन एंड क्यूरेटेज (डीएंडसी) सर्जरी: इसके जरिए एब्नॉर्मल टिश्यूज को रिमूव कर दिया जाता है। मोलर प्रेग्नेंसी के इलाज हेतु गर्भवती महिला के प्लासेंटा से निकले हुए एब्नार्मल टिश्यूज को ऑपरेशन करके हटाया जा सकता है। जिसके लिए (डायलेशन एंड क्यूरेटेज) ऑपरेशन किया जाता है। इसमें महिला के सर्विक्स का एक छोटा हिस्सा काट दिया जाता है।
फिर से मोलर प्रेग्नेंसी न हो इसके लिए आपको लगभग 6 महीने तक ध्यान रखने की आवश्यकता है। एक बार इलाज के बाद दोबारा गर्भधारण के लिए कुछ समय का गैप रखें। छह महीने तक लगातार जांच उसके बाद डॉक्टर की सलाह पर ही गर्भधारण की सोचें।
मोलर प्रेग्नेंसी के अलावा भी कुछ दूसरी प्रेग्नेंसीज भी होती हैं। इनके बारे में आपको जानना जरूरी है।
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मोलर प्रेग्नेंसी के लिए टेस्ट (Test for Molar Pregnancy)
मोलर प्रेग्नेंसी की संभावना होने पर डॉक्टर ब्लड टेस्ट (Blood Test) करने की सलाह देते हैं। जिसमें ब्लड में प्रेग्नेंसी के लिए जिम्मेदार ह्यून कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन (HCG) हॉर्मोन के स्तर की जांच की जा सकती है। इसके साथ ही अल्ट्रासाउंड भी कराया जाता है। परीक्षण के दौरान अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) में तीव्र आवृति की ध्वनि तरंगों से पेट के निचले हिस्से और पेल्विक एरिया (Pelvic area) के टिशूज की जांच की जाती है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती दौर में गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब पेट की सतह के मुकाबले योनि के करीब आ जाते हैं। इसमें योनि में विशेष तरह की मशीन के द्वारा अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
एक्टोपिक या ट्यूबल प्रेग्नेंसी (Ectopic or Tubal Pregnancy)
जब एग यूट्रस के बाहर और फैलोपियन ट्यूब में (fallopian tube) डेवलप हो जाता है, तो इस स्थिति को एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहते हैं। फैलोपियन ट्यूब में गर्भ ठहरने के कारण ट्यूब फट जाती है और इंटरनल ब्लीडिंग होने लगती है। ऐसे में मिसकैरिज हो जाता है। हालांकि कभी-कभी मिसकैरिज नहीं होने की स्थिति में गर्भवती महिला के लिए यह प्रेग्नेंसी लाइफ थ्रेटनिंग भी हो सकती है। इमर्जेंसी की स्थिति में सर्जरी भी की जा सकती है।
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इंट्रा-एब्डॉमिनल प्रेग्नेंसी (Intra-Abdominal Pregnancy)
पहली प्रेग्नेंसी में डिलिवरी सिजेरियन हुई हो तो इंट्रा-एब्डॉमिनल प्रेग्नेंसी होने की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल गर्भ ठहरने के बाद जैसे-जैसे भ्रूण बढ़ता है वैसे-वैसे वह
गर्भ में ज्यादा जगह लेता है। वहीं एब्डॉमेन में पहले से हुए स्टिच पर जोर पड़ने लगता है और
एमनियोटिक फ्लूइड (Amniotic fluid) और शिशु यूट्रस से बाहर आने लगता है। इंट्रा-एब्डॉमिनल प्रेग्नेंसी (Intra abdominal Pregnancy) गर्भवती महिला के लिए और फीटस (Fetus) के लिए लाइफ थ्रेटनिंग अलार्म की तरह है।
हम आशा करते हैं कि मोलर प्रेग्नेंसी (Pregnancy) से जुड़ी यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। गर्भावस्था के दौरान किसी प्रकार का लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। हैलो स्वास्थ्य किसी प्रकार की चिकित्सा सलाह, उपचार और निदान प्रदान नहीं करता।