अध्ययन कहते हैं कि एक बच्चा औसतन हर रोज सात घंटे इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल करते हैं। अगर आपका बच्चा घंटों तक वीडियो गेम खेलना चाहता है या वह हर दिन घंटों टीवी देखता है, तो एक डिजिटल डिटॉक्स उसे मनोरंजन के लिए दूसरे ऑप्शन दे सकता है। डिजिटल डिटॉक्स बच्चों को अपने मनोरंजन के लिए बहुत से आसान ऑप्शन देगा, जिससे वह स्वस्थ और खुश रह सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स के कारण बच्चों का बढ़ता गुस्सा
अगर बच्चे इलेक्ट्रॉनिक्स की वजह से आपस में लड़ रहे हैं, तो यह आपके लिए वॉर्निंग साइन है। अगर आपके टीवी या फोन ऑफ करने की बात पर आपका बच्चा आपसे बहस करता है, तो उसे डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक्स से एक ब्रेक उसे ज्यादा आज्ञाकारी बनाने में मदद कर सकता है। डिजिटल डिटॉक्स बच्चों को अनुशासित बनाता है और परिवार को करीब लाने में मदद करता है।
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इलेक्ट्रॉनिक्स की वजह से बुरी आदतें विकसित होना
रात का खाना खाते समय टीवी देखना, आमने-सामने बात करने के बजाए दूसरे कमरे से एक-दूसरे को टेक्स्टिंग करना, बिस्तर के बगल में स्मार्टफोन के साथ सोना या सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के लिए एक-दूसरे को अनदेखा करना कुछ परिवारों में बुरी आदतों के उदाहरण हैं। डिजिटल डिटॉक्स के दौरान अपने बच्चे को अनुशासन और बुरी आदतों के नुकसान के बारे में बताएं। ऐसा करना उनके व्यवहार में बदलाव लाएगा।
स्क्रीन टाइम से बिहेवियर प्रॉब्लम
शोधकर्ता अलग-अलग अध्ययन में बताते हैं कि स्क्रीन टाइम बच्चों के विकास और व्यवहार को किस तरह से प्रभावित करता है। जैसे-जैसे नई तकनीक सामने आती है यह बच्चों के स्क्रीन से टाइम और उनके इस्तेमाल के तरीकों को बदलता है। पोर्टेबल वीडियो गेम से बच्चों चलते-चलते भी स्क्रीन का यूज करते हैं। स्मार्टफोन के दौर में बच्चे अपने हर छोटे बड़े काम के लिए इसी का प्रयोग करते हैं।
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डिजिटल डिटॉक्स से जुड़े शोध
शोधकर्ताओं ने पाया है डिजिटल डिटॉक्स से बच्चों की भावनात्मक स्तर को बढ़ाया जा सकता है और उनकी दूसरों को समझने की क्षमताओं में भी सुधार हो सकता है। 11 से 13 साल के बच्चों से फोटो और वीडियो में दूसरों की भावनात्मक अभिव्यक्तियों को पहचानने से स्टडी की शुरुआत की गई। आधे समूह को एक बाहरी कैंप में भेजा गया जहां उन्हें अपने इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल करने की परमिशन नहीं थी। बाकी आधे ने स्क्रीन टाइम का उपयोग करना जारी रखा।
पांच दिनों के बाद दोनों समूहों को फिर से दूसरे लोगों की भावनाओं को पढ़ने की उनकी क्षमता पर परीक्षण किया गया। जिस समूह ने अपने डिजिटल उपकरणों का उपयोग जारी रखा था, उसमें कोई सुधार नहीं हुआ। हालांकि कैंप में भाग लेने वाले समूह में दूसरों की भावनाओं को पहचानने की क्षमता में काफी सुधार देखा गया।