जीभ से भी पता चलता है आपके स्वास्थ्य का राज
चाइल्ड स्पेशलिस्ट डाॅक्टर अभिषेक बताते हैं कि फिजिकल चेकअप के दौरान मरीज को जीभ निकालने को भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि हम जीभ में लार के लेवल को देखते हैं। यदि जीभ में लार नहीं होगा इसका मतलब यह कि मरीज डिहाइड्रेशन की समस्या से जूझ रहा है। वहीं यदि जीभ में पर्याप्त मात्रा में लार है तो इसका अर्थ यह हुआ कि मरीज के शरीर में पानी की कमी नहीं है।
गले को छूकर की जाती है जांच
फिजिकल चेकअप की जांच की बात बताते हुए डाक्टर अभिषेक बताते हैं कि गले को छूकर लिंफ लोड (lymph nodes) की जांच की जाती है। वहीं यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि कहीं इसका आकार बढ़ा को नहीं है। वहीं गर्दन को छूकर गले में होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारी जैसे मम्स, टाॅन्सिल से संबंधित व अन्य बीमारी की भी जांच की जाती है।
आला लगाकर सांस की तकलीफ की होती है जांच
फिजिकल चेकअप के दौरान आला/स्टेटेस्कोप लगाकर मरीज के सांस की जांच की जाती है। डाॅक्टर अभिषेक बताते हैं कि मरीज को सांस अंदर लेने और छोड़ने को कहा जाता है। वहीं यह पता लगाया जाता है कि वह सही से सांस ले पा रहा है या नहीं। यदि मरीज को सांस लेने में परेशानी हो रही है तो उसे निमोनिय की बीमारी हो सकती है। यह तमाम चेस्ट संबंधी जांच के अंतर्गत आते हैं। वहीं मरीज की छाती की भी स्टेटेस्कोप से जांच की जाती है, जिसमें उसके धड़कन की जांच की जाती है। वहीं पता लगाया जाता है कि धड़कन सामान्य है या नहीं। इसके अलावा लंग्स की भी जांच स्टेटेस्कोप से की जाती है। वहीं उसके आवाज को भांप कर मरीज का स्वास्थ्य हाल का पता किया जाता है। सांस लेने और छोड़ने की जांच को ऑन्ची और विजी (rhonchi and wheeze) कहा जाता है। वहीं स्टेटेस्कोप से ही मरीज के चेस्ट के साथ काख (हाथ के नीचे) और शरीर के पीछे की जांच की जाती है। इसकी जांच कर पता लगाया जाता है कि मरीज को कहीं सांस लेने में कोई परेशानी तो नहीं हो रही।
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हार्ट रेट की जांच कर कार्डियोवेस्कुलर डिजीज की करते हैं जांच
फिजिकल चेकअप करने के दौरान कई डाक्टर मरीज के दिल की भी जांच करते हैं। डाक्टर अभिषेक बताते हैं कि हार्ट रेट की जांच कर या फिर दिल की धड़कनों को गिनकर मरीज स्वस्थ्य है या नहीं इसकी जांच की जाती है। वहीं यह पता करने की कोशिश की जाती है कि कहीं इसे कार्डियोवेस्कुलर डिजीज तो नहीं। यदि हार्ट रेट सामान्य से कम हो तब परेशानी होती है वहीं यदि सामान्य से ज्यादा हो उस वक्त भी परेशानी होती है।
पेट को छूकर लिवर स्पलीन की होती है जांच
बकौल डाक्टर अभिषेक फिजिकल चेकअप के दौरान सिर से लेकर मरीज के पांव तक की जांच की जाती है। पेट में भी मुख्य रूप से दो हिस्से होते हैं पहला अपर एबडॉमिन और दूसरा लोअर एबडॉमिन। अपर एबडॉमिन में पेट की जांच करने के लिए मरीज का पेट छूकर डाॅक्टर कुछ बताते पता कर सकते हैं। अमूमन डाक्टर देखते हैं कि ऑर्गन सामान्य है या नहीं। पेट ज्यादा सॉफ्ट है या कड़ा है इसकी जांच की जाती है। पेट के दाहिने हिस्से को छूकर लिवर की जांच की जाती है वहीं पेट के बाएं हिस्से को छूकर स्पलिन की जांच की जाती है। मलेरिया, कालाजार जैसी बीमारी होने की स्थिति में स्पलिन सामान्य की तुलना में बढ़ जाता है। वहीं पेट को दबाकर देखते हैं कि कहीं दर्द तो नहीं हो रहा। खासतौर से एपेंडिसाइटिस के केस में नाभी के नीचे थोड़ा दाहिने हिस्से में दबाकर जांच करते हैं कि कहीं एपेंडिक्स बढ़ा तो नहीं है या फिर उसे दर्द तो नहीं हो रहा है। यदि लक्षण दिखाई देता है तो उस परिस्थिति को देखते हुए इलाज किया जाता है।
लोअर एबडॉमिन की जांच में पेशाब की थैली की करते हैं जांच
पेट के नीचले हिस्से की जांच को लोअर एबडॉमिन की जांच कहा जाता है। ऐसे में हम पेशाब की थैली को छूकर जांच करते हैं कि कहीं मरीज को पेशाब संबंधी परेशानी तो नहीं है, या फिर थैली कहीं सामान्य से फूली तो नहीं है। वहीं लोअर एबडॉमिन में ही जहां शरीर का वेस्ट जहां स्टोर होता है उस जगह को छूकर हम यह जांच करते हैं कि यह हार्ड है या सॉफ्ट, यदि हार्ड हुआ तो मरीज को शौच से संबंधित परेशानी होती है और फिर हम उस बीमारी की जांच करते हैं।
पांव की जांच कर एडिमा का लगाते हैं पता
फिजिकल चेकअप में हम मरीज के पांव की भी जांच करते हैं। पांव की जांच कर हम यह पता लगाते हैं कि कहीं उसे एडिमा की शिकायत तो नहीं। एडिमा की स्थिति में मरीज के पांव की हड्डी के ऊपरी हिस्से में स्वेलिंग होती है। वहीं हाथ से जब हम उसे दबाते हैं तो वो सामान्य की तुलना में तेजी से नहीं बल्कि अपने नैचुरल आकार में आने में समय लेता है। ठीक ऐसा ही हम फाइलेरिया व अन्य बीमारी की जांच को लेकर भी करते हैं।
जब तक मरीज बीमारी नहीं बताएं तब तक नहीं करते प्राइवेट पार्ट की जांच
डॉक्टर अभिषेक बताते हैं कि सामान्य फिजिकल चेकअप में हम मरीज के प्राइवेट पार्ट की जांच नहीं करते। ऐसा हम तभी करते हैं जब मरीज इन पार्ट को लेकर कोई शिकायत करें कि जैसे कि प्राइवेट पार्ट में खुजली, इंफेक्शन या फिर कोई और बीमारी है। जरूरत पड़ने पर ही हम मरीज के प्राइवेट पार्ट की जांच करते हैं।
पुरुष-महिलाओं में अलग अलग होती है स्क्रीनिंग
फिजिकल चेकअप की बात करें तो महिलाओं की स्वास्थ्य जांच में महिलाओं में मेमोग्राम की जांच की जाती है। 50 से 74 साल की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना काफी ज्यादा रहती है। ऐसे में उन्हें मेमोग्राम की जांच की सलाह दी जाती है। इसके अलावा ब्रेस्ट इग्जामिनेशन के तहत ब्रेस्ट में एबनॉर्मल लंप की जांच की जाती है। वहीं महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए पैप स्मीयर टेस्ट कराया जाता है। 21 साल की उम्र के बाद हर तीन साल में इसकी जांच की सलाह दी जाती है। 30 साल की उम्र के बाद हर पांच साल में पैप स्मीयर टेस्ट की सलाह दी जाती है।
वहीं सेक्सुअल ट्रांसमिटेड इंफेक्शन की जांच करने के लिए पेल्विक इग्जामिनेशन किया जाता है। इसके तहत वजायना (vagina), सर्विक्स (cervix) व वुलवा (vulva) की जांच की जाती है। वहीं कई महिलाएं 45 की उम्र के बाद कोलेस्ट्रोल की जांच शुरु करती हैं, लेकिन यह गलत है, ऐसी महिलाएं जिनमें पूर्वजों में हार्ट डिजीज और डायबिटीज के लक्षण थे वैसे लोगों को 20 साल की उम्र के बाद ही कोलेस्ट्रोल की नियमित जांच करवानी चाहिए। वहीं 65 साल के बाद ऑस्टियोपोरोसिस की जांच जरूरी होती है।
पुरुषों को इन जांच की दी जाती है सलाह
35 साल की उम्र के बाद पुरुषों को नियमित कोलेस्ट्रोल की जांच की सलाह दी जाती है। वहीं यदि पूर्वजों में किसी को डायबिटीज या फिर दिल संबंधी बीमारी हुई हो तो 20 साल के बाद से ही कोलेस्ट्रोल की नियमित जांच करवाना जरूरी है। प्रोस्टेट कैंसर स्क्रीमिंग के मामले में सामान्य तौर पर प्रोस्टेट स्पीसिफिक एंटीजिन टेस्ट व डिजिटल रेक्टल इग्जामिनेशन तब तक जरूरी नहीं है जब तक डाॅक्टर सलाह न दें। सामान्य तौर पर 50 साल के बाद यह टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है, लेकिन ऐसे लोग जिनके घर में पहले से ही इस बीमारी से पीड़ित यदि कोई हो तो उन्हें 40 साल के बाद से ही यह टेस्ट कराना चाहिए। पुरुषों का टेस्टिकल इग्जामिनेशन के तहत हर एक टेस्टिकल की बारीकी से जांच की जाती है वहीं लक्षणों की जांच कर समस्या का पता लगाया जाता है।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाॅक्टरी सलाह लें। ।
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