backup og meta

ऑटोइम्यून डिजीज में भूल कर भी न खाएं ये तीन चीजें

ऑटोइम्यून डिजीज में भूल कर भी न खाएं ये तीन चीजें

ऑटोइम्यून डिजीजेस के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, क्योंकि ऑटोइम्यून डिजीजेस बीमारियों का एक समूह है। जो दिन बदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारे लाइफस्टाइल, खानपान और रहन-सहन में बदलाव है। पूरे भारत में लगभग एक करोड़ से ज्यादा लोग ऑटोइम्यून डिजीजेस से पीड़ित हैं। कंसल्टिंग होमियोपैथ एंड क्लिनीकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. श्रुति श्रीधर ने हैलो स्वास्थ्य को बताया कि ऑटोइम्यून डिजीजेस इम्यून सिस्टम के कारण होने वाली बीमारियां है, जिसमें कुछ बीमारियों का इलाज है तो कुछ अभी भी लाइलाज हैं। इसलिए हमें इन बीमारियों से बचने के लिए अपने भोजन को दुरुस्त करना होगा। ऐसे में उन फूड्स से बचें जिससे आपकी ऑटोइम्यून बीमारी और ज्यादा बढ़ जाती है।

और पढ़ें : बच्चों के मुंह के अंदर हो रहे दाने हो सकते हैं ‘हैंड-फुट-माउथ डिसीज’ के लक्षण

ऑटोइम्यून डिजीजेस (Autoimmune Diseases) क्या है?

ऑटोइम्यून डिजीजेस बीमारियों का समूह है, जिसमें व्यक्ति को एक साथ कई बीमारियां हो जाती हैं। ऑटोइम्यून दो शब्दों से मिल कर बना है- ऑटो का मतलब है अपने आप और इम्यून का मतलब है प्रतिरक्षा। तो इस तरह से समझा जा सकता है कि शरीर का इम्यून सिस्टम अपने आप कमजोर हो जाता है तो उससे होने वाली बीमारियों को ऑटोइम्यून डिजीज कहते हैं। यह शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। दूसरे शब्दों में कहा जाता है कि हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम स्वस्थ कोशिकाओं को ही नष्ट करने लगता है। 

और पढ़ें : भूलने की बीमारी जो हंसा देती है कभी-कभी 

ऑटोइम्यून डिजीज का कारण? 

हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस से लड़ता है और इसके बाद शरीर के स्वस्थ्य टिश्यू को ही नष्ट करने लगता है, तब ऑटोइम्यून डिजीज होती है। अक्सर ऑटोइम्यून डिजीज उन लोगों में होती है जो मोटापा, खराब लाइफस्टाइल और फास्ट फूड का सेवन करते हैं। 

इसके अलावा निम्न कारण भी हैं : 

  • आनुवंशिक
  • पर्यावरण के कारण
  • टॉक्सिन या बैक्टीरिया के कारण

2014 में हुई एक रिसर्च के अनुसार महिलाओं में ऑटोइम्यून डिजीज होने का खतरा पुरुषों के तुलना में दोगुना है। जहां, 78 % महिलाएं ऑटोइम्यून डिजीज से ग्रसित रहती हैं, वहीं पुरुषों में 8 % ऑटोइम्यून डिजीज की समस्या पाई जाती है। महिलाओं में ऑटोइम्यून डिजीजेस 15 से 44 साल के उम्र में ही नजर आने लगते हैं। 

वेस्टर्न डायट के कारण भी ऑटोइम्यून डिजीज होती है। हाई-फैट, हाई-शुगर और हाई प्रोसेस्ड फूड खाने से इम्यून संबंधित बीमारियां हो जाती है। 2015 में आई एक अन्य थियोरी, जिसे हाइजीन हाइपोथेसिसि कहते हैं। क्योंकि वैक्सीन और एंटीसेप्टिक का सही तरीके से इस्तेमाल न करने से उनमें ऑटोइम्यून डिजीज की समस्या हो जाती है। 

और पढ़ें : Chronic Obstructive Pulmonary Disease (COPD) : क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज क्या है?

ऑटोइम्यून डिजीजेस के सामान्य प्रकार क्या हैं?

  • शोग्रेंस सिंड्रोम (Sjögren’s syndrome) : इसमें आंखों और मुंह की त्वचा सूख जाती है, जिसके साथ अन्य ऑटोइम्यून डिजीजेस हो जाती है। 
  • ग्रेव्स डिजीज (Grave’s disease) : ग्रेव्स डिजीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है। जिसमें थायरॉइड ग्लैंड में सूजन आ जाती है। जिसके कारण हॉर्मोन असंतुलित हो जाते हैं। ग्रेव्स डिजीज तब होता है जब थायरॉइड हॉर्मोन ज्यादा मात्रा में स्रावित होने लगता है। जो झटके, त्वचा पर लालपन और अनियमित हार्टरेट का कारण बनता है। 
  • सोरायसिस (psoriasis) : सोरायसिस एक गंभीर ऑटोइम्यून बीमारी है। जो एक त्वचा संबंधी समस्या है। सोरायसिस अक्सर कॉस्मेटिक डैमेज या रिएक्शन के कारण होता है। सोरायसिस से पीड़ित व्यक्ति को त्वचा में जलन के साथ त्वचा पर अलग तरह के ही चकत्ते और सूजन आदि दिखाई देने लगते हैं। जो आगे चल कर घातक भी साबित हो सकते हैं। 
  • यूवाइटिस (Uveitis) : यूवाइटिस आंखों में जलन संबंधी ऑटोइम्यून बीमारी है। जिसमें आंखों के पिगमेंटेड लेयर, जिसे यूविया कहते हैं, उसमें लालपन के साथ जलन होती है। यूवाइटिस में आंखों में संक्रमण और दर्द भी होता है। 
  • सारकॉइडोसिस (Sarcoidosis) : सारकॉइडोसिस एक ऑटोइम्यून बीमारी है। जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों में इंफ्लेमेट्री सेल्स के जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है। फेफड़े, ब्लड के लिम्फ नोड, आंखें, सांस लेने में परेशानी और त्वचा पर सूजन इसके प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं। सारकॉइट ग्रेन्युलोमास को ग्रनुलोमाटोस डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। 

और पढ़ें : Rheumatoid arthritis : रयूमेटाइड अर्थराइटिस क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय

  • एडिसंस डिजीज (Addison’s disease) : एडिसंस डिजीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है। जो एंडोक्राइन सिस्टम के कारण होती है। एंडोक्राइन सिस्टम से स्रावित होने वाले हॉर्मोन अनियमित हो जाते हैं। एडिसंस 21-हाइड्रोलेज एंजाइम के कारण होता है, जो किडनी के ऊपर पाई जाने वाली एड्रिनल ग्रंथि पर अटैक करता है। एड्रिनल ग्रंथि से कॉर्टिसॉल और एड्रिनालिन स्रावित होता है, जो अनियमित हो जाता है। 
  • विटिलिगो (Vitiligo) : विटिलिगो ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसे सामान्य भाषा में सफेद दाग भी कहा जाता है। विटिलिगो में त्वचा का रंग जगह-जगह पर सफेद होने लगता है। त्वचा को रंग देने के लिए मेलेनिन पिगमेंट जिम्मेदार होता है। विटिलिगो में मेलेनिन बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। 
  • ग्रैन्यूलोमेटॉसिस (Granulomatosis) : ग्रैन्यूलोमेटॉसिस ऑटोइम्यून बीमारी है। जिसमें खून की नसों में सूजन हो जाती है। ग्रैन्यूलोमेटॉसिस बहुत रेयर डिजीज है। ग्रैन्यूलोमेटॉसिस में वजन का घटना, थकान और सांस लेने में समस्या आदि होती है। 
  • स्क्लेरोडर्मा (Scleroderma) : स्क्लेरोडर्मा एक कनेक्टिव टिश्यू डिसऑर्डर और ऑटोइम्यून डिजीज है। जिसके कारण त्वचा में बदलाव, खून की नसों, आंतरिक अंगों और मांसपेशियों में भी विकृति आती है। जिसके कारण त्वचा का रंग गाढ़ा होने लगता है, त्वचा मोटी और कड़ी होने लगती है। 
  • रयूमेटॉइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) : रयूमेटॉइड आर्थराइटिस एक जोड़ों से संबंधित खतरनाक बीमारी है। कुछ लोगों में शरीर को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है, जैसे त्वचा, आंखें, फेफड़े, हृदय और खून की नसें शामिल हैं। एक ऑटोइम्‍यून डिसऑर्डर में रयूमेटॉइड आर्थराइटिस तब होता है जब आपका इम्यून सिस्टम शरीर के पेशियों पर हमला करती है तो ऑस्टियोआर्थराइटिस जोड़ों में दर्द और सूजन पैदा करता है। 

और पढ़ें : दुनियाभर में लगभग 17 मिलियन लोगों को होने वाली एक विकलांगता है सेरेब्रल पाल्सी

  • हाशिमोटोस डिजीज (Hashimoto’s disease) : इस बीमारी में थायरॉइड ग्लैंड लगातार नष्ट होने लगती है और शरीर का वजन बढ़ने लगता है। 
  • सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis) : सिस्टिक फाइब्रोसिस एक खतरनाक बीमारी है। जो आनुवंशिक होने के साथ-साथ जानलेवा भी है। सिस्टिक फाइब्रोसिस से ग्रसित व्यक्ति लगभग 37 साल से ज्यादा नहीं जी पाता है। इसमें डिफेक्टिव जीन्स फेफड़े और अग्नाशय में मोटा म्यूकस जमा हो जाता है। जिससे फेफड़ों में इंफेक्शन और पाचन विकार हो जाते हैं। 
  • टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) : इसमें अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इन्सुलिन नहीं बना पाता है। जिससे शरीर में शुगर लेवल बढ़ जाता है। 

ऑटोइम्यून डिजीजेस में क्या न खाएं?

ऑटोइम्यून डिजीजेस में कुछ चीजें खाने से उनके लक्षण आप पर और ज्यादा हावी हो सकते हैं। इसलिए ऑटोइम्यून डिजीजेस होने पर उन्हें न खाएं और अपने डायट से बाहर निकाल दें।

और पढ़ें : Muscular dystrophy : मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी क्या है?

शुगर (Sugar)

Diabetes

शुगर का नाम लेते ही सबसे पहले मन में मिठास का एहसास होता है। लेकिन, अगर आपको ऑटोइम्यून डिजीजेस हैं तो वहीं मिठास आपकी जिंदगी में तकलीफ ला सकता है। फ्रंटियर ऑफ इम्यूनोलॉजी की एक रिसर्च में ये बात सामने आई है कि अगर आप शुगर की अनियमित मात्रा लेते हैं तो बचपन में ही डायबिटीज होने का जोखिम बढ़ जाएगा। साथ ही, शरीर पर शुगर का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 

वहीं, अमेरिकन जॉर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन के अनुसार ग्लूकोज और सुक्रोज इम्यून सिस्टम को खराब कर देता है। जिससे व्हाइट ब्लड सेल्स को ही इम्यून सिस्टम नष्ट करने लगता है। इसलिए अपने डायट में शुगर की मात्रा को कम करें या बंद करें। उसकी जगह पर आप नेचुरल शुगर ले सकते हैं। 

एनिमल प्रोडक्ट्स

जंतुओं में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है। जिसमें दूध, अंडे और मांस शामिल हैं। इन्हें ऑटोइम्यून डिजीजेस खाने से शरीर में सूजन और जलन बढ़ती जाती है। 

कॉम्प्लिमेंट्री थेरिपीज  इन मेडिसिन जॉर्नल ऑफ कार्डियोलॉजी में ये बात प्रकाश में आई कि जो लोग तीन हफ्ते से वेगन डायट पर निर्भर रहते हैं, उनके शरीर में दर्द और सूजन कम पाई गई। क्योंकि उनमें सी-रिएक्टिव प्रोटीन कम पाए गए थे। 

अमेरिकन डायटिक एसोसिएशन ने एक रिसर्ज में पाया कि जो लोग वेगन डायट लेते हैं, उन्हें ऑटोइम्यून डिजीजेस में काफी राहत मिलती है। वहीं, जो लोग नॉनवेज खाते हैं, उनके दर्द में इजाफा पाया गया।

ज्यादा मात्रा में एनिमल फैट्स लेने पर हमारे धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जम जाता है। जिससे उनमें खून का संचार बहुत कम हो जाता है। अन्य कई रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग हर मील में मांस खाते हैं, उनमें आर्थराइटिस की समस्या बहुत ज्यादा होती है। इसलिए अगर आप मांसाहारी हैं तो एक नियमित मात्रा में ही नॉनवेज का सेवन करें। 

और पढ़ें : Multiple Sclerosis: मल्टिपल स्क्लेरोसिस क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय

ग्लूटेन

Barley - जौ

ग्लूटेन ज्यादातर स्टार्च युक्त भोजन में पाया जाता है। ग्लूटेन गेंहू, जौ, बाजरे आदि में पाया जाता है।  ग्लूटेन सेलिएक डिजीज को बढ़ावा देने में अव्वल होता है। इसलिए ऑटोइम्यून डिजीजेस में ग्लूटेन का सेवन करने से आपको समस्या होगी। 

क्लिनिकल गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी की एक रिसर्च में पाया गया है कि शरीर में ग्लूटेन की ज्यादा मात्रा होने से स्क्लेरोसिस, अस्थमा और रयूमेटॉइड आर्थराइटिस होता है।जिसका सेवन न करने से आपको अपने अंदर होने वाले बदलाव नजर आने लगेंगे। साथ ही ऑटोइम्यून डिजीजेस के लक्षणों में भी कमी आएगी। 

ऑटोइम्यून डिजीजेस में क्या खाएं?

ऑटोइम्यून डिजीजेस में अभी तक बात हुई कि क्या न खाएं। आइए अब बात करते हैं कि क्या खाएं, जिससे ऑटोइम्यून डिजीजेस से आपको राहत मिले।

मशरूम

मशरूम के फायदे

कहने को मशरूम एक फफूंद है, लेकिन बहुत ही काम की चीज है। मेडिएटर्स ऑफ इंफ्लामेशन के मुताबिक मशरूम का सेवन करने से जहां एक तरफ ऑटोइम्यून डिजीजेस से राहत मिलती है, वहीं दूसरी तरफ कैंसर जैसी घातक बीमारी से बचाव होता है। क्योंकि मशरूम में एंटीकैंसर गुण होते हैं। 

हरे पत्ते

पालक

पालक, ब्रॉकली, पत्तागोभी, सरसों का साग, सलाद पत्ता आदि का सेवन करें। हरी पत्तियों का सेवन करने से ऑटोइम्यून डिजीजेस में आराम मिलता है। हरी पत्तियों में विटामिन और मिनरल पाया जाता है। आप सलाद, स्मूदी, फ्राई आदि में इन हरी पत्तियों को डाल कर खा सकते हैं। 

प्याज

onion प्याज

प्याज एक स्वाद बढ़ाने वाली सब्जी है। जिसके बहुत सारे लाभ होते हैं। प्याज में क्यूरसेटिन नामक एंटीऑक्सिडेंट पाया जाता है। जो ऑस्टियोआर्थराइटिस और रयूमेटॉइड आर्थराइटिस के लिए लाभदायक होता है। 

स्क्वैश

स्क्वैश फैमिली की सब्जियां खाने से आप में ऑटोइम्यून डिजीजेस के लक्षण कम हो जाएंगे। स्क्वैश में बीटा कैरोटिन और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स पाए जाते हैं। जिससे आपको गठिया रोगों में आराम मिलता है। 

सब्जियों की जड़ें

beetroot benefits

सब्जियों की जड़ें, जैसे- चुकंदर, शलजम, गाजर, मूली आदि खाने से ऑटोइम्यून डिजीजेस में राहत मिलती है। क्योंकि, इनमें विटामिन सी, पोटैशियम, मैग्निशीयम, जिंक, आयरन आदि तत्व पाए जाते हैं। 

हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।

[embed-health-tool-bmi]

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

6 Foods to Eat and 3 to Avoid to Help Your Body Fight Autoimmune Disease and Excessive Inflammation https://www.washingtonpost.com/lifestyle/wellness/how-an-anti-inflammatory-diet-can-help-tame-an-autoimmune-condition/2019/02/14/21a52e24-2fcc-11e9-8ad3-9a5b113ecd3c_story.html Accessed December 5, 2019.

Prevalence of a gluten free diet and improvement of clinical symptoms in patients with inflammatory bowel diseases https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4331053/ Accessed December 5, 2019.

C-reactive protein response to a vegan lifestyle intervention. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/25637150 Accessed December 5, 2019.

Effectiveness and safety of dietary interventions for rheumatoid arthritis: a systematic review of randomized controlled trials. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/20430134 Accessed December 5, 2019.

How Animal Proteins May Trigger Autoimmune Disease https://nutritionfacts.org/2014/07/03/how-animal-proteins-may-trigger-autoimmune-disease/ Accessed December 5, 2019.

Role of sugars in human neutrophilic phagocytosis https://academic.oup.com/ajcn/article-abstract/26/11/1180/4732762?redirectedFrom=fulltext Accessed December 5, 2019.

Sugar intake is associated with progression from islet autoimmunity to type 1 diabetes: the Diabetes Autoimmunity Study in the Young https://link.springer.com/article/10.1007/s00125-015-3657-x Accessed December 5, 2019.

Women and Autoimmune Diseases https://wwwnc.cdc.gov/eid/article/10/11/04-0367_article Accessed December 5, 2019.

Current Version

31/12/2020

Shayali Rekha द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Nikhil deore


संबंधित पोस्ट

हेल्थ इंश्योरेंस से लेकर पर्याप्त स्पेस तक प्रेग्नेंसी के लिए जरूरी है इस तरह की फाइनेंशियल प्लानिंग

जानिए क्या है प्रेग्नेंसी और ओरल हेल्थ कनेक्शन


के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

डॉ. प्रणाली पाटील

फार्मेसी · Hello Swasthya


Shayali Rekha द्वारा लिखित · अपडेटेड 31/12/2020

ad iconadvertisement

Was this article helpful?

ad iconadvertisement
ad iconadvertisement