डिलिवरी शब्द का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में नॉर्मल या सिजेरियन डिलिवरी का ख्याल आता है। इन दोनों डिलिवरी विकल्पों के साथ-साथ शिशु के जन्म के लिए अन्य तकनीकों का भी प्रयोग किया जाता है। इन तकनीकों में शामिल हैं फॉरसेप्स (Forceps) डिलिवरी और वेंटॉस (Ventouse) डिलिवरी। फॉरसेप्स डिलिवरी क्या है और इसकी गाइडलाइन क्या हैं आइए जानते हैं।
फॉरसेप्स डिलिवरी क्या है? (What is Forceps Delivery?)
फॉरसेप्स डिलिवरी को समझना बेहद आसान है। दरअसल वजायना से शिशु के जन्म के समय हो रही परेशानी जैसे गर्भवती महिला नवजात को पुश नहीं कर पा रही हों तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर शिशु को इंट्रूमेंट की सहायता से गर्भ से बाहर निकालते हैं। इस प्रॉसेस को फॉरसेप्स डिलिवरी कहते हैं।
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फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन: (Forceps Delivery Guideline)
फॉरसेप्स डिलिवरी के बाद मां और शिशु दोनों के लिए परेशानी शुरू हो सकती है। इसलिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें और फॉरसेप्स डिलिवरी की गाइडलाइन को फॉलो करें।
- फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन में ये बात सबसे पहले आती है कि स्नान के दौरान या परेशानी महसूस होने पर गुनगुने पानी में कुछ देर के लिए बैठ सकते हैं या सिट्ज बाथ भी आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।
- फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन में इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है कि फ्रेश होने के दौरान (स्टूल) ज्यादा प्रेशर न लगाएं। ऐसा करने से वजायना पर जोर पड़ेगा और परेशानी बढ़ सकती है।
- फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन में ये भी कहा गया है कि खाली सतह पर न बैठें और कोशिश करें की गद्देदार जगह पर ही बैठें।
- फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन में ये भी बताया गया है कि नवजात के शिशु सिर के हिस्से में चोट लगने की संभावना बनी रहती है। इसलिए डिलिवरी के बाद शिशु के सिर के हिस्से को ठीक तरह से देखना जरूरी होता है।
- फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन के अनुसार डॉक्टर से सलाह लेकर वजायना के आसपास की त्वचा पर आइस का प्रयोग करें।
फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन जानने के बाद जानते हैं कि फॉरसेप्स डिलिवरी की जरूरत क्यों पड़ती है।
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फॉरसेप्स डिलिवरी की जरूरत क्यों पड़ती है? (Why does forceps delivery need to be done?)
निम्नलिखित कारणों से फॉरसेप्स डिलिवरी की संभावना बढ़ जाती है या फॉरसेप्स डिलिवरी की जाती है। इनमें शामिल है
- गर्भ में शिशु का सही पुजिशन में नहीं होना।
- गर्भवती महिला का शिशु को पुश करने में असमर्थ होना।
- गर्भ में पल रहे शिशु का हार्ट रेट बढ़ जाना।
इन कारणों के साथ-साथ और भी अन्य कारण फॉरसेप्स डिलिवरी के हो सकते हैं। ऐसी स्थिति होने पर परेशान न हों और डॉक्टर की सलाह अनुसार नई बनी मां की देखरेख करें।
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कैसा होता है फॉरसेप्स? (What is Forceps?)
फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन जानने के बाद ये भी जान लें कि फॉरसेप्स होता क्या है? फॉरसेप्स इंस्ट्रूमेंट होता है जिसे डिलिवरी के समय फीटस को बाहर निकालने के लिए यूज किया जाता है। अभी तक कई प्रकार के फॉरसेप्स को डिजाइन किया जा चुका है। ज्यादातर फॉरसेप्स टू मिरर इमेज मेटल इंस्ट्रूमेंट होते हैं। इसका यूज फीटल के हेड को पकड़ने के लिए किया जाता है। डिलिवरी के समय ये इंस्ट्रूमेंट बच्चे को बाहर निकालने में मदद करता है।
वहीं वैक्यूम सक्शन कप (suction cup) की तरह दिखाई देता है। सक्शन कप यानी वैक्यूम को बेबी के हेड में लगाया जाता है। वैक्यूम को बेबी के हेड में लगाने के बाद खिंचाव लगाया जाता है। फॉरसेप्स की तरह वैक्यूम से भी बेबी का सिर बाहर की ओर खींचा जाता है।
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ब्लेड का क्या होता है काम?
फॉरसेप्स की ब्लेड फीटस को पकड़ने का काम करती है। ब्लेड का आकार कर्व होता है। कई ब्लेड 90 डिग्री तक कर्व हो जाती है जिससे फीटल के हेड को पकड़ने में आसानी होती है।
फॉरसेप्स डिलिवरी के रिस्क क्या-क्या हैं? (What are the risks of Forceps delivery?)
फॉरसेप्स डिलिवरी से मां और होने वाले शिशु दोनों को खतरा हो सकता है। फॉरसेप्स के दौरान नीचे बताए गए रिस्क हो सकते हैं।
- पेरिनम में दर्द की समस्या- फॉरसेप्स के बाद वजायना और एनस के आस-पास के टिशू में दर्द की समस्या हो सकती है।
- लोअर जेनिटल ट्रेक्ट टियर
- यूरिनेशन के दौरान दर्द होना
- शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म में यूरिनेशन या मल त्याग में असंयम की समस्या
- ब्लैडर या यूरिथ्रा में इंजुरी
- यूटेराइन रप्चर ( गर्भाशय की दीवार फट जाने के कारण प्लासेंटा एब्डॉमिनल कैविटी में अंदर की ओर चला जाता है।)
- पेल्विक ऑर्गन को सपोर्ट करने वाले लिगामेंट और मसल्स का कमजोर होना।
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शिशु (नवजात) को होने वाले रिस्क
- फॉरसेप्स के कारण माइनर फेशियल इंजुरी
- फेशियल मसल्स में कमजोरी आना
- आंख के पास मामूली चोट आना
- स्कल्प फ्रक्चर
- स्कल्प में ब्लीडिंग होना
- बेबी के चेहरे में कुछ चोट का निशान बनना
- नवजात को जॉन्डिस का खतरा रहता है, लेकिन ऐसे शिशु जिनका जन्म फॉरसेप्स डिलिवरी से हुआ हो उनमें जॉन्डिस का खतरा बढ़ जाता है।
- नवजात के चेहरे पर मार्क्स पड़ सकते हैं जो 2 दिनों में ठीक हो जाते हैं।
- 10 में से 1 बच्चे को फॉरसेप्स डिलिवरी के दौरान स्कैल्प या चेहरे पर कटने का निशान दिखाई दे सकते हैं।
कब फॉरसेप्स वैक्यूम डिलिवरी नहीं की जाती है? (When Forceps Vacuum Delivery is not done?)
- जब बच्चे के सिर की सही पुजिशन के बारे में नहीं पता चलता है।
- बेबी नीचे की ओर (बर्थ केनाल) मूव नहीं करता है।
- बेबी की किसी कंडिशन की वजह से हड्डियों की स्ट्रेंथ और ब्लीडिंग डिसऑर्डर प्रभावित हो।
- जब बेबी का साइज गर्भाशय ग्रीवा में सही तरह से फिट न हो रहा हो।
फॉरसेप्स डिलिवरी के बाद किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? (What should be kept in mind after the forceps delivery?)
- नर्स से वजायनल एरिया के आसपास आइस लगाने के लिए कहें। हॉस्पिटल से घर आने के बाद भी आप आइस का यूज करें।
- इस दौरान सिट्ज बाथ का यूज करना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा। इससे आपको दर्द में राहत मिलेगी।
- स्टूल पास करते समय ज्यादा प्रेशर न दें। प्रेशर देने से आपको दर्द की समस्या बढ़ सकती है।
- यूरिनेशन और बाउल मूमेंट के बाद आसपास के एरिया में गुनगुना पानी डालें। ऐसे में टॉयलेट पेपर से रगड़ने की भूल न करें।
- नीचे बैठते समय कुशन या पिलो का यूज जरूर करें।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। डिलिवरी के दौरान किस विधि का प्रयोग करना है, ये परिस्थितियों पर निर्भर करता है। ये जरूरी नहीं है कि सभी महिलाओं को डिलिवरी के समय एक ही परिस्थिति का साना करना पड़े। हम उम्मीद करते हैं फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन विषय पर आधारित यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। इन सभी जानकारियों के अलावा फॉरसेप्स डिलिवरी गाइडलाइन से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाव जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। अगर आपका कोई सवाल है तो हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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