एमनियोसेंटेसिस प्रक्रिया करने का तरीका
इस टेस्ट को करने के लिए सबसे पहले अल्ट्रासाउन्ड किया जाता है ताकि सुई लगाने के लिए सही स्थान का पता लगाया जा सके। इस प्रक्रिया को करने के लिए कम से कम 45 मिनट का समय लगता है। फ्लूइड को संग्रहित करने के लिए लगभग 5 मिनट लगता है। एमनियोटिक फ्लूइड इस टेस्ट को करने के लिए सबसे पहले अल्ट्रासाउन्ड किया जाता है ताकि सुई लगाने के लिए सही स्थान का पता लगाया जा सके। इस प्रक्रिया को करने के लिए कम से कम 45 मिनट का समय लगता है। फ्लूइड को संग्रहित करने के लिए लगभग 5 मिनट लगता है। एमनियोटिक फ्लूइड जो भ्रूण के कोशिकाओं से लिया जाता है वह लैब्राटोरी में एनालाइसिस के लिए भेज दिया जाता है। रिजल्ट कुछ दिनों में या कुछ हफ्तों में आ जाता है।
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एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करने के दौरान क्या होता है
चलिये अब आपको विस्तार से प्रेग्नेंसी के दौरान एमिनो टेस्ट को कैसे किया जाता है जानते हैं। हेल्थकेयर असिस्टेंट अल्ट्रासाउंड के मदद से यूटेरस में बेबी के पोजिशन देखते हैं। इसके लिए आपको एग्ज़ाम टेबल पर लेटाया जाता है। पेट पर एक जेल जैसा पदार्थ लगाया जाता है। उसके बाद एक छोटा डिवाइस जिसको अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर कहते हैं उसके मदद से बेबी का पोजिशन मॉनिटर किया जाता है।
उसके बाद एंटीसेप्टिक से पेट को साफ किया जाता है। फिर अल्ट्रासाउंड के मदद से एक सुई को एब्डोमिनल वाल और यूटेरस के भीतर डाला जाता है। बहुत थोड़े-से मात्रा में सिरिंज से एमनियोटिक फ्लूइड को निकाल दिया जाता है। प्रेग्नेंसी के सप्ताह के आधार पर ही फ्लूइड को निकाला जाता है। प्रक्रिया के चलने के दौरान आपको स्थिर रहने की जरूरत है। जब त्वचा में सुई को घुसाया जाता है तब ऐंठन जैसा महसूस होता है।
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करने के बाद किस तरह के परेशानियां होती हैं?
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट के दौरान डॉक्टर बेबी के हार्ट रेट को भी मॉनिटर कर पाते हैं। आम तौर पर एमिनो टेस्ट के बाद मरीज को पेट में ऐंठन या पेल्विक एरिया में बेचैनी जैसा महसूस होता है। टेस्ट के तुरन्त बाद ही आप अपने रूटीन लाइफ में लौट नहीं सकते हैं। सेक्चुअल एक्टिविटी और एक्सरसाइज से दो दिनों के लिए दूर रहें। इन सबके बावजूद अगर आपको कुछ समस्याएं होती हैं तो तुरन्त डॉक्टर से सलाह लें। जैसे-
- कई घंटों तक पेट में ऐंठन जैसा दर्द होना
- बुखार
- ज्यादा वजाइनल ब्लीडिंग होना
- एमनियोटिक फ्लूइड ज्यादा निकलना
- जहां पर सुई लगाई गई है वहां पर लालिमा या सूजन होना
- शिशु का हिलना डुलना कम होना या अजीब महसूस होना।
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एमनियोसेंटेसिस टेस्ट से मां और गर्भस्थ शिशु या शिशु के जन्म के बाद क्या खतरा होता है
अब आता है सबसे अहम् सवाल, क्या इस टेस्ट को करना सेफ होता है? वैसे तो इस टेस्ट को करने से संभवत: कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। लेकिन बहुत समय ऐसी परिस्थिति आ जाती है जब माँ और शिशु को नुकसान पहुँचने का खतरा बन जाता है।
1-आम तौर पर एमनियोटिक फ्लूइड कुछ दिनों या एक हफ्ते तक वजाइना से निकलता है लेकिन कुछ दिनों के बाद बंद हो जाता है। इससे गर्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
2-गर्भपात होने की संभावना 0.1 से 0.3 प्रतिशत रहता है। रिसर्च से यह पता चलता है कि अगर यह टेस्ट प्रेग्नेंसी के 15 वें हफ्तें मे किया जाता है तो यह खतरा होने का संभावना ज्यादा रहता है।
3-सुई से शिशु को नुकसान भी पहुँच सकता है, क्योंकि सारी एहतियात बरतने के बावजूद सुई देते समय अगर शिशु का हाथ या पैर आ जाता है उसको नुकसान पहुँच सकता है।
4-वैसे तो इस टेस्ट के दौरान खास कोई इंफेक्शन होने का डर नहीं रहता है। लेकिन एमिनो टेस्ट के दौरान यदि आपको यूटेरिन इंफेक्शन, हेपाटाइटिस सी, टोक्सोप्लाज़मोसिस या एचआईवी/ एड्स है तो शिशु तक यह इंफेक्शन होने का खतरा बन सकता है।
अंतिम में यही कह सकते हैं कि शिशु के स्वस्थ और सेहतमंद जन्म लेने के स्वार्थ से एमिनो टेस्ट करवाना चाहिए। इस टेस्ट को करने से अगर शिशु में कोई भी डिस्ऑर्डर नजर आता है तो उसका इलाज करना संभव होता है।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।