जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज का निदान कैसे किया जाता है (Gestational trophoblastic disease diagnosis )?
शारीरिक जांच और मेडिकल हिस्ट्री
इस बीमारी के बारे में मुख्य रूप से डॉक्टर शारीरिक जांच के द्वारा मरीज में जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) का पता लगाते हैं। इस दौरान महिला के शरीर में इस बीमारी के संकेतों की जांच के साथ ही, शरीर में किसी प्रकार की गांठ या असामान्य स्थिति के बारे में जानकारी ली जाती है। इसके अलावा यदि मरीज की कोई मेडिकल हिस्ट्री रही है तो उसकी जांच भी इस प्रोसेस में की जाती है।
प्लेविक की जांच
इस जांच में मुख्यरूप से डॉक्टर महिला की योनि, गर्भाशय ग्रीवा (Cervix ), गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब, अंडाशय और मलाशय की जांच करते हैं। इस बीमारी के लक्षण नजर आने पर डॉक्टर, योनि में एक स्पेकुलम डालकर योनि और गर्भाशय ग्रीवा का परिक्षण करते हैं। डॉक्टर योनि में लुब्रिकेटेड उंगलियां डालकर गर्भाशय और अंडाशय के आकार और उसकी स्थिति का परिक्षण करते हैं। गर्भाशय में किसी प्रकार की गांठ का परीक्षण करने के लिए डॉक्टर मलाशय में भी लुब्रिकेशन प्रोसेस के जरिए इसका परिक्षण करते हैं।
पेल्विस का अल्ट्रासाउंड (Ultrasound of pelvis)
जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) के बारे में पता लगाने के लिए डॉक्टर पेल्विस की अल्ट्रासाउंड का भी सहारा लेते हैं। इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राम के दोनों का सहारा लिया जाता है। अल्ट्रासाउंड पेल्विस में कोशिकाओं को उभारने का काम करता है और सोनोग्राम द्वारा उन कोशिकाओं की तस्वीर ली जाती है। इस प्रोसेस में कभी कभी एक अल्ट्रासाउंड ट्रान्सडूसर को सोनोग्राम के लिए योनि में इंसर्ट किया जाता है।
और पढ़ें : क्या आप जानते हैं कि मिडवाइफ किसे कहते हैं और ये दिन क्यों मनाया जाता है?
जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) का इलाज इन बातों पर निर्भर करता है
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिकडिजीज का इलाज संभव है, हालांकि इस बीमारी का उपचार विशेष रूप से निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करता है।