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प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट कराना क्यों है जरूरी?


Sunil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 30/09/2021

    प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट कराना क्यों है जरूरी?

    प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर विभिन्न प्रकार के स्क्रीनिंग और इमेजिंग टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं। इससे शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी मिलती है। ये टेस्ट बच्चे की गर्भ में देखभाल और विकास को ठीक रखने में मदद करते हैं। इसके साथ ही इनकी मदद से शिशु को होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से भी बचाया जा सकता है। प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट में कौन-कौन से टेस्ट जरूर कराने चाहिए। आज हम आपको “हैलो स्वास्थ्य” के इस आर्टिकल में प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले प्रमुख टेस्ट के बारे में बताने जा रहे हैं।

    प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट क्याें होते हैं जरूरी?

    गर्भ में पल रहे शिशु की ग्रोथ हो रही है या नहीं। गर्भावस्था में किसी तरह का कॉम्‍प्‍लीकेशन, गर्भाशय की स्थिति ठीक है या नहीं। गर्भपात की आशंका तो नहीं है। ऐसे ही कई स्थितियों के बारे में सही से पता लगाने के लिए डॉक्टर्स प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। इसके अलावा इन गर्भावस्था जांचों से महिला की सेहत से जुड़ी कई तरह की अन्य जान‍कारियां भी मिलती है। इन प्रेग्नेंसी टेस्ट्स (pregnancy tests) के समय किसी भी तरह की समस्या सामने आती है तो उसका इलाज प्रारम्भिक तौर पर ही शुरू किया जा सकता है। प्रेग्नेंसी पीरियड के समय कराई जाने वाली गर्भावस्था जांचों में निम्न शामिल हैं-

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    जेनेटिक स्क्रीनिंग टेस्ट (genetic screening test)

    जन्म से पहले अनुवांशिक असमानता को ठीक किया जा सकता है। इसका पता जेनेटिक टेस्टिंग से लगाया जा सकता है। यदि आप या पार्टनर की पारिवारिक हिस्ट्री में किसी के जीन में अनुवांशिक असमानता रही है तो आपकी मिडवाइफ या डॉक्टर जेनेटिक स्क्रीनिंग टेस्ट की सलाह दे सकते हैं।

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    पहले ट्राइमेस्टर में किए जाने वाले प्रीनेटल स्क्रीनिंग टेस्ट ( First trimester prenatal screening test)

    गर्भावस्था की पहली तिमाही में होने वाले प्रेग्नेंसी टेस्ट-

    अल्ट्रासाउंड (ultrasound)

    गर्भावस्था के पहले ट्राइमेस्टर में महिला का ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इस टेस्ट से भ्रूण में जन्म जातीय विसंगतियों के बारे में पता लगाया जाता है। यह स्क्रीनिंग टेस्ट अकेले या दूसरे टेस्ट के साथ किए जा सकते हैं।

    अल्ट्रासाउंड (या सोनोग्राम) टेस्ट में आपको बिलकुल भी दर्द का अहसास नहीं होगा। इसमें हाई फ्रीक्वेंसी साउंड वेव्स (sound waves) का इस्तेमाल करके गर्भाशय में शिशु के विकास का आंकलन किया जाता है। 10 से 12 हफ्ते पूरे होने से पहले अल्ट्रासाउंड में बच्चे की धड़कनों को नहीं सुना जा सकता है। प्रेग्नेंसी को कितने दिन हो गए हैं, यह जानने का अल्ट्रासाउंड एक बेहतर तरीका है।

    छह से 10 हफ्तों के बीच पहला अल्ट्रासाउंड टेस्ट किया जाता है। अल्ट्रासाउंड के जरिए बच्चे के पिछले हिस्से में बढ़ते फ्लूड और उसके गाढ़ेपन की जांच की जा सकती है। इसके जरिए भ्रूण की नाक की हड्डी की जांच भी की जा सकती है। डाउन सिंड्रोम जैसी समस्या में गुणसूत्रों में असमानता होने के वजह से बच्चे की नाक विजुअलाइज्ड नहीं होती है। यह जांच प्रेग्नेंसी के 11 और 13 हफ्तों के बीच होती है।

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    मेटेरनल सीरम (ब्लड) टेस्ट

    यह टेस्ट गर्भवती महिलाओं के खून में पाए जाने वाले दो तरह के पदार्थों का आंकलन करता है। प्रेग्नेंसी से संबंधित प्लाजमा प्रोटीन ए, जो प्लेसेंटा शुरुआती दिनों में बनाता है। महिला के खून में इसका असामान्य स्तर गुणसूत्रीय विकृति से जुड़ा होता है।

    ह्यूमन क्रोनिक गोनाडोट्रोपिन यह एक हार्मोन है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में प्लेसेंटा इसका उत्पादन करता है। खून में इसका असामान्य स्तर होने से गुणसूत्रीय विकृति बढ़ने का खतरा होता है।

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    सेकेंड ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट

    दूसरे ट्राइमेस्टर में कई तरह के ब्लड टेस्ट किए जाते हैं। इन्हें मार्कर्स के नाम से भी जाना जाता है। यह मार्कर्स शिशु में संभावित जन्म जातीय विसंगतियों और जीन में अनुवांशिक स्थितियों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराते हैं। यह टेस्ट प्रेग्नेंसी के 15 और 20 हफ्तों के बीच में सामान्य ब्लड सैंपल से किए जाते हैं।

    एएफपी मार्कर स्क्रीनिंग

    इसे मेटरनल सीरम एएफपी भी कहा जाता है। प्रेग्नेंसी के दौरान इस ब्लड टेस्ट के जरिए ब्लड में एएफपी के स्तर का आंकलन किया जाता है। यह एक प्रकार का प्रोटीन है, जिसे भ्रूण का लिवर बनाता है। गर्भाशय में यह बच्चे के चारों तरफ होता है। इसे एम्निओटिक फ्लूड के नाम से जाना जाता है। यह प्लेसेंटा को पार करके ब्लड में मिल जाता है। वहीं, ब्लड में इसका असामान्य स्तर कुछ समस्याओं का संकेत होता है।

  • ड्यू डेट की गलत गणना क्योंकि पूरी प्रेग्नेंसी में इसका स्तर अलग-अलग होता है।
  • भ्रूण के पेट की वॉल में विषमता का संकेत।
  • डाउन सिंड्रोम या अन्य गुणसूत्रीय असमानताएं।
  • न्यूरल ट्यूब में विसंगति होना।
  • जुड़वा बच्चे (इस स्थिति में एक भ्रूण प्रोटीन का ज्यादा उत्पादन कर रहा होता है।)
  • प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट : एस्ट्रिऑल

    यह एक हार्मोन होता है, जिसका उत्पादन प्लेसेंटा करता है। भ्रूण की सेहत का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट या यूरिन टेस्ट के जरिए इसके स्तर का आंकलन किया जाता है।

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    लेवल 2 अल्ट्रासाउंड

    लेवल 2 अल्ट्रासाउंड स्कैन एक इमेजिंग टेस्ट है जो बच्चे के संपूर्ण विकास के मूल्यांकन करने में मदद करता है। यह गर्भावस्था के दूसरे तिमाही (13 वें-27 वें सप्ताह) में किया जाता है।

    इस टेस्ट से बढ़ते भ्रूण के बारे में गहन जानकारी मिलती है जिसमें अंगों का आकार, गर्भ में पल रहे शिशु की स्थिति, एम्नियोटिक तरल पदार्थ की मात्रा, बच्चे में कोई विकृति या कोई अन्य स्थिति शामिल है।

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    तीसरे ट्राइमेस्टर में प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट 

    यह अवधि मां और शिशु दोनों के लिए ही बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस दौरान भ्रूण की नियमित निगरानी बेहद ही जरूरी होती है। शिशु की थैली में कितना एम्निओटिक फ्लूड है, यह देखना भी आवश्यक होता है। इसका पता अल्ट्रासाउंड से लगाया जाता है।

    इन टेस्ट के अतिरिक्त, बायोफिजिकल प्रोफाइल टेस्ट (biophysical profile test) भी किया जाता है। इससे गर्भ में बच्चे की स्थिति का पता लगाया जाता है। यदि बच्चा ब्रीच पुजिशन में है, तो उसके लिए तत्काल उपाय किए जाते हैं। इसके अलावा गर्भ में प्लेसेंटा की लंबाई या प्लेसेंटा प्रीविया की जांच के लिए भी प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट किया जाता है। अगर आप प्रेग्नेंट हैं तो डॉक्टर से इन टेस्ट के बारे में जानकारी मांगे क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट करवाना आपके शिशु की सेहत और विकास के लिए जरूरी होता है।

    डिस्क्लेमर

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    Sunil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 30/09/2021

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