के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (पीएमडीडी) एक ऐसी समस्या है जो हर महीने पीरियड से एक या दो हफ्ते पहले महिलाओं को शारीरिक और भावनात्मक रुप से प्रभावित करती है। यह समस्या प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस) की तरह होती है लेकिन इसके कई लक्षण अलग होते हैं और अधिक गंभीर होते हैं। प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर दिनचर्या और कामकाज सहित मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।
इस बीमारी से पीड़ित महिला को मूड स्विंग, थकान, सुस्ती, कमजोरी, शरीर में दर्द, सिरदर्द आदि लक्षणों का सामना करना पड़ता है। अगर समस्या की जद बढ़ जाती है तो आपके लिए गंभीर स्थिति बन सकती है । इसलिए इसका समय रहते इलाज जरूरी है। इसके भी कुछ लक्षण होते हैं ,जिसे ध्यान देने पर आप इसकी शुरूआती स्थिति को समझ सकते हैं।
प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर एक क्रोनिक कंडीशन है। यह महिलाओं पर प्रभाव डालता है। पूरी दुनिया में लाखों महिलाएं प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। लगभग 20 से 40 प्रतिशत महिलाएं हल्के से गंभीर प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के लक्षणों का अनुभव करती हैं। यह बीमारी इनमें से 3 से 4 प्रतिशत महिलाओं के सामान्य जीवन पर असर डालती है। ज्यादा जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर शरीर के कई सिस्टम को प्रभावित करता है। प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर से पीड़ित महिला में ये लक्षण पीरियड के दौरान या पीरियड से 7 से 10 पहले नजर आने लगते हैं जो पीरियड खत्म होने के कुछ दिनों के बाद अपने आप समाप्त हो जाते हैं। प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के निम्न लक्षण सामने आते हैं :
कभी-कभी कुछ लोगों में इसमें से कोई भी लक्षण सामने नहीं आते हैं और अचानक से तेज घबराहट होती है और पैनिक अटैक आता है। कई बार आत्महत्या का भी विचार आता है और यादाश्त घटने लगती है।
प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर से पीड़ित महिला में शारीरिक समस्याएं सामने आती हैं :
ऊपर बताएं गए लक्षणों में किसी भी लक्षण के सामने आने के बाद आप डॉक्टर से मिलें। हर किसी के शरीर पर विल्सन डिजीज अलग प्रभाव डाल सकता है। इसलिए किसी भी परिस्थिति के लिए आप डॉक्टर से बात कर लें।
प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर का सटीक कारण स्पष्ट नहीं है। लेकिन मेंस्ट्रुअल साइकिल के दौरान हार्मोन के स्तन में बदलाव के कारण यह समस्या होती है। मासिक धर्म चक्र के दौरान शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्वतः उतार चढ़ाव होता है। यह सेरोटोनिन के स्तर को प्रभावित करता है, जो एक न्यूरोट्रांसमीटर है और मूड को बेहतर या खराब बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पीएमडीडी से पीड़ित महिला इन हार्मोन्स के उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती है।
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जैसा कि पहले ही बताया गया कि प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर एक प्रकार की भावनात्मक और शारीरिक समस्या है। इसलिए यह मूड को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के कारण बेहोशी, अत्यधिक गुस्सा, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा सहित डिप्रेशन जैसी गंभीर समस्या हो सकती है। सिर्फ इतना ही नहीं यह पीड़ित महिला के पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ पर भी असर डाल सकती है। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के रूप ना समझें। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए डॉक्टर शरीर की जांच करते हैं और मरीज का पारिवारिक इतिहास भी देखते हैं। इस बीमारी को जानने के लिए पीरियड से 7 या 10 दिन पहले निम्न में से पांच लक्षणों का मूल्यांकन किया जाता है :
प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर का कई इलाज उपलब्ध है। कुछ थेरिपी और दवाओं से व्यक्ति में प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के असर को कम किया जाता है। प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के लिए कई तरह की मेडिकेशन की जाती है :
मरीज में डिप्रेशन,चिड़चिड़ापन और निराशा आदि लक्षणों को कम करने के लिए कॉग्निटिव थेरेपी (सीटी) की आवश्यकता पड़ती है जो प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर से उबरने में काफी मदद करती है। साथ ही कुछ एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएं और पेनकीलर्स जैसे इबुप्रोफेन और एस्पिरिन भी दी जाती हैं। डायट में बदलाव करने से भी इसका जोखिम कम होता है।
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अगर आपको प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर है तो आपके डॉक्टर जीवनशैली में बदलाव और संतुलित भोजन करने के लिए बताएंगे। रोजाना योग, एक्सरसाइज और मेडिटेशन करने से प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के लक्षण कम होते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं काई (qi), सैफ्रॉन, गाइडेड थेरिपी, फोटिक स्टीमुलेशन और एक्यूपंक्चर भी इस समस्या से उबरने में मदद करता है।
पीएमडीडी के लक्षणों से बचने के लिए कम मात्रा में शुगर और नमक का सेवन करना चाहिए और कैफीन, चाय एवं एल्कोहल से परहेज करना चाहिए। साथ ही अधिक मात्रा में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना चाहिए। मरीज को अपने आहार में निम्न चीजें शामिल करनी चाहिए:
इस संबंध में आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि आपके स्वास्थ्य की स्थिति देख कर ही डॉक्टर आपको उपचार बता सकते हैं।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है, अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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