“अरे..कसम से, मैंने कल उसे किसी और के साथ देखा था।”, “कसम खाती हूं मम्मी, अगली बार से ऐसा नहीं करूंगी।” या “मैं गीता की कसम खाता हूं, जो भी कहूंगा सच कहूंगा।”
क्या आप श्योर हैं कि आप लॉग आउट करना चाहते हैं?
“अरे..कसम से, मैंने कल उसे किसी और के साथ देखा था।”, “कसम खाती हूं मम्मी, अगली बार से ऐसा नहीं करूंगी।” या “मैं गीता की कसम खाता हूं, जो भी कहूंगा सच कहूंगा।”
ये वे शब्द हैं जो आप अक्सर बोलते भी हैं और सुनते भी हैं। चलिए एक बार को मान लेते हैं कि कोर्ट में गवाह से लेकर मुल्जिम तक हर किसी को उसके धर्मग्रंथ की कसम खानी पड़ती है क्योंकि यह कानून का कोई एक नियम हो सकता है। लेकिन, आम बोल-चाल के दौरान कसम क्यों खाते हैं? अब कसम खाने के मामले में कई तरह के लोग हो सकते हैं। पहले वो, जो कभी-कभी ही कसम खाते हैं। दूसरे वो, जो सिर्फ अपने किसी खास के लिए ही कसम खाते हैं और तीसरे वो, जो हर बात पर कसम खाते हैं। लेकिन ऐसा क्यों?
और पढ़ें : आवाज अच्छी हासिल करने के लिए जानें 5 जरूरी बातें
यहां सवाल यह है कि आखिर क्यों कुछ लोग बहुत ज्यादा या हर बात पर कसम खाने के लिए तैयार रहते हैं?
क्या कसम खाना कोई कानूनी और धार्मिक नियम है? क्या कसम खाकर उसे तोड़ने वाले को किसी तरह की सजा मिलती है? अगर ऐसा है भी, तो इसके पीछे की वजह क्या है? जानकर हैरानी होगी कि आप और हम अपने जीवनकाल में औसतन 0.3% से 0.7% तक कसम खाते हैं।
दरअसल, कसम खाना उसी तरह है, जैसे आप हर बात पर किसी से माफी मांगते हैं या किसी का धन्यवाद करते हैं। यह पूरी तरह से भावनात्मक स्थिति पर निर्भर करता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, कभी-कभी स्थितियों के परिणामस्वरूप लोग भावनात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं, जो आमतौर पर हमें कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकती है। हालांकि, लोग बात-बात पर कसम क्यों खाते हैं, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।
और पढ़ें : जानिए कैसे आप भी ‘ड्रग्स’ लेते हैं हर बार
सामान्य बातचीत में कई लोग कसम सिर्फ इसलिए खाते हैं, ताकि वो सामने वाले व्यक्ति को यह यकीन दिला सकें कि वो सच बोल रहे हैं।
कसम खाने की आदत भावनात्मक तौर पर कैसे जुड़ी है? इसे जानने के लिए एक रोचक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन को लिए कुछ लोगों के समूह को दो भागों में बांटा गया। दोनों समूह को बर्फ के पानी में अपने हाथ डालने के लिए कहा गया, जिसमें से एक समूह को पानी में हाथ डालने से पहले कसम खाने के लिए कहा गया, तो दूसरे समूह को बिना किसी कसम के पानी में हाथ डालना था।
इस अध्ययन में पाया गया कि कसम खाने वाले समूह में लगभग दो तिहाई लोगों ने कसम न खाने वाले लोगों की तुलना में अधिक समय तक पानी में अपना हाथ रखा था, जो यह दावा करता है कि कसम खाने की आदत भावनात्मक इच्छा को मजबूत करता है। यह दर्द सहने की क्षमता को भी बढ़ाता है।
और पढ़ें : खून से जुड़ी 25 आश्चर्यजनक बातें जो आप नहीं जानते होंगे
ऐसे लोग जो तनाव में रहते हैं, वो अपने हर काम को लेकर असमंजस में रहते हैं। उन्हें खुद को और दूसरों को यह यकीन दिलाना रहता है कि हां वो इस काम को कर सकते हैं। इसलिए, भी लोग हर बात पर कसम खाते हैं।
कुछ लोग सही होते हुए भी कभी-कभार गलत ठहरा दिए जाते हैं। जब उनके पास खुद को सही साबित करने के लिए किसी तरह का कोई प्रूफ नहीं होता है, तो उस समय उनके पास कसम खाने का आखिरी विकल्प होता है। क्योंकि, कसम खाए हुए व्यक्ति की बातों पर लोग यकीन करना ज्यादा पसंद करते हैं।
और पढ़ें : पीरियड्स से जुड़ी गलत धारणाएं और उनकी सच्चाई
इस सवाल का मत हां और नहीं दोनों ही हो सकता है। अगर कसम खाना आपकी भावनाओं को मजबूत बनाने में मददगार है, तो यह एक अच्छी आदत हो सकती है। लेकिन, अगर कसम खाना अपनी कमजोरी को छिपाने या किसी को यकीन दिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यह अच्छी आदत नहीं भी हो सकती है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बहुत ज्यादा कसम खाने वाले लोग होते हैं अधिक भावुक होते हैं। ऐसे लोग अक्सर अपने प्रियजनों से छूट भी कम बोलते हैं। सामने वाला उनकी बात पर यकीन कर लें, इसलिए ऐसे लोग हर बात पर कमस खाते हैं।
“जब भी मुझे अपने किसी दोस्त से कोई बहाना बनाना होता है, तो मैं अक्सर कसम खाता हूं। जैसे, किसी दोस्त का फोन आता है और वो मुझे कहीं बाहर घूमने के लिए बुलाता है, तो उसको मना करने के लिए मैं कोई बहाना बता दूंगा। अगर वो फिर भी न माने, तो उसको अपने बहाने पर भरोसा दिलाने के लिए मैं अक्सर कसम खा लेता हूं। लेकिन, मैं कभी भी कसम खाने की बात को गंभीर तौर पर नहीं लेता हूं।”
“कई बार ऐसा हालात बन जाते हैं, जिस पर यकीन करना सामने वाले के लिए मुश्किल हो सकता है, तो ऐसी स्थिति में मैं कसम खा सकता हूं। जैसे, मेरे किसी दोस्तों को किसी काम के लिए मेरी मदद चाहिए। लेकिन, इस समय मैं उसकी मदद चाह कर भी नहीं करता हूं, तो ऐसे स्थिति में उसे मदद से मना करने और उसकी वजह को समझाने के लिए मैं अपने दोस्त से कसम खा सकता हूं।”
[mc4wp_form id=”183492″]
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकली सलाह या उपचार की सलाह प्रदान नहीं करता है। अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से परामर्श कर सकते हैं।
अपने बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की जांच करने के लिए इस कैलक्युलेटर का उपयोग करें और पता करें कि क्या आपका वजन हेल्दी है। आप इस उपकरण का उपयोग अपने बच्चे के बीएमआई की जांच के लिए भी कर सकते हैं।
पुरुष
महिला
हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।
People Who Swear May Be Happier, Healthier And More Honest. https://www.huffingtonpost.in/entry/health-benefits-of-swearing_n_5a5e44a8e4b0106b7f65b3a6. Accessed on 20 May, 2020.
Are People Who Swear Honest or Dishonest?. https://www.psychologytoday.com/us/blog/unique-everybody-else/201808/are-people-who-swear-honest-or-dishonest. Accessed on 20 May, 2020.
Frankly, We Do Give a Damn. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5686790/. Accessed on 20 May, 2020.
Swearing: The good, the bad & the ugly. https://files.eric.ed.gov/fulltext/EJ1152392.pdf. Accessed on 20 May, 2020.
The Science of Swearing. https://www.psychologicalscience.org/observer/the-science-of-swearing. Accessed on 20 May, 2020.
Study finds links between swearing and honesty. https://phys.org/news/2017-01-links-honesty.html. Accessed on 20 May, 2020.