क्या होती है विटिलिगो बीमारी (Vitiligo disease) ?

विटिलिगो बीमारी ऑटोइम्यून बीमारी है। इसे लोग आम भाषा में सफेद दाग भी कहते हैं। विटिलिगो बीमारी में त्वचा का रंग सफेद होने लगता है। अक्सर लोग इसे छुआछूत की बीमारी भी कहते हैं जो कि पूरी तरह गलत है। विटिलिगो बीमारी मेलेनिन पिगमेंट की गड़बड़ी के कारण होता है। त्वचा को रंग प्रदान करने के लिए शरीर में मेलेनिन पिगमेंट पाया जाता है। जब इस पिगमेंट में कमी आने लगती है तो शरीर के कुछ हिस्सों का रंग सफेद होने लगता है। विटिलिगो बीमारी में मेलेनिन बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। विटिलिगो बीमारी होने पर हमारे समाज में व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार भी किया जाता है। हालांकि, विटिलिगो बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में स्किन कैंसर होने का जोखिम सबसे ज्यादा होता है। विटिलिगो बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं है। विटिलिगो बीमारी होने पर स्किन को सूर्य की रोशनी से बचाकर रखना जरूरी हो जाता है। विटिलिगो बीमारी किसी भी व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन डार्कर स्किन में ये बीमारी होने की अधिक संभावना रहती है।
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विटिलिगो बीमारी के क्या हैं लक्षण ?
विटिलिगो बीमारी किसी को भी हो सकती है। विटिलिगो बीमारी होने पर स्किन का कलर पैची लूस हो जाता है। शरीर का जो भाग धूप में अधिक रहता है, उस स्थान में लक्षण पहले दिखाई देते हैं। शरीर के भाग जैसे कि हाथ, पैर, फेस और लिप्स के कलर में परिवर्तन देखने को मिलता है।
- त्वचा का रंग बदल जाना
- शरीर में स्कैल्प, पलकों, भौंहों या दाढ़ी के बाल समय से पहले सफेद हो जाना।
- मुंह के अंदर के टिशू और नोज यानी म्युकस मेंबरेन के टिशू के रंग को नुकसान पहुंचना।
- आईबॉल (रेटीना) की इनर लेयर का कलर बदल जाना। वैसे तो विटिलिगो बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन ये ज्यादातर मामलों में 20 साल की उम्र के बाद ही दिखाई देती है।
- विटिलिगो बीमारी शरीर के विभिन्न भागों में फैल सकती है। जिसे सेगमेंटल विटिलिगो कहते हैं। ये कम उम्र में भी हो सकता है। कम उम्र में होने के बाद ये कुछ समय के लिए रुक भी जाता है। जब विटिलिगो बीमारी शरीर के किसी खास स्थान में होती है तो इसे सेगमेंटल विटिलिगो कहते हैं।
- बॉडी के एक हिस्से में फैलने वाली इस बीमारी को लोकेलाइज्ड विटिलिगो भी कहते हैं।