जैसा कि आजकल महिलाओं में इंफर्टिलिटी की समस्या (Infertility Problem) बढ़ती जा रही है। जिसके कारण कई महिलाएं सालों से प्रेग्नेंसी प्लानिंग (Pregnancy Planning) कर रही होती हैं, पर कंसीव नहीं कर पाती हैं। बढ़ती उम्र के साथ, उनमें दिक्कतें और भी बढ़ जाती हैं। नैचुरल ढंग से कंसीव न कर पाने के बाद कई महिलाओं के पास आईवीएफ ही एक विकल्प बचता है। तो ऐसे में एक समय के बाद प्रेग्नेंसी प्लानिंग के लिए बहुत सी महिलाएं आईवीएफ (IVF) का ही रास्ता अपनाती हैं। लेकिन यह भी जरूरी नहीं है कि आइवीएफ सभी में सक्सेस हो। वैसे अधिकतर मामलों में 2 से 3 बार में आईवीएफ प्रॉसेस सफल देखे गए हैं। जैसा कि प्रेग्ननेंसी प्लानिंग में दिक्कत आती है, तो ऐसे में कई कपल्स चाहते हैं कि वो एक साथ जुड़वा बच्चे प्लान कर सकें। ताकि उनकी फैमिल पूरी हो जाए। लेकिन ट्विंस बेबी के प्लानिंग में बहुत सारे फैक्टर्स निर्भर करते हैं। जिन्हें जानना जरूरी है-
“आईवीएफ (IVF) एक ऐसा ट्रीटमेंट है, जिसके ज़रिए नि:संतान महिला को प्रेग्नेंसी प्लानिंग में मदद की जा सकती है। जहां तक बात है जुड़वा गर्भावस्था की, तो यह मां और बच्चों दोनों के लिए ज़्यादा खतरे भरा हो सकता है।वैसे तो दूनिया भर में आईवीएफ की सक्सेज रेट अधिक देखी गई है। लेकिन ट्विंस बेबी के केस में इसके रिस्क अधिक होते हैं। यह कितना सफल होगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है। आईवीएफ में ट्विंस बेबी हर पांच में एक केस में देखने को मिलते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है, क्योंकि एक साथ मल्टीपल भ्रूण महिला के गर्भाश्य में प्रवेश कराए जाते हैं। लेकिन इसमें भी, उनमें जुड़वा बच्चे होने के केवल 50% ही संभावना होती है।”- कहना है, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी के मेडिकल डायरेक्टर,डॉ. मनीष बंकर का।
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आईवीएफ है क्या (What is IFV)?
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन(IVF) एक प्रकार की असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (Assisted reproductive technology) है। गर्भाधारण के लिए यानि कि जिन माहिलाओं को गर्भााधारण नहीं हो रहा है, उनके लिए यह प्राॅसेज है। ऐसी महिलाओं में गर्भवती होने की संभावना बढ़ाने के लिए प्रक्रिया अपनायी जाती है और महिलाओं को फर्टिलिटी दवाएं भी दी जाती हैं। इस प्रॉसेज से वो प्रेग्नेंसी प्लान कर पाती हैं। ऐसे में कई महिलाओं में ट्विंस बेबी के चांसेज भी बढ़ जाते हैं। ऐसे में आईवीएफ प्रॉसेज में क्या जूड़वा बच्चे प्लान किए जा सकते हैं और यह कितना सुरक्षित है, जानें यहां:
क्या आईवीएफ के साथ ट्विंस बेबी की संभावना बढ़ जाती है (chances of twins with IVF)
“हयूमन फर्टिलाइजेसन और एंब्रोलॅाजी अथॉिरटी (Human Fertilization and Embryology Authority,HEFA) के अनुसार आईवीएफ प्रॉसेज के माध्यम ये गर्भाधारण किए हुए हर पांच में से एक केस में टूविंस बेबी देखने को मिल सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आइवीएफ के दौरान महिला के गर्भाश्य में कई भ्रूण (EMBRYO) प्रवेश कराए जाते हैं। जिससे उनमें टूविंस बेबी के चांसेज बढ़ जाते हैं। कई बार होता है कि एक से अधिक भ्रूणों के आरोपण के दौरान जुड़वां बच्चों की संभवानाएं बढ़ जाती हैं। हालांकि, एक भ्रूण के साथ भी आईवीएफ प्रॉसेस में जुड़वा बच्चों की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा तब होता है, जब एक एग से दो युग्मनज (zygotes) बनाने के लिए विभाजित हो जाते हैं। इन्हें मोनोजायगोटिक टूविंस (monozygotic twins) कहा जाता है। अगर दूसरी ओर, डिजीगॉटिक(DIZYGOTIC) टूविंस की बात करें तो, इसमें भी दो अलग-अलग एग से भी टूविंस बच्चे हो सकते हैं। ऐसा तब हो सकता है, जब दो या उससे अधिक भ्रूण महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित हो जाते हैं।
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आईवीएफ और ट्विंस बच्चों में संबंध (Relation Between twin pregnancy and IVF)
आपको ट्विंस बच्चे और आईवीएफ में संबंध तो समझ आ ही गया होगा। आईवीएफ के दौरान महिला के गर्भाश्य में एक साथ कई एंब्रो प्रवेश करवाए जाते हैं। ताकि उनमें से कोई एक भी फर्टिलाइज्ड हो जाए। लेकिन कुछ केजस में एक से अधिक भ्रूण फर्टिलाइज्ड हो जाते हैं। ऐसे केसेज में टूविंस प्रेग्नेंसी के चांसेज बढ़ जाते हैं। इसके अलावा हम आपको यह भी बता दें कि और भी कई कारणों से कपल्स आईवीएफ के दौरान जुड़वा बच्चे चाहते हैं, जैसे कि:
- लोगों की बढ़ती उम्र मां बनने में दिक्कत होना
- बार-बार प्रेग्नेंसी प्लानिंग में दिक्क्त होना
- जैसा कि आईवीए महंगा होता है। बार-बार इसे नहीं करवा पाने के कारण भी लोगों एक साथ टूविंस बच्चे प्लान करना चाहते हैं।
- बार-बार आईवीएफ सफल होगा या नहीं, यह डर होना आदि।
अगर आपके मन में भी ऐसे ख्याल हैं और एक आईवीएफ के साथ आप टूविंस बेबी प्लान कर रहे हैं, तो इसके लिए पहले अपने फर्टिलिटी एक्सपर्ट से बात करें। क्योंकि जरूरी नहीं है कि यह सभी के साथ संभव हो सके। इसके बहुत से लाभ और नकारात्मक परिणाम दोनों ही देखने को मिलते हैं। आईवीएफ प्रॉसेज में जुड़वा बच्चे प्लान करने के लिए और भी बहुत सारे फैक्टर्स के रोल होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- आपकी फैमिली हिस्ट्री (Your family health history): क्या आपके परिवार में पहले किसी को जुड़वा बच्चे हुए हैं? यदि हां, तो आपमें भी जूड़वा बच्चे कंसीव करने की उम्मीद ज्यादा होती है।
- आपकी बॉडी टाइप (Your body type) : कई शोधों में यह पता चला है कि हाईट में लंबी और अधिक वजन वाली महिलाओं में जुड़वा बच्चों के साथ गर्भ धारण करने की अधिक संभावना होती है। हैरानी की बात है लेकिन सच है।
- आपकी उम्र (Your Age): कई अध्ययनों से भी पता चलता है कि 30 से अधिक उम्र वाली महिलाओं में, विशेष रूप से 40 के पास की उम्र वाली महिलाओं में आईवीएफ प्रॉसेज में जुड़वां बच्चे होने की अधिक संभावना होती है।
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ट्विंस बेबी प्लान करने के क्या बेनेफिट्स हो सकते हैं (What are the benefits of having twins?)
दो अलग-अलग बार प्रेग्नेंसी के प्लानिंग के अपेक्षा कई कपल्स एक बार में जुड़वा बच्चों की प्लानिंग करना ज्यादा पसंद करते हैं। अगर बात नैचुरल ढंग से प्रेग्नेंसी की हो, तो वो अपने हाथ में नहीं होती है। लेकिन आईवीएफ प्रॉसेस के दौरान लाेग अपनी इच्छा जाहिर करने लगते हैं। वैसे एक साथ जुड़वा बच्चे प्लान करने के अपने कई लाभ हैं। हां, पेरेंटिंग थोड़ी मुश्किल होती है, पर एक साथ दो बच्चे पल भी जाते हैं। इसी के साथ समय और पैसे की भी बचत होती है। जिन लागों को प्रेग्नेंसी प्लानिंग में दिक्कत आती है, उनका भी सोचना होता है कि एक साथ दो बच्चे हो जाएं।
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आईवीएफ के साथ जुड़वा बच्चे प्लान करने के रिस्क (Risk Factors)
आईवीएफ प्राॅसेज के साथ जुड़वा बच्चे प्लान करने के कुछ बेनेफिट्स के साथ कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। वैसे कई मामलों में डॉक्टर द्वारा आईवीएफ प्रॉसेस में जुड़वा बच्चों को प्लान करने की सलाह नहीं दी जाती है। क्योंकि इसमें मां और शिशु दोनों के लिए कुछ रिस्क हो सकते हैं, जैसे कि:
प्री-एक्लेमप्सिया (Pre-eclampsia)
कई महिलाओं में आईवीएफ में जुड़वा गर्भधारण के दौरान प्री-एक्लेमप्सिया का खतरा बढ़ सकता है। इसमें उन्हें हाय ब्लड प्रेशर की समस्या, शरीर में सामान्य सूजन और यूरिन में प्रोटीन की वृद्धि हाे जाती है। यह मां और शिशु दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
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गर्भावस्थाजन्य मधुमेह (Gestational Diabetes)
इस दौरान मां में जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। जो मां और शिशु दोनों के लिए खतरे से भरा हो सकता है। इससे डिलिवरी के दौरान मां में ब्लीडिंग प्रॉब्लम हो सकती है। इसी के साथ शिशु को सांस लेने में परेशानी और पीलिया का खतरा हो सकता है।
सीजेरियन सेक्शन ( Cesarean Section)
आईवीएफ प्लानिंग में प्रेग्नेंसी के दौरान जुड़वां गर्भधारण भी सी-सेक्शन की आवश्यकता को बढ़ा सकता है। इनमें नॉर्मल डिलिवरी के चांसेज कम होते हैं। इसके अलावा इसमें, प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद भी ब्लीडिंग की संभावना भी हो सकती हैं। इसी के साथ इसमें रिकवरी में भी समय अधिक लग जाता है। मां के साथ शिशु के लिए भी जोखिम भरा हो सकता है।
प्री-मैच्याेर बर्थ (Premature Birth)
ऐसे केसेज में 60 प्रतिशत के लगभग जुड़वां बच्चे समय से पहले यानि कि प्रीमैच्योर पैदा होते हैं। प्रीमैच्योर बेबी उन्हें कहते हैं, जोकि 12 प्रतिशत 32 सप्ताह से पहले पैदा होते हैं। ऐसे में बच्चाें के लिए अधिक रिस्क होता है और उनके ट्रीटमेंट में भी कई तरह की दिक्कते आती हैं। उनके विकास में भी प्रभाव पड़ सकता है।
जन्म के समय कम वजन (Low Birth Weight)
इसमें बच्चों के लिए कई तरह का रिस्क होता है। ऐसे कैसेज में कई जुड़वां बच्चे 2.5 किलोग्राम से कम वेट के साथ पैदा होते हैं। कहने का अर्थ है कि 32 सप्ताह से पहले पैदा हुए जुड़वां बच्चे जन्म के समय 1.6 किलोग्राम से कम वजन के साथ बच्चे पैदा होते हैं। इसका प्रभाव बच्चे के विकास में पड़ता है।
ट्विन-ट्विन ट्रांसफ्यूजन सिंड्रोम (Twin-Twin Transfusion Syndrome ,TTTS)
आईवीएफ के दौरान जुड़वा बच्चे प्लान करने के दौरान प्लेसेंटा में आई गंड़बड़ी के कारण कुछ जुड़वा बच्चों में टीटीटीएस की समसया हो सकती है। जिससे किसी एक जुड़वा बच्चे में अतिरिक्त रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है और दूसरे बच्चे में इसकी कमी हो सकती है। ऐसा लगभग 10 प्रतिशत जुड़वां बच्चों में देखा जाता है।
7. अंतर्गर्भाशयी विकास प्रतिबंध (IUGR), Intrauterine Growth Restriction (IUGR)
यह स्थिति जुड़वां गर्भधारण बच्चों में तब होती है, जब उनका वैसा विकास नहीं हो रहा होता है, जैसा कि उनका होना चाहिए। इसमें उनकी ग्रोथ देरी से होती है।
वैसे तो आजकल आईवीएफ प्रॉसेज बहुत काॅमन हो चुका है,लेकिन अगर आप जुड़वा बच्चे प्लान कर रहे हैं, तो इसके भी अपने भी कई रिस्क हैं। यह भी जरूरी नहीं है कि जो लोग ट्विन प्लान करें, तो संभव हो ही जाएं। इसके लिए बहुत सारे फैक्टर्स निर्भर करते हैं। इसलिए प्लान करने से पहले आपको अपने फर्टिलिटी एक्स्पर्ट से बात करना बहुत जरूरी है। अधिक जानकारी के लिए आप उनसे बात करें।
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