के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
आंखों से जुड़ी बीमारियां आंखों के स्वास्थ्य को खराब करने का काम करती हैं। कुछ बीमारियां जैसे कि विजन इम्पेयरमेंट और विजन लॉस, ग्लॉकोमा, मोतियाबिंद आदि आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंचाने का काम करती हैं। अगर समय पर आंखों की बीमारी की पहचान कर ली जाए, तो बड़ी समस्या से बचा जा सकता है। जानिए विजन इम्पेयरमेंट और विजन लॉस की समस्या क्यों होती है?
विजुअल इम्पेयरमेंट से मतलब विजुअल सिस्टम के एक्शन की लिमिटेशन से है। द नेशनल आय इंस्टीट्यूट (NEI) के मुताबिक लो विजन को विजुअल इम्पेयरमेंट कहते हैं, जो कि स्टैंडर्ड ग्लास, कॉन्टेक्ट लेंस, मेडिकेशन या सर्जरी के माध्यम से ठीक नहीं की जा सकती है। विजुअल इम्पेयरमेंट के कारण रोजाना के कार्य को करने में दिक्कत होती है।
ग्लॉकोमा, एज रिलेटेड मस्कुलर डीजनरेशन आदि विजुअल इम्पेयरमेंट का कारण बन सकते हैं। विजुअल इम्पेयरमेंट के विभिन्न प्रकार हो सकते हैं। जब ग्लॉकोमा की समस्या होती है, तो आंखों का नॉर्मल फ्लूड आंखों में प्रेशर डालता है। एज रिलेटेड मस्कुलर डिजनरेशन में रीडिंग, ड्राइविंग आदि में समस्या हो सकती है। ये पेनलेस कंडीशन है। मोतियाबिंद में आय लेंस प्रभावित होता है और धुंधला दिखाई पड़ता है। डायबिटिक रेटीनोपैथी में आंखों की ब्लड वैसल्स डैमेज हो जाती हैं। इस कारण से एडल्ट में ब्लाइंडनेस की समस्या भी हो सकती है। विजन इम्पेयरमेंट और विजन लॉस के आप कई कारण अब जान गए होंगे। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से बात जरूर करें।
लो विजन और ब्लाइंडनेस के मुख्य कारण एज रिलेटेड मस्कुलर डिजनरेशन (age-related macular degeneration), मोतियाबिंद (cataract), ग्लॉकोमा, डायबिटीक रेटीनोपैथी, एम्ब्लीओपिआ और स्ट्रैबिस्मस (amblyopia and strabismus) हो सकता है। जानिए आय डिजीज के बारे में।
आंखों में रिफ्रेक्टिव एरर से मतलब मायोपिया (near-sightedness), हाइपरोपिया (farsightedness), एस्टिगमेटज्म ( (distorted vision at all distances) और प्रेस्बायोपिया (presbyopia) है। आंखों की इन समस्याओं का सामना 40-50 वर्ष की उम्र में करना पड़ सकता है। इस कारण से व्यक्ति को अखबार पढ़ने में, किताब पढ़ने में फोन के अक्षरों को पढ़ने में या फिर किसी वस्तु में फोकस करने में दिक्कत हो सकती है। दृष्टि संबंधी परेशानियों में सुधार किया जा सकता है। रिफ्रेक्टिव एरर की समस्या से निजात पाने के लिए डॉक्टर आयग्लासेस (eyeglasses), कॉन्टेक्ट लेंस (contact lenses) या फिर सर्जरी की सलाह दी जा सकती है। ये सच है कि रिफ्रेक्टिव एरर को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।
मस्कुलर डिजनरेशन (Macular degeneration) की समस्या उम्र बढ़ने के साथ शुरू हो जाती है। ये आंखों का डिसऑर्डर है, जो सेंट्रल विजन को डैमेज करने का काम करता है। कॉमन डेली टास्क जैसे कि वस्तुओं को देखने के लिए, ड्राइविंग के लिए सेंट्रल विजन बहुत जरूरी होता है। AMD मैक्युला, रेटीना के सेंट्रल पार्ट को डैमेज करता है। रेटीना का सेंट्रल पार्ट बारीक चीजों को देखने में मदद करता है। वेट और ड्राई एएमडी विजन लॉस के लिए जिम्मेदार होते हैं। वेट एएमडी में ब्लड वेसल्स लीकेज होने लगती हैं और सेंट्रल विजन लॉस का कारण बनती हैं। वेट एएमडी के कारण आंखों में रेखाएं बनने लगती हैं। वहीं उम्र बढ़ने के साथ जब मैक्युला थिन होने लगती है, तो ब्लर सेंट्रल विजन की समस्या हो जाती है। इस कारण से सेंट्रल आय विजन प्रभावित होता है।
और पढ़ें: आंख में लालिमा क्यों आ जाती है, कैसे करें इसका इलाज?
डायबिटिक रेटीनोपैथी डायबिटीज का कॉमन कॉम्प्लीकेशन है। ब्लाइंडनेस का मुख्य कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी (Diabetic Retinopathy) की समस्या हो सकती है। डायबिटिक रेटीनोपैथी के कारण रेटीना की ब्लड वैसल्स डैमेज हो जाती हैं। आंखों के पीछे के टिशू लाइट सेंसिटिव होते हैं, जो कि अच्छी विजन के लिए बहुत जरूरी हैं। डायबिटिक रेटीनोपैथी चार स्टेजेस में बढ़ता है।
डायबिटिक रिटेनोपैथी के जोखिम को कम करने के लिए डिजीज मैनेजमेंट बहुत जरूरी है। अगर ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर संबंधी समस्या और लिपिड संबंधी असामान्यताओं पर नियंत्रण किया जाए, तो जोखिम की संभावना कम करने में मदद मिलती है। करीब 50 प्रतिशत पेशेंट बीमारी का देरी से इलाज करा पाते हैं।
ग्लॉकोमा की बीमारी आंखों की ऑप्टिक नर्व को डैमेज करती है। इस कारण से विजन लॉस और ब्लाइंडनेस की समस्या हो जाती है। जब आंखों के अंदर का सामान्य द्रव दबाव ( normal fluid pressure ) धीरे-धीरे बढ़ता है, तो ग्लॉकोमा की समस्या होती है। नॉर्मल आय प्रेशर भी ग्लूकोमा को जन्म दे सकता है। अगर समस्या का समाधान समय पर करा लिया जाए, तो आंखों को सीरियस विजन लॉस से बचाया जा सकता है। ग्लूकोमा के दो मुख्य प्रकार होते हैं। ओपन एंगल और क्लोज्ड एंगल ग्लॉकोमा। ओपन एंगल ग्लॉकोमा क्रॉनिक कंडीशन है, जो धीरे-धीरे बढ़ती है और व्यक्ति को इस बारे में एहसास भी नहीं होता है।अगर परिवार में किसी को ग्लॉकोमा है, तो इस बीमारी की संभावना अधिक बढ़ जाती है। बीमारी के लक्षण के आधार पर डॉक्टर जांच करते हैं और सर्जरी की सलाह भी दे सकते हैं।
और पढ़ें: आय कैंसर (Eye Cancer) के लक्षण, कारण और इलाज, जिसे जानना है बेहद जरूरी
हमने आपको आंखों संबंधी बीमारी के बारे में जानकारी दी। इन बीमारियों से बचा भी जा सकता है। अगर बीमारी के लक्षण आपको दिखाई पड़ते हैं, तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए। आंखें शरीर का सेंसिटिव ऑर्गन हैं। जानिए अगर आपको आंखों संबंधी बीमारी हो जाती है, तो किन उपायों को अपनाया जा सकता है।
आंखों में रिफ्रेक्टिव एरर (Refractive errors) को दूर करने के लिए डॉक्टर आंखों की जांच करते हैं। जांच के दौरान दर्द या परेशानी नहीं होती है। डॉक्टर पास के या फिर दूर के अक्षरों को पढ़ने के लिए कह सकते हैं। फिर डॉक्टर आंखों में ड्रॉप डालेंगे और आंखों समस्या को जानने की कोशिश करेंगे। रिफ्रेक्टिव एरर को दूर करने के लिए डॉक्टर चश्मा (Glasses) लगाने की सालह दे सकते हैं। अगर आपको लेंस का यूज करना है, तो डॉक्टर से सलाह लें। डॉक्टर लेंस को सुरक्षित तरीके से लगाने की सलाह दे सकते हैं। वहीं, कॉर्निया की शेप को चेंज करने के लिए डॉक्टर लेजर आय सर्जरी भी कर सकते हैं।
वेट एएमडी (wet AMD) के लिए डॉक्टर रानीबिजुमड(Ranibizumad), अफ्लिब्रीसेप्ट (Aflibercept ) और बेवाकिजुमाब (Bevacizumab)दवा लेने की सलाह दे सकते हैं। इन ड्रग्स को आंख के कैविटी ( vitreous cavity) में इंजेक्ट किया जाता है, जिसके कारण रेटिना के नीचे ब्लड वैसल्स से रिसाव कम हो जाता है। ये ट्रीटमेंट लाइफ टाइम किया जा सकता है।
डायबिटिक रेटीनोपैथी की समस्या से निजात के लिए डॉक्टर फ्लोरेसिन एंजियोग्राफी टेस्ट की हेल्प से डायबिटिक रेटिनोपैथी की जांच करेंगे। डॉक्टर एडवांस डायबिटिक रेटिनोपैथी के लिए सर्जिकल ट्रीटमेंट की सलाह दे सकते हैं। वहीं लेजर ट्रीटमेंट की हेल्प से आंखों में हो रहे लीकेज को रोका जा सकता है। डॉक्टर स्कैटर लेजर ट्रीटमेंट और विटरेक्टॉमी ट्रीटमेंट की हेल्प भी ली जा सकती है। इस बारे में जनरल फिजिशन डॉक्टर अशोक रामपाल का कहना है कि डॉक्टर ग्लॉकोमा की बीमारी के ट्रीटमेंट के लिए आय ड्रॉप जैसे कि अल्फा एड्रीनर्जिक एगोनिस्ट, कार्बोनिक एनहाइड्रेज इनहिबिटर , बीटा ब्लॉकर्स आदि का यूज आय प्रेशर को कम करने के लिए किया जा सकता है। वहीं कुछ दवाओं को खाने की सलाह दी जा सकती है। लेजर ट्रैबेकोप्लास्टी ट्रीटमेंट की हेल्प से डॉक्टर आंखों के बहाव को रोकने की कोशिश कर सकते हैं। आप ग्लॉकोमा के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करें। डॉक्टर आपको बीमारी के अनुसार उपाय के बारे में जानकारी देंगे।
और पढ़ें : आंख में कुछ चले जाना हो सकता है बेहद तकलीफ भरा, जानें ऐसे में क्या करें और क्या न करें
मोतियाबिंद के कारण लेंस खराब हो जाता है। लेंस में धुंधलेपन के कारण इमेज साफ नहीं दिखाई देती है। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर लेंस को हटाने के लिए अल्ट्रासाउंड वेव का प्रयोग करते हैं। वेव की सहायता से लेंस को फ्लेसिबल बनाया जाता है ताकि वो टूट जाए। इस प्रोसेस को इंसीजन मोतियाबिंद सर्जरी कहते हैं। इसके बाद एक्स्ट्राकैप्सुलर सर्जरी की सहायता से आर्टिफिशियल इंट्राऑक्युलर लेंस का यूज किया जाता है। मोतियाबिंद के इलाज के लिए सर्जरी को सुरक्षित और काफी हद तक सफल माना जाता है। मोतियाबिंद से बचने के लिए अल्ट्रावायलेट रेज से बचना चाहिए। साथ ही आंखों पर अधिक प्रेशर नहीं डालना चाहिए। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
[mc4wp_form id=”183492″]
आंखों से जुड़ी अन्य समस्याओं मे से एक एब्लियोपिया ( Amblyopia) से बचने के लिए डॉक्टर ब्रेन को इमेज कैप्चर करने के लिए फोर्स करते हैं। इसके लिए ग्लासेज, आय पैचेज, आय ड्रॉप या सर्जरी की जा सकती है। आय मसल्स सर्जरी की सहायता से मसल्स को लूज या टाइट किया जाता है। इस सर्जरी में पेशेंट को हॉस्पिटल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है।
स्ट्रैबिस्मस (strabismus ) के उपचार के लिए डॉक्टर ग्लासेज या कॉन्टेक्ट लेंस पहनने की सलाह दे सकते हैं। वहीं प्रिज्म लेंस की सहायता से आंखों में आने वाली रोशनी को बदलने का प्रयास किया जाता है। प्रिज्म लेंस का यूज करने से आंखों के घूमने की क्षमता खत्म हो सकती है। डॉक्टर आय कॉर्डिनेशन और आय फोकसिंग के लिए विजन थेरिपी की सलाह भी दे सकते हैं। आय एक्सरसाइज की हेल्प से आय फोकसिंग पावर बढ़ती है। वहीं आय मसल्स सर्जरी की हेल्प से मसल्स की लेंथ और पुजिशन को चेंज किया जाता है।
ट्रोकोमा के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह देंगे। एंटीबायोटिक्स इन्फेक्शन को खत्म करने का काम करेगा। डॉक्टर टेट्रासाइक्लिन आय मरहम (tetracycline eye ointment) या ओरल एजिथ्रोमाइसिन (oral azithromycin ) लेने की सलाह भी दे सकते हैं।
आंखों में होने वाली समस्याओं की जांच के लिए विभिन्न प्रकार के टेस्ट्स किए जा सकते हैं। प्रत्येक आंख का अलग-अलग टेस्ट किया जाता है। डॉक्टर जांच से पहले पेशेंट से बीमारी के लक्षणों के बारे में जानकारी लेते हैं और उसके बाद ही टेस्ट करते हैं। जानिए आंखों की बीमारी की जांच के लिए किन टेस्ट्स की सहायता ली जाती है।
आय डिजीज से बचने के लिए डॉक्टर ट्रीटमेंट के दौरान सर्जरी या मेडिकेशन की हेल्प लेते हैं। बीमारी के लक्षणों के अनुसार ही ट्रीटमेंट किया जाता है। जानिए आंखों की समस्याओं से निजात पाने के लिए कौन से ट्रीटमेंट किए जाते हैं।
जैसा कि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि आंखें शरीर का बहुत ही सेंसिटिव ऑर्गन होती है। भले ही बुखार या फिर सामान्य बीमारियों में लोग बिना डॉक्टर की सलाह के दवा का इस्तेमाल करते हो लेकिन आंखों के मामले में ऐसा बिल्कुल न करें। आंखों में किसी भी तरह की समस्या होने पर आय स्पेशलिस्ट को दिखाएं और जानकारी लेने के बाद ही दवा या आय ड्रॉप का इस्तेमाल करें। डॉक्टर ने आपको जितनी बार आय ड्रॉप डालने की सलाह दी हो, उतनी बार ही दवा का इस्तेमाल करें।
आंखों की देखभाल न केवल बड़ों बल्कि बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। जिन बच्चों को डॉक्टर ने चश्मा पहनने की सलाह दी है, उन्हें पढ़ते समय, टीवी या फोन का इस्तेमाल करते समय चश्मा जरूर पहनना चाहिए। उपयोग न होने पर चश्में को सुरक्षित जरूर रखें वरना चश्मा टूटने का खतरा रहता है। बच्चे अक्सर चश्मे के साथ खेलते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए चश्में का उपयोग न होने पर उसे बॉक्स में सुरक्षित रख दें। अगर आप लेंस यूज कर रहे हैं, तो डॉक्टर से लेंस यूज करने के बारे में जानकारी जरूर लें। आय इन्फेक्शन या आंखों में जलन होने पर लेंस का यूज न करें। लेंस यूज करने से पहले सॉल्यूशन को चेंज करें। आपर आंखों को साफ करने के बाद ही लेंस का यूज करें। आंखों की देखभाल संबंधी अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
और पढ़ें: कंप्यूटर पर काम करने से पड़ता है आंख पर प्रेशर, आजमाएं ये टिप्स
आंखों की सेहत को लेकर लोगों के मन में कई तरह के भ्रम होते हैं। अगर आपको आय हेल्थ के बारे में सही जानकारी नहीं है, तो आप आंखों की ठीक तरह से देखभाल नहीं कर सकते हैं। जानिए आंखों की सेहत से जुड़े मिथ्स और फैक्ट्स के बारे में।
मिथ : रोजाना चश्मा लगाने से चश्मा नहीं हटता है।
फैक्ट : चश्मा लगाने से आंखों को अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता है। अगर बच्चों की आंखे कमजोर हुई हैं, तो रोजाना चश्मा लगाने और हेल्दी डायट लेने से चश्मा हट भी सकता है।
मिथ : 20/20 का मतलब है कि आय हेल्थ बिल्कुल ठीक है।
फैक्ट : 20/20 आय की सेंट्रल विजन के ठीक होने की जानकारी देता है। विजन संबंधी अन्य रोगों के बारे में 20/20 विजन का कोई मतलब नहीं होता है।
मिथ : आंखों की कमजोरी अनुवांशिक होती है।
फैक्ट : ऐसा हो सकता है लेकिन आंखों की सभी बीमारियों में ये बात लागू नहीं होती है। अगर बच्चे को सही से पोषण नहीं मिला है या फिर आंखों में किसी चोट के कारण विजन प्रॉब्लम हो गई है, तो इसे जेनेटिक इफेक्ट नहीं कहेंगे।
मिथ : ज्यादा टीवी या मोबाइल देखने से आंखे खराब होती हैं।
फैक्ट : ये बात सच है कि मोबाइल या अधिक टीवी देखने से आंखों में सूखापन आ जाता है और आंखों संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं लेकिन ये वीक आय का कारण बनें, ये जरूरी नहीं है।
अच्छी आय हेल्थ के लिए आपको खाने में कुछ न्यूट्रीएंट्स जैसे कि ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, जिंक, विटामिन सी, विटामिन ई और विटामिन-ए आदि को खाने में शामिल करना चाहिए। जानिए कौन से फूड्स आपकी आंखों की सेहत के लिए अच्छे हैं।
मस्कुलर डिजनरेशन की समस्या से बचने के लिए आपको खाने में स्वीट यानी मीठा कम कर देना चाहिए। टेबल सॉस या ड्रेंसिंग को बहुत कम मात्रा में खाने में शामिल करें। हाई जीआई (glycemic index) फूड ब्लड शुगर लेवल को बढ़ाने का काम कर सकते हैं। खाने में फ्राइड फूड को इग्नोर करें और फूड को बेक करके खाएं। कोल्ड ड्रिंक्स में अधिक मात्रा में शुगर होती है, जो आपकी आंखों के लिए ठीक नहीं है। आप खाने में प्रोसेस्ड फूड को भी इग्नोर करें। डयबिटिक पेशेंट को अपनी आंखों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है।
और पढ़ें : आंखों पर स्क्रीन का असर हाेता है बहुत खतरनाक, हो सकती हैं कई बड़ी बीमारियां
आंखों को स्वस्थय रखने के लिए पौष्टिक आहार के साथ ही आय एक्सरसाइज भी बहुत जरूरी है। आय एक्सरसाइज करने से आंखों की मसल्स को रिलेक्स मिलता है। अगर आप दिन में कुछ समय आय एक्सरसाइज करेंगे, तो आपको कुछ ही समय में फर्क महसूस होने लगेगा।
आप आंखों को फोकस करने के लिए निम्न एक्सरसाइज कर सकते हैं।
नियर एंड फार फोकस के लिए (Near and far focus)
आपको आंखों में जो भी समस्या हो, उस बारे में डॉक्टर को बताएं और उनसे आंखों की एक्सरसाइज की जानकारी लें। आप 20 मिनट के अंतराल पर 20 फीट दूर चीज को 20 सेकेंड के लिए फोकस करें। ये 20-20-20 रूल आपकी आंखों को दुरस्त रखने का काम करेगा।
आंखों में किसी को भी समस्या हो सकती है। आय हेल्थ को इग्नोर करने का सीधा मतलब है कि आप आंखों की रोशनी को खतरे में डाल रहे हैं। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। आप स्वास्थ्य संबंधी अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपको कोई प्रश्न पूछना है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
डिस्क्लेमर
हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।