डायबिटीज यानी मधुमेह रोग होने पर पीड़ित व्यक्ति का शरीर अपने खून में शुगर (ग्लूकोज) की सही मात्रा को बनाये नहीं रख पाता। ब्लड शुगर लेवल के बढ़ने से समय के साथ कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। जो लोग अपने आहार और एक्टिव लाइफस्टाइल के माध्यम से अपने ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखते हैं, वो काफी हद तक अपनी डायबिटीज (Diabetes) पर नियंत्रण रख सकते हैं, लेकिन फिर भी नियमित रूप से चेकअपस और टेस्ट कराना आवश्यक हैं। जानें, मधुमेह के लिए मेडिकल टेस्ट (Medical test for Diabetes) कौन से हैं, जिन्हें कराना अनिवार्य है।
प्रीडायबिटीज के निदान के लिए डॉक्टर आपके कुछ ब्लड टेस्ट (Blood test) कराएंगे। अगर आपके टेस्ट के परिणाम आपके प्रीडायबिटीज रेंज के बीच में होंगे, तो आपके डॉक्टर आपको अपने लाइफस्टाइल में परिवर्तन करने के लिए कह सकते हैं, ताकि आपका शुगर लेवल न बढ़े। तीन ब्लड टेस्ट हैं जो प्रीडायबिटीज और डायबिटीज (Diabetes) के निदान के लिए सबसे बेहतरीन हैं, यह मधुमेह (Diabetes) के लिए मेडिकल टेस्ट इस प्रकार हैं:
फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट (Fasting Plasma Glucose [FPG] Test)
मधुमेह के लिए मेडिकल टेस्ट में पहला है फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट (Fasting Plasma Glucose)। फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट पूरी रात फास्ट (8 से 12 घंटों) के बाद ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) को जांचने के लिए किया जाता है। सदियों से इस स्टैंडर्ड शुरुआती डायग्नोस्टिक तरीके का प्रयोग किया जाता रहा है। ऐसा माना जाता है कि अगर शुगर की मात्रा 100 एमजी/डीएल है तो यह सामान्य है। प्रीडायबिटीज की स्थिति में यह वैल्यू 110 एमजी/डीएल तक हो सकती है। अगर आप टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) से पीड़ित हैं तो आपकी शुगर लेवल 126 एमजी/डीएल या इससे अधिक हो सकती है।
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पोस्टप्रांडियल ब्लड शुगर लेवल टेस्ट
पोस्टप्रांडियल ब्लड शुगर लेवल टेस्ट डायबिटीज की जांच के लिए कराया जाता है। अगर आपको मधुमेह (Diabetes) की समस्या है लेकिन आपका शरीर पर्याप्त मात्रा में इन्सुलिन (Insulin) नहीं बना रहा है। इसका अर्थ यह है कि आपके ब्लड शुगर का लेवल बहुत अधिक है। जिससे समय से साथ यह गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है जैसे नर्व और ऑय डैमेज।
इस मधुमेह (Diabetes) के लिए मेडिकल टेस्ट के माध्यम से यह देखा जाता है कि खाना खाने के बाद रोगी का शरीर शुगर और स्टार्च के प्रति कैसा रिस्पांस दे रहा है। जैसे ही आप पेट में खाने को पचाते हो, आपका ब्लड ग्लूकोज या ब्लड शुगर लेवल एकदम से बढ़ जाता है। इसके कारण आपके अग्नाशय (pancreas) इन्सुलिन बाजार निकालते हैं ताकि यह शुगर मांसपेशियों के सेल्स और अन्य टिश्यू में ईंधन के रूप में प्रयोग की जाए। ऐसा होने से खाना खाने के दो घंटे बाद इंसुलिन और ब्लड ग्लूकोज लेवल सामान्य हो जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो आपको डायबिटीज है।
- इस टेस्ट के परिणाम उम्र के अनुसार अलग हो सकते हैं। अगर किसी को डायबिटीज नहीं है तो पोस्टप्रांडियल ब्लड शुगर लेवल टेस्ट के अनुसार उसके शुगर का लेवल 140 mg/dL से कम होना चाहिए।
- अगर किसी को डायबिटीज है तो उसके शरीर में ब्लड शुगर लेवल 180 mg/dL से अधिक होता है।
रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट (Random blood sugar level)
रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट शरीर में ग्लूकोज या शुगर की मात्रा को जांचने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट के लिए रोगी का केवल खून का नमूना चाहिए होता है। इस टेस्ट को करने से पहले रोगी का भूखा रहना आवश्यक नहीं है। यह टेस्ट बहुत जल्दी हो जाता है और इसके किसी तरह की कोई परेशानी भी नहीं होती। इसे दिन के किसी भी समय किया जा सकता है। इस टेस्ट के अनुसार अगर आपके ब्लड शुगर का लेवल 200 mg/dL या इससे अधिक है तो यह डायबिटीज होने के तरफ का संकेत है।
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हीमोग्लोबिन A1c टेस्ट
इस ब्लड टेस्ट के माध्यम से पीड़ित व्यक्ति के खून में मौजूद पिछले दो या तीन महीने की ब्लड शुगर का पता चल जाता है। इस ब्लड टेस्ट को कराने के लिए आपको बिना खाना खाएं रहने की आवश्यक नहीं होती। मधुमेह के लिए मेडिकल टेस्ट में यह टेस्ट उन टेस्टस से बेहतर है जिनसे खाना खाने से पहले और बाद में ब्लड शुगर लेवल के बारे में पता चलता है। यह टेस्ट हीमोग्लोबिन से जुड़ी ग्लूकोज की मात्रा को मापता है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन ले जाने वाला प्रोटीन है, जिससे खून को रंग मिलता है। पहले इस टेस्ट को मूल रूप से मधुमेह से पीड़ित लोगों में ग्लूकोज के स्तर को मॉनिटर करने के लिए किया जाता था, लेकिन अब इसका उपयोग टाइप 2 मधुमेह (Type 2 Diabetes) और प्रीडायबिटीज (Pre diabetes) के निदान के लिए भी किया जाता है।
टेस्ट का परिणाम
जैसे-जैसे ब्लड ग्लूकोज का स्तर बढ़ता है, वैसे-वैसे हीमोग्लोबिन से जुड़ी ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। हीमोग्लोबिन ए 1 सी टेस्ट पिछले दो से तीन महीनों की औसत ब्लड शुगर लेवल को मापता है। हीमोग्लोबिन A1c टेस्ट को दिन में किसी भी समय आप करा सकते हैं। हीमोग्लोबिन A1c टेस्ट को टाइप 2 डायबिटीज के निदान और स्क्रीनिंग के लिए किया जाता है। इस टेस्ट को कई दिनों तक ग्लूकोज लेवल पर नजर रखने के लिए भी किया जाता है। इस टेस्ट से डॉक्टर रोगी की सही डायबिटीज के इलाज को तय करते हैं। प्रीडायबिटीज की स्थिति में हीमोग्लोबिन A1c लेवल 5.7 से 6.4 प्रतिशत होता है। अगर यह लेवल 6.5 प्रतिशत से अधिक हो तो इस लेवल से डायबिटीज का निदान हो सकता है।
ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (Oral Glucose Tolerance Test)
यह टेस्ट से पूरी रात फास्ट रखने के बाद ब्लड शुगर की जांच के लिए किया जाता है। इस टेस्ट में रोगी को बहुत ही मीठा सलूशन पीना होता है, जिसमें स्टैंडर्ड मात्रा में ग्लूकोज होता है। इसके बाद फिर से दो घंटे बाद खून की जांच की जाती है। यह परीक्षण आमतौर पर तब किया जाता है, जब डॉक्टर को आपके डायबिटिक होने का संदेह होता है। ऐसा माना जाता है अगर दो घंटे के फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट का परिणाम 140 से 199 मिलीग्राम / डीएल आता है तो इसे प्रीडायबिटीज माना जाता है। लेकिन अगर इसका परिणाम 200 मिलीग्राम / डीएल या उससे अधिक आता है तो यह मधुमेह की तरफ संकेत है।
यह तो थे मधुमेह के लिए मेडिकल टेस्ट जिसमे खून की जांच की जाती है। लेकिन, मधुमेह होने पर इसका असर हमारी आंखों और पैरों पर भी पड़ता है। इसलिए, कुछ अन्य टेस्ट भी कराए जा सकते हैं, जिनसे यह पता चले कि डायबिटीज के कारण आंखों और पैरों पर क्या असर हुआ है।
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डाइलेटेड ऑय एग्जाम (Dilated Eye Exam)
मधुमेह के लिए मेडिकल टेस्ट में आगे है डाइलेटेड ऑय एग्जाम। ब्लड शुगर के अधिक होने के कारण आंखों में समस्या हो सकती है जिसमें दृष्टि धुंधली हो जाती है। इसके साथ ही इस समस्या के कारण आंखें रोशनी को लेकर अधिक संवेदनशील हो जाती है। जिसके कारण आप कुछ समय तक ड्राइव करने या कोई भी अन्य काम करने में असमर्थ रहते हैं। आपकी स्वास्थ्य स्थिति को देख कर डॉक्टर आपको बता सकते हैं कि ऑय डाईलेशन टेस्ट आवश्यक है या नहीं।
इस मधुमेह के लिए मेडिकल टेस्ट को निम्नलिखित चीजों को जांचने के लिए किया जा सकता है:
- असमान्य ब्लड वेसल
- रेटिना में सूजन, रक्त या वसा का जमाव
- नए ब्लड वेसल और स्कार टिश्यू का विकास
- साफ या जेली की तरह के चीज
- रेटिना का अलग होना
- आपके ऑप्टिक नर्व में असामान्यताएं
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फ्लोरेसेंस एंजियोग्राफी (Fluorescence Angiography)
फ्लोरेसेंस एंजियोग्राफी टेस्ट के साथ डॉक्टर आपकी आंखों के अंदर की तस्वीरें लेते हैं। इसके बाद आपके डॉक्टर आपकी बांह की नस में एक विशेष डाई इंजेक्ट करेंगे और अधिक तस्वीरें लेंगे। क्योंकि, यह डाई आपकी आंखों की रक्त वाहिकाओं के माध्यम से घूमती है। इससे आंखों की स्थिति का पता चलने और उपचार में मदद मिलती है।
ऑप्टिकल कोहरेन्स टोमोग्राफी (Optical Coherence Tomography)
आपके नेत्र चिकित्सक आपको ऑप्टिकल कोहरेन्स टोमोग्राफी (OCT) टेस्ट कराने के लिए भी कह सकते हैं। यह इमेजिंग टेस्ट रेटिना की क्रॉस-सेक्शनल इमेजेज प्रदान करता है। जो रेटिना की मोटाई दिखाते हैं। यह टेस्ट यह निर्धारित करने में मदद करेगा कि क्या द्रव रेटिना टिश्यू में लीक हो गया है या नहीं। बाद में, ओसीटी टेस्ट का उपयोग यह देखने के लिए भी किया जा सकता है कि उपचार कैसे काम कर रहा है।
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फुट टेस्ट
अगर किसी व्यक्ति को डायबिटीज है, तो उसके खून में ब्लड शुगर स्तर अधिक होगा। ऐसे में रोगी के ब्लड वेसल और नसों को नुकसान होता है। इनका प्रभाव प्रभावित व्यक्ति के पैरों में भी पड़ सकता है। पैरों में समस्या होने पर रोगी पैरों में लगने वाली किसी भी चोट, घाव या छाले आदि को महसूस नहीं कर पाते। समस्या के बढ़ने पर यह अल्सर या संक्रमण भी हो सकता है। यही नहीं, अगर समस्या बहुत अधिक बढ़ जाए तो प्रभावित टांग या पैर को काटना भी पड़ सकता है, ताकि यह संक्रमण (Infection) शरीर के अन्य अंगों तक न फैले।
मोनोफिलमेंट टेस्ट
ऐसी स्थिति में डॉक्टर आपके पैरों को जांचेंगे कि कहीं उसमें कोई लालिमा, छाले या घाव आदि तो नहीं है। अगर उन्हें आपके पैरों में अधिक समस्या दिखाई दे, तो वो मोनो-फिलामेंट टेस्ट कर सकते हैं।
- इस स्थिति से बचने के लिए आपको स्वयं रोजाना अपने पैरों कि जांच करनी चाहिए। अगर आपको पैरों में सुन्नता या झुनझुनी महसूस हो, तो ऐसा नर्व डैमेज (Nerve damage) के कारण हो सकता है। ऐसे में तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। खुद कभी भी घर पर अपने पैरों का उपचार न करें। बल्कि डॉक्टर से पहले राय लें। जैसे ही आपको पैरों में कोई समस्या महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं ताकि आपका उपचार सही समय पर हो सके।
मधुमेह (Diabetes) के लिए मेडिकल टेस्ट में कुछ अन्य टेस्ट भी शामिल हैं, जिनकी सलाह डॉक्टर आपको दे सकते हैं। लेकिन, इसके लिए वो आपकी स्वास्थ्य स्थिति और अन्य कई कारकों को ध्यान में रखेंगे। इसलिए, डॉक्टर की राय के अनुसार ही टेस्ट और सही उपचार कराएं।
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