अगर हम अपने बच्चों को नोटिस करते हैं, तो हमें एहसास होता है कि वह तब ज्यादा बोलते हैं जब वह अकेले होते हैं। मनोवैज्ञानिक, माता-पिता और शिक्षक इस व्यवहार को हमेशा नेगेटिव लेते हैं। उनको लगता है कि बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) किसी डिस्ट्रेक्शन या दिमागी बीमारी का कारण हैं। दूसरी ओर बच्चों का खुद से बात करना कुछ विशेषज्ञों के लिए पॉजिटिव साइन है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस स्थिति में बच्चों के दिमाग का विकास ज्यादा अच्छे से होता है।
अगर हम इस मॉडल को बच्चे के विकास के रूप में देखते हैं, तो स्कूल के टीचर्स को इसे बच्चों के स्वास्थ्य में बढ़ावा देना चाहिए और जिन बच्चों के अंदर कोई मानसिक समस्या है उनमें इसे लागू करना चाहिए।
क्यों जरूरी है बच्चों का खुद से बात करना
कई शोधकर्ताओं ने कहा है कि इंटेलिजेंस और बच्चों का खुद से बात करने के बीच में गहरा संबंध है। यह बताता है बच्चा जितना बुद्धिमान होता है, वह उतना ही अधिक अपने आप से बात करता है। हालांकि समय के साथ उनके बोलने की क्वालिटी और अधिक बेहतर हो जाती है।
जो बच्चे खुद से बात करते हैं उनके पास खुद की कल्पनाओं को बताने का मौका होता है। बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) उन्हें एक काल्पनिक दोस्त के साथ बात करने और यहां तक कि उन वस्तुओं को देखने और समझने का मौका होता है, जो वास्तव में मौजूद नहीं हैं। बच्चों का खुद से बात करना सेल्फ-कंट्रोल और सोच के विकास के लिए बेहतर विकल्प माना जाता है।