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बातचीत करने के रोचक तथ्य जो जुड़े हैं बच्चों से
बातचीत के बारे में अक्सर कहा जाता है कि जो बच्चे स्पीच डिसऑर्डर (speech disorder) या लैंग्वेज प्रोसेसिंग डिसऑर्डर (language processing disorder) से ग्रसित होते हैं उनको कोई दूसरी भाषा सीखने में कठिनाई होती है। जब कि ऐसा नहीं है। हां, उनको दूसरी भाषा सीखने और सेकंड लैंग्वेज में बातचीत करने में थोड़ी कठिनाई जरूर हो सकती है। लेकिन, बच्चा दूसरी भाषा सीख अवश्य जाएगा।
बातचीत के बारे में बच्चों से जुड़ा एक मिथ यह भी है कि शिशुओं और छोटे बच्चों को एक से अधिक भाषाओं से साथ एक्सपोज करने से उन्हें बातचीत करने या भाषा के विकास में देरी हो सकती है।
जब कि बातचीत के बारे में फैक्ट यह है कि दूसरे बच्चों की तरह ही ज्यादातर द्विभाषी (bilingual) बच्चे भी एक साल की उम्र तक (मम्मी, दादा आदि) एक शब्द बोलना शुरू कर देते हैं। दो साल के होते-होते वे दो शब्दों को (जैसे-मेरी बॉल, नो जूस आदि) मिलाकर बोलने लगते हैं। ऐसा ही उन शिशुओं के साथ भी होता है जो एक भाषा बोलते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि बाइलिंगुअल (bilingual) बच्चा शायद एक भाषा के शब्द को दूसरी लैंग्वेज के साथ मिक्स कर सकता है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि बाइलिंगुअल बच्चा एबनॉर्मल है या उसके विकास में देरी हो रही है।
बातचीत के बारे में कहा जाता है कि बच्चों को कम उम्र में ही दूसरी भाषा को सीखा दिया जाए तो ही वो धाराप्रवाह दूसरी लैंग्वेज बोल सकते हैं।
हालांकि, भाषा सीखने के लिए उम्र का शुरूआती समय ही उचित माना जाता है। इस दौरान बुद्धि का विकास तेजी से होता है। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं है कि बड़े बच्चे या वयस्क दूसरी भाषा में फ्लुएंट नहीं हो सकते हैं।
बच्चे से दो भाषा में बातचीत करने से उसे स्पीच या भाषा विकार हो सकता है।