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कॉरियोएम्नियॉनिटिस का इलाज क्या है?
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन का इलाज करने से पहले आपको उसकी जांच करानी होगी। इसके लिए डॉक्टर महिला का फिजिकल टेस्ट करते हैं। इसके अलावा एम्नियॉटिक फ्लूइड के माध्यम से लैब में टेस्ट कर के पता लगाया जाता है कि कौन सा बैक्टीरिया इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार है।
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन के लिए शुरू में डॉक्टर लक्षणों के आधार पर इलाज करते हैं। जैसे बुखार होने पर बुखार कम करने की दवा देते हैं। इसके बाद बैक्टीरिया का इलाज करने के लिए इंट्रावेनस इंजेक्शन के द्वारा एंटीबायोटिक्स देते हैं। एंटीबायोटिक्स का इंजेक्शन तब तक लगता रहता है, जब तक आपकी डिलिवरी नहीं हो जाती है। डॉक्टर आपको निम्न एंटीबायोटिक्स दे सकते हैं :
- पेनिसिलीन
- एम्पिसिलीन
- जेंटामाइसिन
- मेट्रोनिडाजोल
- क्लिनडामायसीन
जब डॉक्टर इंफेक्शन का इलाज पूरा कर लेते हैं तो एंटीबायोटिक्स का डोज बंद कर देते हैं। इलाज के बाद आप अपने घर जा सकती हैं, लेकिन डॉक्टर द्वारा दी गई हिदायत पर आप को ध्यान देते हुए उनकी सलाह को फॉलो करना होगा।
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कॉरियोएम्नियॉनिटिस के साथ क्या समस्याएं हो सकती हैं?
सबसे पहले अपने मन में बैठा लीजिए कि इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन एक मेडिकल इमरजेंसी है। ये आपको कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी दे सकती है :
3 से 12 प्रतिशत महिलाओं में कॉरियोएम्नियॉनिटिस में सिजेरियन डिलिवरी करने की नौबत आती है। जिसमें से 8 फीसदी तक महिलाओं में घाव के कारण इंफेक्शन हो जाता है। वहीं एक प्रतिशत महिलाओं के पेल्विक में फोड़ा हो जाता है। वहीं बच्चे और मां की मौत बहुत रेयर मामलों में होती है।
कॉरियोएम्नियॉनिटिस से ग्रसित मां से जो बच्चे पैदा होते हैं, उन्हें भी खतरा होता है। बच्चे के ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड में ये इंफेक्शन हो सकता है। हालांकि, ऐसा मात्र एक फीसदी बच्चों में ऐसा होता है। वहीं, कॉरियोएम्नियॉनिटिस से ग्रसित महिला से पैदा हुए बच्चे को निमोनिया होने का खतरा भी रहता है। 5 से 10 फीसदी ऐसे बच्चे निमोनिया से ग्रसित हो जाते हैं। वहीं, अगर कोई बच्चा समय से पहले पैदा हो जाता है तो उसकी जान भी जा सकती है।
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन से कैसे बचा जा सकता है?
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन बचाने के लिए डॉक्टर कई तरह के प्रयास करते हैं। लेकिन पहली जिम्मेदारी आपकी है कि आप इस इंफेक्शन से कैसे बचें। इसके लिए जब से आप गर्भवती हो तब से डॉक्टर से निम्न जांच कराते रहें :
- अपनी दूसरी तिमाही में बैक्टीरियल वजायनोसिस की जांच कराएं।
- प्रेग्नेंसी के 35 से 37वें हफ्ते में ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकॉकल के संक्रमण की जांच कराएं।
- प्रसव के दौरान बार-बार वजायनल जांच ना की जाए।
इन सभी बातों के अलावा आप डॉक्टर द्वारा कही गई बातों का पालन करें।
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प्रेग्नेंसी में बैक्टीरियल वजायनोसिस क्या है?
बैक्टीरियल वजायनोसिस (BV) योनी में होने वाला एक संक्रमण है। बैक्टीरियल वजायनोसिस का इलाज आसानी से किया जा सकता है। जब बैक्टीरिया की वजह से वजायना में इंफेक्शन होता है। बैक्टीरियल वजायनोसिस होने पर आप कुछ लक्षण महसूस करेंगे जैसे-
अगर प्रेग्नेंसी के दौरान इस बैक्टीरियल वजायनोसिस इंफेक्शन का इलाज नहीं कराया जाता है तो प्रीटर्म लेबर, प्रीमेच्योर बर्थ और लोअर बर्थ बेबी का खतरा रहता है।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। इस तरह से आपने इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन और उससे जुड़ी सभी बातों के बारे में जान लिया है। उम्मीद है कि आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा। अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से बात कर सकती हैं। बिना जानकारी के कोई ऊी ट्रीटमेंट घर में न लें। ये आपके लिए घातक सिद्ध हो सकता है।