हर क्षेत्र, देश या जगह की साइन लैंग्वेज अलग-अलग हो सकती है। मसलन, भारत में मौजूद किसी एक क्षेत्र की भाषा भारत के ही दूसरे क्षेत्र से अलग हो सकती है। इसी तरह, भारत और अमेरिका के मूक-बधिर लोगों की साइन लैंग्वेज भी अलग होती है। देश और लिपि के मुताबिक साइन लैंग्वेज को बनाया जाता है। क्योंकि, किसी भाषा के अल्फाबेट के आधार पर ही साइन, संकेत या इशारे बनाए-समझे जाते हैं। जैसे- भारत में इस्तेमाल होने वाली साइन लैंग्वेज में हिंदी के स्वर और व्यंजन के आधार पर साइन बनाए गए होते हैं। जब आप अल्फाबेट या स्वर व व्यंजन का ज्ञान कर लेते हैं, तो फिर शब्द का इशारा करना सिखाया जाता है।
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साइन लैंग्वेज हो सकते हैं कुछ अंतर
इसके अलावा, मनुष्य की भावनाओं और कुछ यूनिवर्सल सिंटैक्स वाले साइन के लिए दुनियाभर में एक ही तरीका होता है। जैसे- अगर आपको किसी को ‘हैलो या हाय’ कहना है, तो आप अपने एक हाथ को दाएं से बाएं या बाएं से दाएं हिलाकर ही संकेत करते हैं। लेकिन, इसके उलट हर देश या क्षेत्र में साइन लैंग्वज अलग-अलग हो सकती है। जैसे- ‘अमेरिकी साइन लैंग्वेज’ में शादी का इशारा अंगूठी पहनाने से किया जाता है और ‘इंडियन साइन लैंग्वेज’ में दोनों हथेलियों को एक के ऊपर एक रखकर किया जाता है। इसी तरह, ‘अमेरिकी साइन लैंग्वेज’ में चाय का संकेत टी-बैग को डुबोने के इशारे से किया जाता है और ‘इंडियन साइन लैंग्वेज’ में चाय की प्याली से चुस्की लेने का इशारा किया जाता है। इसके अलावा, भारत में ही दक्षिण क्षेत्र में शादी का मुट्ठी बंद कर दोनों बांहों को एक साथ मिलाकर इशारा किया जाता है और उत्तर भारत में यह जेल का संकेत हो सकता है। ऐसी स्थिति में ही व्यवस्थित साइन लैंग्वेज या साइन लैंग्वेज डिक्शनरी की जरूरत आती है।
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सांकेतिक भाषा के प्रकार कितने हैं?
सांकेतिक भाषा कई प्रकार की हो सकती है, जो आधिकारिक या अनाधिकारिक भी हो सकती है। लेकिन, कुछ मुख्य सांकेतिक भाषा इस प्रकार हैं।
- इंडो-पाकिस्तान साइन लैंग्वेज
- चाइनीज साइन लैंग्वेज
- ब्रिटिश साइन लैंग्वेज
- अमेरिकन साइन लैंग्वेज
- फ्रेंच साइन लैंग्वेज
- ब्राजिलियन साइन लैंग्वेज