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प्रेग्नेंसी : जानिए कंसीव करने से लेकर मां का ख्याल रखने तक की पूरी जानकारी!

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar


Sunil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 30/06/2021

    प्रेग्नेंसी : जानिए कंसीव करने से लेकर मां का ख्याल रखने तक की पूरी जानकारी!

    प्रेग्नेंसी प्रॉसेस एक जटिल प्रक्रिया है। यह कई चरणों से होकर गुजरती है। इसकी शुरुआत स्पर्म और एग से होती है। स्पर्म सूक्ष्म कोशिकाएं होती हैं। इनका निर्माण टेस्टिकल्स में होता है। स्पर्म में दूसरे फ्लूड्स भी मिले होते हैं, जिनसे मिलकर यह सीमन (semen) बनता है। इजेक्युलेशन के दौरान यह पेनिस से बाहर आता है। एक बार के इजेक्युलेशन में करोड़ों स्पर्म बाहर आते हैं लेकिन, प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में सिर्फ एक ही स्पर्म की एग के संपर्क में आने की जरूरत होती है। ऐसा होने पर महिलाएं गर्भवती हो जाती हैं।

    एग्स ओवरी में बनते हैं। हॉर्मोन मासिक धर्म के साइकल को नियंत्रित करते हैं। इससे कुछ एग्स हर महीने मैच्योर हो जाते हैं। एग्स के मैच्योर होने पर यह फर्टिलाइजेशन के लिए तैयार होते हैं। जब यह एग्स स्पर्म के संपर्क में आते हैं तो फर्टिलाइजेशन होता है। इसके अलावा, यह हार्मोन आपके गर्भाशय के अस्तर को मोटा और स्पोंगी बना देते हैं, जिससे आपकी बॉडी प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के लिए तैयार होती है। जानिए पूरी प्रेग्नेंसी प्रॉसेस।

    प्रेग्नेंसी प्लानिंग को लेकर डॉ. माधुरी बुरंडे लाहा, सलाहकार प्रसूति रोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, का कहना है,” अगर कोई महिला प्रेग्नेंसी प्लानिंग करना चाह रही हैं और वे सपने को हकीकत में बदलना चाहती हैं, तो आपकों पता होना होना चाहिए कि कौन से चक्र में सेक्स करने से प्रेग्नेंसी की संभावना अधिक हो सकती है। गर्भवती होने के लिए ओव्यूलेशन के आसपास सेक्स करने के लिए ज्यादा अच्छा होता है। ओव्यूलेशन आम तौर पर होता है, मासिक धर्म के14वें दिन से। इसलिए, यदि आपका 28 दिनों का चक्र नियमित हैं, तो ओव्यूलेशन 14 वें दिन होता है। यदि आपका चक्र 28 दिन से लंबा नहीं है, तो आपको फर्टाइल विंडो के बारे में समझना चाहिए और अपने डाॅक्टर से मिलना चाहिए।”

    प्रेग्नेंसी प्रॉसेस : क्या हैं प्रेग्नेंसी की स्टेजेस? (Pregnancy Stages)

    कब होती है प्रेग्नेंसी (Pregnancy) की सम्भावना?

    ऑव्युलेशन के पांच दिन फर्टाइलाइजेशन की संभावना ज्यादा रहती है। ओव्युलेशन का पता सर्वाइकल म्युकस की टेकचर और ओव्युलेशन प्रीडिक्टर किट या दोनों को संयुक्त रूप से इस्तेमाल करके लगाया जाता है। इस दौरान प्रेग्नेंट होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।

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    ओव्युलेशन स्टेज

    मासिक धर्म की करीब आधी अवधि के बीच एक मैच्योर एग ओवरी से बाहर निकलता है। इस चरण को ओव्युलेशन कहा जाता है। यह एग फैलोपियन ट्यूब से होते हुए यूटरस की तरफ आता है। फैलोपियन ट्यूब से नीचे की तरफ पहुंचने में इसे करीब 12 से 24 घंटों का समय लगता है। इस अवधि के दौरान यदि आपके पार्टनर का स्पर्म इसके संपर्क में आता है तो एग फर्टिलाइज हो जाता है।

    इस दौरान यदि इंटरकोर्स होता हैं तो स्पर्म वजायना से होते हुए गर्भाशय ग्रीवा और यूटरस से होते हुए फैलोपियन ट्यूब में जाते हैं।  स्पर्म 6 दिनों तक जिंदा रह सकते हैं। छह दिनों के तक एग के संपर्क में ना आने पर स्पर्म नष्ट हो जाते हैं।

    फर्टिलाइजेशन स्टेज

    इस अवधि के दौरान यदि स्पर्म एग के संपर्क में आते हैं तो इस चरण को फर्टिलाइजेशन कहते हैं। हालांकि, तत्काल फर्टिलाइजेशन नहीं होता है। क्योंकि, सेक्स करने के छह दिनों तक या इस अवधि के बीच स्पर्म  यूटरस और फैलोपियन ट्यूब में बने रह सकते हैं। इसके बाद ही फर्टिलाइजेशन होता है।

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    फर्टिलाइज्ड एग का कोशिकाओं में विभाजन

    स्पर्म के एग के संपर्क में आने के बाद फर्टिलाइज्ड एग फैलोपियन ट्यूब से होते हुए यूट्रस की तरफ जाता है। यहीं से यह कई कोशिकाओं में बंटना शुरू होता है। इससे यह एक बॉल का आकार बनाने लगती हैं। फर्टिलाइजेशन के तीन से चार दिन बाद यह बॉल यूट्रस में आती है।

    इंप्लांटेशन की स्टेज

    कोशिकाओं से मिलकर बनी यह बॉल यूट्रस में दो से तीन दिन तक रहती है। यदि यह बॉल गर्भाशय के अस्तर से जाकर मिल जाती है तो इसे इंप्लांटेशन कहा जाता है। प्रेग्नेंसी (Pregnancy) यहीं से शुरू होती है। आमतौर पर फर्टिलाइजेशन के छह दिन बाद इंप्लांटेशन की प्रक्रिया शुरू होती है। इसे पूरा होने में करीब तीन से चार दिन लगते हैं। बॉल की अंदर वाली कोशिकाओं के भीतर भ्रूण विकसित होता है लेकिन, प्लसेंटा बॉल की बाहर वाली कोशिकाओं से बाहरी तरफ बनता है।

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    प्रेग्नेंसी हार्मोन की रिलीजिंग स्टेज (Pregnancy)

    फर्टिलाइज्ड एग के यूटरस में इंप्लांट होने से प्रेग्नेंसी हॉर्मोन रिलीज होता है। यह यूटरस के अस्तर की शेडिंग होने से रोकता है। इसी कारण की वजह से प्रेग्नेंट होने पर महिलाओं के पीरियड्स रुक जाते हैं। यदि एग स्पर्म के संपर्क में नहीं आता है या फर्टिलाइज एग यूट्रस में इंप्लांट नहीं हो पाता है तब यूट्रस के अस्तर को मोटा होने की जरूरत नहीं होती है।

    पीरियड के दौरान यह आपकी बॉडी से निकल जाता है। कुल फर्टिलाइज्ड एग्स में से तकरीबन आधे एग्स यूट्रस में इंप्लांट नहीं हो पाते हैं। पीरियड्स के दौरान यह आपकी बॉडी से बाहर निकल जाते हैं।

    प्रेग्नेंसी में जब रखना हो ख्याल : करें इन टिप्स को फ़ॉलो! (Pregnancy Care)

    गर्भावस्था में देखभाल करना शुरुआती तीन महीने काफी अहम होते हैं। इस दौरान महिलाओं को ख्यास ख्याल रखने की हिदायतें दी जाती हैं। कई महिलाओं को इस समय मॉर्निंग सिकनेस या फिर उल्टी जैसी परेशानियां शुरू हो जाती हैं। इस समस्या से निपटने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखने की ज़रूरत होती है।

    • गर्भावस्था में फोलिक एसिड की पर्याप्त मात्रा लेना बहुत जरूरी है। हरी पत्त‍ियों में पाया जाने वाला फोलिक एसिड बच्चे से जुड़ी कई परेशानियों से बचा सकता है। यह बच्चे के ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड को विकसित करने में मदद कर सकता है। इन छोटी बातों को ध्यान में रखकर गर्भावस्था में देखभाल की जा सकती है।
    • गर्भावस्था में फलों का सेवन बहुत जरूरी है लेकिन, कोई भी फल खाने से पहले यह जरूर ध्यान रखें कि फल अच्छी तरह से धुले हुए हों। इससे संक्रमण का खतरा कम हो सकता है।
    • प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के दौरान कच्चे मांस और कच्चे अंडे के सेवन से भी पहरेज करना चाहिए। क्योंकि इनमें मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए पूरी तरह से पका हुआ मांस ही खाएं।
    • गर्भावस्था में अल्कोहल और सिगरेट का सेवन न करें। शराब गर्भनाल के माध्यम से बच्चे के खून में प्रवेश करके शारीरिक और मानसिक विकास में कई तरह की बाधाएं पैदा कर सकती है। सिगरेट पीने वालों और स्मोकिंग जोन से भी दूर रहें।
    • गर्भावस्था के दौरान 11 से 16 किलो तक वजन बढ़ना लाजमी है। इसलिए डाइटिंग न करें। एक्सपर्ट्स के अनुसार इस दौरान शरीर में आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन्स और कई तरह के खनिजों और पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। इसलिए पौष्टिक आहार का सेवन करना जरूरी है। डॉक्टर से सलाह लेकर डाइट भी बढ़ाई जा सकती है।
    • प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के दौरान किसी खास चीज को खाने का दिल ज्यादा करने लगता है। ऐसे में किसी एक ही चीज को बार-बार खाने के बजाए बाकी चीजों को भी खाने में शामिल करना चाहिए। इससे स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा।
    • गर्भावस्था के दौरान जंक फूड खाने से परहेज करना ही बेहतर होगा। जंक फूड में फैट की मात्रा ज्यादा होती है, जिसकी वजह से कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का खतरा हो सकता है।
    • इस दौरान अगर फीवर (बुखार) होता है तो जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें। फीवर होने की वजह से गर्भ में पल रहे शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
    • गर्भावस्था के दौरान तनाव भी गर्भ में पल रहे शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है। गर्भावस्था की शुरुआत में कई कारणों के चलते महिलाएं तनाव में रहने लगती हैं, जिसका बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए गर्भावस्था में देखभाल करना बहुत जरूरी है।
    • इस दौरान ज्यादा तला-भुना और मसालेदार खाना न खाएं। इससे गैस और पेट में जलन हो सकती है।

    उम्र के अनुसार प्रेग्नेंसी : कैसे रखें हर उम्र में अपना ख्याल? (Pregnancy according to age)

    उम्र के अनुसार जब प्रेग्नेंसी की बात हो रही हो, तो आपको कुछ बातों का खास ख्याल रखने की जरूरत पड़ती है। कम उम्र में प्रेग्नेंसी, बड़ी उम्र की प्रेग्नेंसी से अलग हो सकती है। इसलिए उम्र के मुताबिक़ आपको प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के दौरान इन बातों का ख्याल रखने की जरूरत पड़ती है।

    कम उम्र में प्रेग्नेंसी

    गर्भधारण के निर्णय लेने से पहले एक बार इसके फायदे और नुकसान दोनों के बारे में अच्छी तरह समझ लेना हर मां के लिए जरूरी माना जाता है। इसलिए प्रेग्नेंसी (Pregnancy) से पहले बेहतर होगा कि आप अपने पार्टनर और डॉक्टर से सलाह जरूर लें। इससे प्रेग्नेंसी में आने वाली समस्याओं से निपटने में मदद मिल सकती है। कम उम्र में गर्भवती होना या अगर आपकी उम्र 20 साल से ज्यादा है और 30 साल से कम है, तो बायोलॉजिकल दृष्टिकोण से तो मां बनने के लिए ठीक है, लेकिन इस दौरान भी गर्भवती महिला को अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

    • रोजाना हरी पत्तेदार सब्जियों के साथ-साथ मौसमी फलों का भी सेवन रोजाना करें। हरी सब्जियों के सेवन से शरीर को प्रचुर मात्रा में फोलिक एसिड की प्राप्ति होती है।
    • गर्भावस्था के दौरान शरीर में प्रोटीन का लेवल सही बना रहे इसलिए अंडे का सेवन लाभकारी हो सकती है। अगर आप अंडा नहीं खाती हैं तो इसकी जगह आप पनीर का सेवन कर सकती हैं।
    • प्रेग्नेंसी के दौरान कैल्शियम की कमी भी शरीर में नहीं होनी चाहिए। इसलिए दूध का सेवन रोजाना करें। दूध के नियमित सेवन से गर्भ में पल रहे शिशु की हड्डियां मजबूत होती हैं।
    • कम उम्र में गर्भवती होना या उम्र के किसी अन्य पड़ाव में ड्राय फ्रूट्स का सेवन रोजाना करें। इस दौरान अखरोट का सेवन बेहद लाभकारी माना जाता है। प्रेग्नेंसी में स्नैक्स भी जरूर लें।

    35 के बाद प्रेग्नेंसी (Pregnancy in 35)

    35 की उम्र के बाद गर्भधारण करने में अधिक समय लग सकता है। उम्र के साथ प्रजनन क्षमता में गिरावट का सबसे आम कारण कम ऑव्युलेशन है। जन्म के समय एक महिला के यूटरस में लगभग एक मिलियन से दो मिलियन के बीच अंडे होते हैं। 30-40 की उम्र आते-आते अंडों की संख्या आधी ही रह जाती है और इनकी क्वालिटी में भी गिरावट आ जाती है। रिसर्च के अनुसार इन अंडों की संख्या में वृद्धि नहीं की जा सकती है, सिर्फ उसकी गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। इसी, वजह से 35 वर्ष की आयु के बाद गर्भधारण में थोड़ी समस्या आती है, हालांकि प्रेग्नेंट होने के लिए एक अंडा भी काफी होता है। इसलिए आपको इस दौरान इन बातों का ख्याल रखने की जरूरत पड़ सकती है –

    • गर्भधारण के बारे में सोच रही हैं, तो प्रीकॉन्सेप्शन चेकअप कराएं। इससे जन्म के समय शिशु को और गर्भवती महिला को होने वाले खतरों को भी कम किया जा सकता है।
    • महिला को अगर ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या थाॅयराइड की बीमारी है तो उसका निदान और उपचार सही समय पर करवाना चाहिए।
    • एक स्वस्थ जीवनशैली और आहार को अपनाकर 35 के बाद स्वस्थ गर्भधारण की संभावनाओं को बढ़ाने में मदद मिलती है। हेल्दी डायट से प्रजनन क्षमता को बेहतर किया जा सकता है।
    • प्रत्येक दिन मल्टीविटामिन के साथ 400 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड लें। फोलिक एसिड एक विटामिन है जो शरीर के प्रत्येक कोशिका के विकास के लिए जिम्मेदार होता है। गर्भावस्था के पहले और दौरान फोलिक एसिड लेने से बच्चे के मस्तिष्क में जन्मदोषों को रोकने में मदद मिल सकती है।
    • यदि वजन बहुत ज्यादा या कम है, तो गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य समस्याएं होने की अधिक संभावना रहती है। गर्भधारण से पहले एक हेल्दी वेट के लिए अच्छी डायट और कुछ व्यायाम करें।

    प्रेग्नेंसी में ना लें ये दवाएं (Pregnancy Medicines)

    गर्भावस्था में दवाओं का इस्तेमाल बेहद सोच-समझकर किया जाना चाहिए। क्योंकि ये आपके गर्भ में पल रहे शिशु पर ग़लत प्रभाव डाल सकती है। गर्भावस्था में दवाएं जो जरूरी हैं वो डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन पर लिख देते हैं लेकिन, इस दौरान गर्भवती महिलाएं एक साथ कई तरह की शारीरिक परेशानियों जैसे उल्टी आना, चक्कर आना या कमजोरी महसूस होना। ऐसी परेशानियों को दूर करने के लिए दवाएं खा लेती हैं, जो उनके लिए गम्भीर परेशनियाँ लेकर आ सकती हैं। आइए जानते हैं, उन दवाओं के बारे में, जो आपको गर्भावस्था के दौरान नहीं लेनी चाहिए।

    1. लीवोथाइरॉक्सिन (levothyroxine)

    पहली तिमाही में इन दवाओं का सेवन किया जाता है और रिसर्च के अनुसार इन दवाओं का गर्भावस्था के दौरान या डिलिवरी के बाद भी शरीर पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

    2. गाबापेन्टिन (gabapentin) और ट्रेजोडोन (trazodone)

    गर्भावस्था में दवाएं अगर ले रहीं हैं, तो गाबापेन्टिन, एम्लोडाइपिन और ट्रेजोडोन का गर्भ में पल रहे भ्रूण पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

    3. एम्लोडिपिन (amlodipine)

    थाइरॉइड से जुड़ी परेशानियों के लिए एम्लोडिपिन लेने की सलाह डॉक्टर देते हैं लेकिन, गर्भावस्था में दवाएं का सेवन से भ्रूण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अगर इसका सेवन कोई भी महिला कर रहीं हैं, तो प्रेग्नेंसी शुरू होने पर डॉक्टर से दवा के बारे में जरूर बताएं।

    और पढ़ें – क्या प्रेग्नेंसी में प्रॉन्स खाना सुरक्षित है?

    4. लोसार्टन (losartan)

    लोसर्टन खासकर हाई ब्लड प्रेशर, किडनी, लिवर या हार्ट से जुड़ी परेशानियों के लिए डॉक्टर पेशेंट को देते हैं लेकिन, अगर आप प्रेग्नेंट हैं तो अपने डॉक्टर को इस बारे में जरूर बातएं और इसे न खाएं क्योंकि इससे गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत भी हो सकती है।

    5. एटोर्वास्टेटिन (atorvastatin)

    बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने के लिए डॉक्टर एटोर्वास्टेटिन प्रिस्क्राइब करते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान इस ड्रग्स के लेने से गर्भ में पल रहे शिशु को हाइपरकॉलेस्ट्रोलेमा (hypercholesterolemia) होने का खतरा बढ़ जाता है।

    प्रेग्नेंसी में आहार: क्या है इसका महत्व? (Pregnancy Food)

    प्रेग्नेंसी में आहार की बात करें, तो ये किसी भी गर्भवती महिला के लिए जरूरी साबित होता है। यह गर्भवती महिला के साथ-साथ गर्भ में पल रहे बच्चे (भ्रूण) के विकास के लिए आवश्यक होता है। मां के आहार से ही गर्भ में पल रहे बच्चे को संपूर्ण पोषण मिलता है और उचित खानपान प्रसव में भी योगदान देता है।

    गर्भावस्था के दौरान महिला का वजन बढ़ना तय होता है। एक स्वस्थ महिला का वजन 11 से 16kg तक बढ़ता है। इसलिए वजन बढ़ने से घबराए नहीं बल्कि अपनी डाइट पर ध्यान दें। प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के दौरान फोलिक एसिड (folic acid), आयरन (iron), विटामिन-सी, विटामिन-डी, कैल्शियम (calcium), ओमेगा-3, ओमेगा-6, और फैटी एसिड (fatty acid) जैसे पोषक तत्वों की जरूरत होती है। इन तत्वों से युक्त खादृय पदार्थों के सेवन से गर्भवती महिला और गर्भ में पल रहे बच्चे का ठीक तरह से विकास संभव हो सकता है।

    गर्भावस्था के फर्स्ट ट्राइमेस्टर (गर्भधारण से लेकर 12 सप्ताह) में फोलिक एसिड में प्रचुर पदार्थों का सेवन करना चाहिए। साथ ही डॉक्टर की सलाह से फोलिक एसिड सप्लिमेंट्स (folic acid supplements) भी लिए जा सकते हैं। इसके आलावा आयरन युक्त खाद्य पदार्थों का भी सेवन ज्यादा करना चाहिए। इस दौरान महिलाओं को मॉर्निंग सिकनेस (morning sickness) की समस्या रहती है। इससे निपटने के लिए विटामिन बी-6 को गर्भवती महिला अपने डायट चार्ट में शामिल करना चाहिए।

    दूसरी तिमाही में गर्भवती महिला का आहार ओमेगा 3 फैटी एसिड युक्त हों चाहिए। इससे गर्भ में पल रहे शिशु के मस्तिष्क का विकास उचित रूप से होगा। हेल्दी स्किन और साफ रक्त के लिए बीटा कैरोटीन को डायट प्लान में शामिल करें। चाय या कॉफी का सेवन न करें क्योंकि उसमें मौजूद टैनिन शरीर में आयरन के अवशोषण को कठिन बनाता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए गर्भवती महिला का आहार चयन करें।

    गर्भावस्था की तीसरी तिमाही (third trimester) में प्रेग्नेंट लेडीज को अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। आपको इस समय 200-300 अतिरिक्त कैलोरी की जरूरत होती है। तीसरी तिमाही में गर्भवती महिला का आहार इन बातों का ध्यान में रखकर ही तय करें।

    किन चीज़ों को रखें दूर?

    चाय या कॉफी में कैफीन की मात्रा अधिक होती है। इसलिए एक दिन में दो कप से ज्यादा नहीं पीना चाहिए। जो नुकसानदायक हो सकती है। वहीं गर्भावस्था के दौरान एल्कोहॉल और सिगरेट नहीं पीना चाहिए। इन दोनों का ही आपके और बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है।

    प्रेग्नेंसी में व्यायाम: कितना जरूरी? (Pregnancy Exercises)

    गर्भावस्था के नौ महीने महिलाओं के लिए बहुत संवेदनशील होते हैं। इस दौरान शारीरिक रूप से सक्रिय रहना भी जरूरी होता है। मां और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए यह बहुत जरूरी है। कई बार महिलाओं को प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में एक्सरसाइज और योग करने की भी सलाह दी जाती है। ऐसे में किन बातों का ख़्याल रखना जरूरी है, आइए जानते हैं।

    • कोई भी व्यायाम शुरू करने के पहले अपने डॉक्टर से सलाह लें और फिर व्यायाम शुरू करें।
    • एक्सरसाइज करने के पहले वॉर्मअप करें। वॉर्मअप करने से शरीर एक्टिव होता है और इसके बाद एक्सरसाइज करें। सीधे एक्सरसाइज करने से शरीर में मांसपेशियों का खिंचाव हो सकता है।
    • भारी-भारी वेट नहीं उठाना चाहिए। इससे आपके पेट पर दवाब पड़ेगा, सांस लेने में परेशानी होगी और इसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ेगा।
    • आसान एक्सरसाइज करें और ज्यादा टफ एक्सरसाइज न करें।
    • कम से कम आधे घंटे रोज एक्सरसाइज करें या फिर हफ्ते में 5 दिन जरूर करें।
    • एक्सरसाइज वही करें जो आपके डॉक्टर ने आपको करने की सलाह दी हो। अपने मर्जी से व्यायाम न करें।
    • ऐसा कोई भी व्यायाम न करें, जिसके करने से थकावट महसूस हो।
    • गर्भावस्था के दौरान सुबह-शाम टहलने से ताजी हवाएं मिलती हैं, जो आपके और गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए लाभकारी होता है।
    • ध्यान लगाने की मुद्रा में बैठें। इससे शांति मिलेगी और एनर्जेटिक फील करेंगी।
    • धीरे-धीरे अनुलोम-विलोम करें। ऐसा करने से दूषित पदार्थों को बाहर निकाला जा सकता है।
    • शरीर को हाय ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के खतरे को कम करता है।

    प्रेग्नेंसी में किए जानेवाले चेकअप : कितने हैं जरूरी? (Pregnancy Checkup)

    प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिलाओं के कई प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं। अल्ट्रासाउंड स्कैन, ब्लड टेस्ट, एक्सरे और यूरिन टेस्ट प्रेग्नेंसी स्कैन इन टेस्ट में शामिल हैं। ये प्रेग्नेंसी टेस्ट (Pregnancy test) मां और शिशु दोनों के लिए ही बेहद ही महत्वपूर्ण हैं। इसलिए इनसे जुड़ी जानकारी होना बेहद जरूरी है।

    अल्ट्रासाउंड स्कैन

    अल्ट्रासाउंड स्कैन से गर्भाशय में शिशु की तस्वीरें ली जाती हैं। हालांकि अल्ट्रासाउंड स्कैन में किसी भी प्रकार का दर्द नहीं होता है। इसका मां और शिशु की हेल्थ पर किसी भी प्रकार का साइड इफेक्ट्स नहीं पड़ता है। अल्ट्रासाउंड स्कैन प्रेग्नेंसी (Pregnancy) की किसी भी स्टेज में किया जा सकता है। यदि आप अल्ट्रासाउंड को लेकर चिंतित हैं तो अधिक जानकारी के लिए अपनी मिडवाइफ या गायनोकोलॉजिस्ट से बात करें।

    एनोमोली स्कैन

    अल्ट्रासाउंड स्कैन में ही एनोमोली स्केन किया जाता है। यह 18-21 हफ्तों के बीच किया जाता है। यह एक विस्तृत जांच होती है। इसमें अल्ट्रासाउंड के माध्यम से यह पता लगाया जाता है कि शिशु उचित तरीके से विकसित हो रहा है या नहीं या शिशु में किसी भी प्रकार की असामान्यताएं आ रही हैं।

    यूरिन टेस्ट

    प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के शुरुआती दिनों में आपके यूरिन की जांच होगी। इस जांच में यह पता चलेगा कि आपको यूरिन इंफेक्शन है या नहीं, जिसके चलते प्रीटर्म डिलिवरी या बच्चे का वजन कम हो सकता है। वजायनल स्वेब (Vaginal swab test) 36-38 हफ्तों के बीच होगा, जिसमें ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोककि (Streptococci) की जांच होगी। डिलिवरी के दौरान यह शिशु में फैल सकता है। ऐसा होने पर बच्चा बीमार पड़ सकता है।

    आरएच टाइप टेस्ट (Rh type)

    यदि आप आरएच नेगेटिव हैं और आपका भ्रूण आरएच पॉजिटिव है तो इस स्थिति में समस्या खड़ी हो सकती है। इस स्थिति में महिला की बॉडी में आरएच पॉजिटिव बच्चे के खिलाफ एक विशेष प्रकार की एंटीबॉडी बनना शुरू हो जाती हैं जो भ्रूण को नष्ट कर देती हैं। आरएच पॉजिटिव बच्चे को जन्म देने के बाद आपको एक विशेष एंटी डी इंजेक्शन दिया जाएगा, जो आरएच नेगेटिव महिला के इम्यून सिस्टम को आरएच पॉजिटिव शिशु की लाल रक्त कोशिकाओं को रिजेक्ट करने से रोकने के लिए होगा।

    इस तरह प्रेग्नेंसी कंसीव करने से लेकर, प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में देखभाल, आहार-पोषण, प्रेग्नेंसी में मेडिकेशन और प्रेग्नेंसी से टेस्ट, ये सभी चीज़ें मायने रखती है। जिसके बारे में जरूरी जानकारी होनी बेहद जरूरी है। हमें उम्मीद है कि यह आर्टिकल आपके तमाम सवालों का जवाब देने में सफल रहा होगा।

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