इसके अलावा कोशिश करनी चाहिए कि पेरेंट्स बच्चों और उनकी एक्टिविटी पर पूरी नजर रखें। बच्चा क्या कर रहा है और क्या नहीं? इसकी जानकारी हर पेरेंट्स को होनी चाहिए। तभी वे बच्चे की बेहतर तरीके से देखभाल कर सकते हैं। वहीं इन लक्षणों से बचाव के लिए जरूरी है कि नियमित एक्सरसाइज की जाए।
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आंखों पर स्क्रीन का असर होने के कुछ बड़े उदाहरण
कंप्यूटर विजन संड्रोम से लेकर, एआरएमडी, आंखों का सूखापन और एस्थनेपिया सिम्टम्स जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं। आंखों पर स्क्रीन का असर को लेकर कुछ बीमारी व उनके लक्षण इस प्रकार हैं।
एआरएमडी : एआरएमडी को एज रिलेटेड मेकुलर डिजेनेरेशन कहा जाता है। आंखों से जुड़ी यह बीमारी लंबे समय के बाद होती है। 60 साल की उम्र के लोगों में यह बीमारी देखने को मिलती है। इसके कारण आंखों की रोशनी तक जा सकती है। ऐसा तभी होता है जब आंखों के रेटिना के बीचों-बीच मैकुला (Macula) होता है वह नीचे की ओर खिसक जाता है। रेटिना लाइट को पहचान दिमाग को सिग्नल भेजने का काम करता है। इस बीमारी के होने से आपको क्लियर विजन नहीं मिलता, ब्लर दिखता है और पढ़ने में या फिर गाड़ी चलाने में दिक्कत होती है। इसके कारण अंधेरा छा जाता। वहीं देखा गया है कि कुछ लोग रंगों का भेद भी नहीं बता पाते हैं। शरीर में इस प्रकार के लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
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कंप्यूटर विजन सिंड्रोम : आंखों पर स्क्रीन का असर की बात करें तो उसके कारण कंप्यूटर विजन सिंड्रोम की बीमारी हो सकती है। ऐसे लोगों को यह बीमारी होती है जो ज्यादातर कंप्यूटर पर काम करते हैं। इसके कारण आई स्ट्रेन और डिसकंफर्ट होता है। यह बीमारी होने के कारण भी लोगों को ब्लर दिखता है, डबल विजन दिखता है। आंखें ड्राई होने के साथ लालीपन हो सकती है। आंखों में खुजली और सिरदर्द की समस्या होने के साथ गर्दन और पीठ के पीछे दर्द होता है। कंप्यूटर के आगे ग्लास लगाकर, कंप्यूटर से कुछ दूरी बनाकर बैठने के साथ आंखों को समय-समय पर ब्रेक देकर और कंप्यूटर की ब्राइटनेस, काॅन्ट्रास्ट आदि को अच्छे से एडजस्ट कर बीमारी से बचाव किया जा सकता है। इस बीमारी के लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
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एस्थेनोफिया : एस्थेनोफिया को आईस्ट्रेन और ऑक्यूलर फटीग भी कहा जाता है। आंखों पर स्क्रीन का असर लगातार होने के कारण जब यह थक जाती हैं तो ऐसा होता है। इसके कारण आंखों के आसपास दर्द होता है, सिर दर्द होने के साथ, ब्लर विजन और, आंखों में जलन, लाइट से सेंस्टिविटी, आंखों को लंबे समय तक खोलकर रखने में दिक्कत के साथ वर्टिगो की समस्या हो सकती है।
आंखों का सूखापन : आंखों पर स्कीन का असर यही है कि इसके कारण लोग पलकें नहीं झपका पाते हैं। वहीं ब्लिंक रेट कम होने से आंखों को आंसू के रूप में पोषक तत्व नहीं मिलता है और उसे परेशानी होती है। इस कारण आंखें ड्राई हो जाती हैं।
डिजिटल आई स्ट्रेन के लक्षण : आंखों पर स्क्रीन का असर की बात करें तो ज्यादा समय तक यदि कोई स्क्रीन पर रहता है तो उस कारण उसे डिमलेस ऑफ लाइट यानि रोशनी कम दिखना, धुंधला दिखना, आंखों में जलन आदि के लक्षण दिखते हैं। शरीर में ऐसे लक्षण दिखे तो डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
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लाॅकडाउन के दौरान आंखों पर स्क्रीन का असर बढ़ा
- लोगों का समय टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर पर 6-8 फीसदी बढ़ा
- मोबाइल, लैपटॉप पर छोटे बच्चे पहले की तुलना में 3 घंटे दे रहे ज्यादा समय
- लॉकडाउन में गेमिंग ऐप डाउनलोड करने में 11 फीसदी का हुआ इजाफा
- ब्लू लाइट विजन का इफेक्ट होने से डिजिटल आई स्ट्रेन की हो रही समस्या
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आंखों की एक्सरसाइज करना है फायदेमंद
- सीधा खड़े होकर व मुंह को ऊपर कर सीलिंग देखने के लिए उपर देखें, वहीं तुरंत नीचे फर्श देखें, इसमें आपका शरीर नहीं हिलना चाहिए।
- आंखों को बाएं से दाएं व दाएं से बाएं धीरे-धीरे कर ले जाएं, ऐसा दस-दस बार करें।
- मुंह-शरीर को स्थिर रख आंख को दाहिने साइड के ऊपर में ले जाएं फिर दाहिने साइड के नीचे में ले जाएं। धीरे-धीरे कर यह एक्सरसाइज करें। ठीक ऐसा ही लेफ्ट अपर और लेफ्ट लोअर डायरेक्शन में भी ले जाएं।
- कंप्यूटर पर काम करने के दौरान हर 20 मिनट पर रेस्ट लें और 20 मीटर की दूरी पर रखी वस्तु को 20 सेकेंड कर देखें। ऐसा करना आंखों की सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है।
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आंखों पर स्क्रीन का असर कम करने के लिए जरूरी है कि यदि आप नियमित कंप्यूटर चलाते हैं तो बच्चे से लेकर बड़े सभी तो साल में एक बार आई चेकअप जरूर करवाएं। वहीं हर आधे घंटे के अंतराल पर 10 मिनट का ब्रेक लेना चाहिए। बच्चे हो या बड़े बॉडी के अनुसार की कंप्यूटर को रखने का एडजस्टमेंट करना चाहिए। कंप्यूटर न तो आंखों के ऊपर होना चाहिए ना ही नीचे। इससे विजन संबंधी दिक्कत आ सकती है। स्क्रीन की लाइटिंग को आंखों के हिसाब से एडजस्ट करना चाहिए। कोशिश करें कि रूम में कम से कम लाइट हो ताकि आंखों की रोशनी पर इसका असर न पड़े।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें। ।
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