मूल बातों को जानें
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling) (CVS) एक प्रीनेटल टेस्ट है। जिसकी मदद से फीटस में बढ़ रही किसी क्रोमोसोमल या जेनेटिक डिसऑर्डर (Chromosomal or genetic disorders) का पता लगाया जाता है। खासतौर से अगर माता -पिता के परिवार में किसी को जेनेटिक बीमारी है तो इस टेस्ट को करवाना जरूरी है। अगर आपकी उम्र 35 वर्ष से अधिक है और आपके गर्भ में फीटस बन रहा है तो भी उसमें किसी परेशानी की संभावना न हो इसलिए ये टेस्ट जरूर करवा लें।
कोरिओनिक विलस और बढ़ रहे फीटस का जेनेटिक मटेरियल एक ही होता है। इसलिए अगर करिओनिक विलस की सैंपलिंग की जाए तो फीटस के बारे में भी जाना जा सकता है। ये टेस्ट प्रेग्नेंसी के दसवें या बारहवें हफ्ते में किया जाता है। कोरिओनिक विलस सैंपल एक कैथर की मदद से प्लेसेंटा में से निकाला जाता है। इसका इस्तमाल बढ़ते हुए बच्चे में क्रोमोसोमल बर्थ डिफेक्ट को देखने के लिए किया जाता है।
सैम्पल गर्भाशय ग्रीवा (ट्रांससर्विकल) या पेट की दीवार (ट्रांसएब्डोमिनल) के माध्यम से लिया जा सकता है। गर्भावस्था के दौरान,प्लासेंटा बढ़ते बच्चे को ऑक्सिजन और पोषक तत्व प्रदान करता है और बच्चे के रक्त से अपशिष्ट उत्पादों को निकालता है। कोरियोनिक विली प्लासेंटल ऊतक हैं जो बच्चे के आनुवंशिक निमार्ण के बारे में जानकारी को साझा करते हैं।
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग से पता चल सकता है कि क्या बच्चे में क्रोमोसोमल स्थिति है, जैसे डाउन सिंड्रोम, साथ ही अन्य आनुवंशिक स्थितियां, जैसे कि सिस्टिक फाइब्रोसिस। हालांकि कोरियोनिक विलस सैंपलिंग आपके बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान कर सकती है, लेकिन इसके जोखिमों को समझना महत्वपूर्ण है और परिणामों के लिए तैयार रहना भी।
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग से आप प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही फीटस में समस्याओं का पता लगा सकते हैं। किसी बड़ी समस्या के होने पर आप समय रहते निर्णय भी ले पाएंगें।
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग टेस्ट की आवश्यकता क्यों होती है? (Chorionic villus sampling (CVS) Uses)
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग टेस्ट की मदद से आप शुरुआती स्तर पर ही फीटस की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। जैसे कि :
- क्रोमोसोमल डिसऑर्डर
- जेनेटिक डिसऑर्डर
- खून से जुड़ी बीमारी
- मानसिक रोग
अगर इस टेस्ट में किसी ऐसी बीमारी का पता चलता है जिसमें मां की जान को खतरा है तो माता पिता आपसी सहमति से प्रेगनेंसी को खत्म कर सकते हैं।
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling) से पहले क्या जानना है जरूरी
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling) कराने से पहले निम्न बातों को जान लें
- CVS से न्यूरल ट्यूब डिसऑर्डर का पता नहीं लगाया जा सकता।
- CVS के परिणाम किसी भी स्थिति की 100 प्रतिशत पुष्टि नहीं देते हालांकि अंदाजा लगाया जा सकता है।
- CVS के साफ न होने पर आप एमनियोसेंटेसिस (Amniocentesis) करवाना पड़ सकता है।
- CVS के दौरान ब्लीडिंग होने से बच्चे और मां का खून मिल सकता है जिसकी वजह से एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटलिस (Erythroblastosis Foetalis) की समस्या आ सकती है।
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प्रक्रिया
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling) की प्रक्रिया निम्न प्रकार है।
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling) टेस्ट से पहले क्या तैयारी करें?
टेस्ट के पहले खास तैयारी करने की जरूरत नहीं है। बस टेस्ट के समय आपका ब्लैडर पूरी तरह भरा हुआ होना चाहिए इसलिए टेस्ट के कुछ घंटे पहले खूब सारा पानी पिएं।
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग के दौरान क्या होता है? (Chorionic villus sampling Process)
कोरिओनिक विलस सैंपल लेने के दो तरीके हैं जो निम्न हैं।।
1 . मरीज को लेटाकर पेट पर जेल ( Gel) लगाया जाता है। इसके बाद ट्रांसड्यूसर की मदद से रेज को अंदर भेजा जाता है। रिफ्लेक्टेड रेज की मदद से तस्वीरें बनाई जाती हैं जिनसे डॉक्टर ये पता करते हैं कि उन्हें सैंपल कहां से लेना है। इसके बाद सुई या कैथिटर की मदद से कोरिओनिक विलस सैंपल पेट और यूटेरस से होते हुए निकाला जाता है।
2 . दूसरे तरीके में सर्विक्स से कोरिओनिक विलस सैंपल लिया जाता है। इसमें भी डॉक्टर ट्रांसड्यूसर की मदद से स्क्रीन पर सही जगह को देखकर सैंपल निकालते हैं। सैंपल लेने के बाद बच्चे की दिल की धड़कन को सुना जा सकता है। साथ ही मां का ब्लड प्रेशर, शुगर लेवल भी नापा जाता है। प्रोसीजर के तुरंत बाद हो सकता है आपको हल्की वजाइनल ब्लीडिंग हो सकती है। घबराए नहीं ये कुछ देर में रुक जाएगी।
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परिणाम
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling) का रिजल्ट
आमतौर पर हर सेल (Cell) में 46 क्रोमोसोम्स (Chromosomes) होते हैं। ये 23 के जोड़े में होते हैं और इनसे बच्चे के लिंग को भी जाना जा सकता है। किसी भी असमानता के दिखने पर डॉक्टर आपको रिपोर्ट्स देखकर बताएंगें। अगर कोई बड़ी परेशानी है तो सोच समझकर फैसला लें। किसी भी और जानकारी के लिए डॉक्टर की सलाह लें।
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग के रिस्क (Chorionic villus sampling Risk)
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग में विभिन्न जोखिम होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
गर्भपात (Miscarriage)
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग के बाद गर्भपात का जोखिम 0.22 प्रतिशत होने का अनुमान है।
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आचएच सेंसिटाइजेशन (Rh sensitization)
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग से शिशु की कुछ रक्त कोशिकाएं गर्भस्थ महिला के ब्लडस्ट्रीम में प्रवेश कर सकती हैं। यदि महिला Rh निगेटिव है और Rh पॉजिटिव रक्त के प्रति एंटीबॉडी विकसित नहीं करती है, तो उसे कोरियोनिक विलस नमूने के बाद Rh इम्यून ग्लोब्युलिन नामक रक्त उत्पाद का एक इंजेक्शन दिया जाएगा।
यह महिला के शरीर को आरएच एंटीबॉडी का उत्पादन करने से रोकेगा जो प्लेसेंटा को पार कर सकते हैं और बच्चे की लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। एक रक्त परीक्षण यह पता लगा सकता है कि क्या आपने एंटीबॉडी का उत्पादन शुरू कर दिया है।
संक्रमण (Infection)
बहुत कम मामलों में, कोरियोनिक विलस सैंपलिंग से गर्भाशय में संक्रमण हो सकता है।
कुछ पुराने अध्ययनों ने सुझाव दिया कि कोरियोनिक विलस सैंपलिंग से बच्चे की उंगलियों या पैर की उंगलियों में दोष हो सकता है। हालांकि, जोखिम केवल तभी चिंता का विषय प्रतीत होता है जब प्रक्रिया गर्भावस्था के सप्ताह 10 से पहले की जाती है।
उम्मीद करते हैं कि आपको कोरिओनिक विलस सैंपलिंग से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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