अत्यधिक बुखार को डेंगू फीवर या ‘ब्रेक बोन फीवर’ माना जाता है। किसी व्यक्ति को संक्रमित मच्छर द्वारा काटने के 2-14 हफ्तों के भीतर यह बुखार होता है। ऐसा माना जाता है कि यह एडीज एजिप्टी प्रजाति के मच्छर के काटने से होता है। इस ‘राष्ट्रीय डेंगू दिवस’ के मौके पर आइए डेंगू फीवर और उससे होने वाले डेंगू हेमरेज फीवर के प्रमुख कारणों के बारे में जानें।
हेमरेज फीवर
यह संभव है कि एक व्यक्ति को एक से अधिक बार संक्रमण और उससे होने वाला डेंगू फीवर हो जाए। यदि दूसरी बार संक्रमण का पता चलता है तो डेंगू का ज्यादा तीव्र रूप होना अधिक खतरनाक हो सकता है। आइए जानते हैं कि डेंगू के मामले में किन लक्षणों को ध्यान में रखने की जरूरत होती है, उनमें निम्नलिखित लक्षण शामिल हैं:
- सिरदर्द
- चेहरे में दर्द और आंखों के पीछे दर्द
- मांसपेशियों में अकड़न और दर्द
- जोड़ों में दर्द और ऐंठन
- रैश
- मितली और एनोरेक्सिया होने की शिकायत होना
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डेंगू के इलाज
आमतौर पर गंभीर लक्षण एक हफ्ते तक बने रहते हैं, हालांकि कमजोरी और मितली की शिकायत लंबे समय तक हो सकती है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि डेंगू संक्रमण के काफी सारे मामलों में कम से कम लक्षण नजर आते हैं और कई बार तो कोई भी लक्षण नजर नहीं आता। बच्चे तथा ऐसे लोग जिन्हें पहले कभी डेंगू नहीं हुआ उनमें अक्सर ब्लड टेस्ट के बाद ही इसका पता चलता है। जब डेंगू के इलाज की बात आती है तो यह बहुत कठिन नहीं होता है और ज्यादातर घर के अंदर तक सीमित होता है। इसके इलाज के निम्नलिखित विकल्पों पर जोर दिया जाता है:
- लक्षणों से राहत जिसमें दर्द भी शामिल है
- बुखार को नियंत्रित करना
- मरीजों को एस्प्रिन या अन्य प्रकार के नॉन-स्टेरायडल, एंटी-इंफ्लेमेंटरी दवाएं ना लेने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इससे हेमरेज (रक्तस्राव) का खतरा बढ़ जाता है
- इलाज के दौरान पर्याप्त मात्रा में तरल चीजों को शामिल करना जरूरी है- इससे बुखार से होने वाले डिहाइड्रेशन और उल्टी से बचाव होगा
- पर्याप्त आराम करें
- यदि किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से डेंगू फीवर है, उसे तुरंत ही अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत है; उसके बाद उसे इंट्रावीनस (आईवी) फ्लूइड के साथ इलेक्ट्रोलाइट रिप्लेसमेंट देने की जरूरत होती है। यहां उस व्यक्ति के ब्लड प्रेशर पर बराबर नजर रखी जाती है।
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डेंगू हेमरेज फीवर (डीएचएफ) की शुरुआत
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि डेंगू हेमरेज फीवर का होना संक्रमण का गंभीर रूप है। यह उन लोगों को होता है जिन्हें यह संक्रमण दूसरी, तीसरी या चौथी बार हुआ हो, वैसे किसी को पहली बार में भी ऐसा हो सकता है। डीएचएफ की परेशानी में ब्लड वेसल्स का क्षतिग्रस्त होना शामिल है, जिसकी वजह से स्राव होने लगता है; रक्तधारा में थक्का जमाने वाली कोशिकाएं, प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं, जिसकी वजह से गंभीर रूप से रक्त स्राव हो सकता है, ब्लड प्रेशर कम हो सकता है (इसे डेंगू शॉक के रूप में जाना जाता है) और कई बार यह जानलेवा हो सकता है। जानलेवा संक्रमण डीएचएफ के कुछ संकेतों और लक्षणों में हो सकता है कि लक्षणों की शुरुआत के लगभग तीसरे से सातवें दिन, निम्नलिखित प्रकार के गंभीर लक्षण नजर आने लगें:
- पेट के आस-पास के हिस्से में तेज दर्द होना
- लगातार उल्टियां होना
- बुखार में एकदम से बदलाव होना (बुखार की वजह से हाइपोथर्मिया हो जाए)
- हेमरेज का होना
- मानसिक स्थिति में बदलाव आना (चिड़चिड़ापन, मतिभ्रम , आदि)
- नाक तथा मसूड़ों से खून आना
- पेशाब या मल में खून दिखना
- सांस लेने में परेशानी
- थकान
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मरीज में शॉक के शुरुआती लक्षण भी नजर आ सकते हैं, जिसमें बेचैनी या घबराहट होना, नाड़ी का तेज गति से कमजोर पड़ना, त्वचा का ठंडा और गीला होना साथ ही नाड़ी का दबाव कम होना, शामिल है।
विश्व संगठन निम्नलिखित मापदंडों के आधार पर डेंगू हेमरेज फीवर को परिभाषित करता है:
- यदि बुखार 2-7 दिनों तक बना रहे
- हेमरेज का कोई लक्षण नजर आना
- कैपलेरी की भेद्यता का बढ़ जाना, इससे रक्त का संचार बढ़ जाता है।
हेमरेज आमतौर पर हल्के रूप में होता है और इसमें नाक से खून आना, पॉजिटिव टॉर्निक्वेट टेस्ट (डेंगू का पता लगाने के लिए), मसूड़ों से रक्तस्राव और ब्लड वेसल्स की वजह से त्वचा से रक्तस्राव होना शामिल है। योनी से रक्तस्राव, इंट्राक्रेनियल रक्तस्राव (मस्तिष्क के ब्लड वेसल्स के क्षतिग्रस्त होने पर) या खून की उल्टी होना हेमरेज के कुछ ज्यादा गंभीर लक्षण हैं। डेंगू फीवर की सबसे गंभीर समस्या ‘प्लाज़्मा लीकेज’ को माना जाता है, यह कैपलरी की भेद्यता बढ़ जाने के कारण होता है। इसकी वजह से डेंगू शॉक सिंड्रोम जैसी जानलेवा समस्या हो सकती है, इसे हाइपोटेंशन के नाम से भी जाना जाता है। यह ब्लड प्रेशर के कम होने की स्थिति होती है, जिसमें मस्तिष्क तक सही मात्रा में रक्त नहीं पहुंच पाता है।
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डेंगू हेमरेज फीवर (डीएचएफ) मरीजों की निगरानी रखना
यदि मरीज डीएचएफ के इलाज पर है तो मरीज की हार्ट रेट, कैपलरी रिफिल, त्वचा के रंग और बुखार को आईसीयू की व्यवस्था में लगातार देखा जाता है। पल्स का दबाव और ब्लड प्रेशर स्थिर है या नहीं उस पर भी कड़ी निगरानी रखी जाती है। सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर आमतौर पर अंतिम लक्षण के रूप में माना जाता है जब मरीज शॉक में होता है। इसलिए, चिकित्सकों को त्वचा और अन्य हिस्सों पर रक्तस्राव के लक्षण पर जरूर नजर रखनी चाहिए।
डेंगू बुखार का इलाज किस तरह किया जा सकता है
आमतौर पर मरीजों का बुखार नियंत्रित करने के लिए एंटी-पायरेटिक दवाएं दी जाती हैं; डेंगू से पीड़ित बच्चों को बुखार की वजह से दौरे पड़ने का खतरा रहता है- यह ऐंठन की समस्या होती है जोकि रक्त में संक्रमण की वजह से बुखार के बढ़ने के कारण होता है; ऐसे में आमतौर पर डायजेपाम दिया जाता है। दौरे की स्थिति में मरीजों के हाइड्रेशन स्तर पर नजर रखी जाती है। यह जरूरी है कि मरीजों और पेरेंट्स को डिहाइड्रेशन के कुछ तय लक्षणों के बारे में बताया जाए ताकि उन्हें खतरों की जानकारी हो। साथ ही किसी को उनके यूरीन आउटपुट पर भी नजर रखनी चाहिए। यदि मरीज मुंह से तरल चीजें नहीं ले पा रहा है तो आमतौर पर उन्हें आईवी फ्लूइड दिया जाता है। यह बहुत जरूरी है कि मरीज की हार्ट रेट, कैपेलरी रिफिल, पल्स का दबाव, ब्लड प्रेशर और यूरीन आउटपुट पर लगातार नजर रखी जाए। ऑक्सीजन तथा इलेक्ट्रोलाइट थैरेपी भी दिया जाना जरूरी है, वैसे यह बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है। प्लेटलेट ट्रांसफ्यूज़न तभी दिया जाता है यदि प्लेटलेट काउंट 10,000 से कम हो या फिर रक्तस्राव हो रहा हो।
जब बात आती है डेंगू के गंभीर मामलों के इलाज की तो यह बहुत जरूरी है कि मरीजों के गंभीर लक्षणों पर कड़ी नजर रखी जाए। समय पर और पर्याप्त इलाज शॉक जैसी गंभीर स्थितियों से बचाने के लिए बेहद जरूरी है।
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