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अल्फा फिटोप्रोटीन टेस्ट से खतरा या साइड इफेक्ट
अब तो सबके मन में यह बात जरूर आयेगी कि क्या इस टेस्ट को करने से कोई माँ या गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुँच सकता है? या अल्फा भ्रूणप्रोटीन परीक्षण को करने के बाद कुछ साइड इफेक्ट हो सकता है। हालांकि अल्फाफिटोप्रोटीन टेस्ट बहुत ही एहतियात बरत के ही किया जाता है। इसके लिए डॉक्टर कोई विशेष तैयारी की बात भी नहीं कहते हैं। मरीज को सुई चुभाने के समय जितनी तकलीफ होती है बस उतनी ही तकलीफ होती है। यह तकलीफ किसी भी मां बनने वाली महिला के लिए कुछ नहीं होता है। लेकिन सुई लगाने के पहले मरीज के रक्त के पतला या गाढ़ा के अनुपात के बारे में पुछा जा सकता है। अगर किसी दवा के लेने के कारण ब्लड थिन हुआ तो ब्लीडिंग होने की संभावना हो सकती है।
टेस्ट करने से पहले मरीज को यह समझा दिया जाता है कि यह एक स्क्रीनिंग परीक्षण है। क्योंकि जो रिजल्ट निकलेगा उसी के आधार पर आगे दूसरे परीक्षण किये जायेंगे कि नहीं इस बात का फैसला लिया जायेगा। इसलिए आप समझ ही सकते हैं कि इस अल्फा फिटोप्रोटीन टेस्ट के दौरान किसी भी प्रकार के खतरे की आशंका नहीं रहती है। किसी किसी मरीज को हल्का बेहोशी जैसा महसूस या रक्तस्राव हो सकता है। लेकिन आप इस बात के लिए निश्चिंत रह सकते हैं कि अगर हर तरह के हाइजिन का ध्यान रख कर यह परीक्षण किया गया है तो किसी भी प्रकार के संक्रमण मां या शिशु के होने की संभावना ना के बराबर होती है। इसलिए अल्फा भ्रूणप्रोटीन टेस्ट को लेकर ज्यादा टेंशन करने की कोई जरूरत नहीं होती है।
हां, एक दूसरा टेस्ट है एमनियोसेंटेसिस जिससे डाउन सिंड्रोम या किसी भी प्रकार के बर्थ डिफेक्ट का पता लगाने के लिए किया जाता है। उस टेस्ट को करने से गर्भपात यानि मिसकैरेज होने का थोड़ा खतरा होता है। क्योंकि इस टेस्ट को करने से गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है।
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अल्फा फिटोप्रोटीन टेस्ट करने के बाद क्या पता चलता है?
अब बात आती है कि अगर अल्फा भ्रूणप्रोटीन परीक्षण का फल सकारात्मक आया तो क्या होगा। कहने का मतलब यह है कि अगर रिजल्ट में एएफपी का लेवल नॉर्मल लेवल से ज्यादा आया तो शिशु को न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट जैसे स्पाइना बिफिडा होने का खतरा हो सकता है। इस अवस्था में रीढ़ की हड्डी में समस्या हो सकता है या ब्रेन का डेब्लेप्मेंट सही तरह से नहीं हो पाता है। इस वजह से शिशु का मस्तिष्क सही तरह से काम नहीं कर पाता है।
यदि रिजल्ट में प्रोटीन का स्तर कम मिलता है तो उसको जेनेटिक डिसऑर्डर होने का खतरा भी होता है यानि डाउन सिंड्रोम होने की आशंका होती है। इस अवस्था के कारण शिशु का बौद्धिक विकास नहीं हो पाता है।
लेकिन यह भी बात ध्यान रखने की है कि हमेशा ऐसा नहीं होता है। एएफपी का लेवल नॉर्मल नहीं होने पर शिशु को समस्या हमेशा हो ऐसा नहीं है। ऐसा होने पर हो सकता है गर्भवती महिला एक से ज्यादा बच्चों को जन्म दे। या डिलीवरी का समय गलत साबित हो। क्योंकि प्रोटीन के स्तर के असामनता के कारण डॉक्टर निर्धारित डिलीवरी का डेट स्थिर नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा आपको फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट भी मिल सकता है। यह भी हो सकता है कि रिजल्ट समस्या को प्रदर्शित तो कर रहा है, लेकिन शिशु का जन्म सही तरह से और स्वस्थ रूप में हो। डॉक्टर इस टेस्ट से प्रोटीन का जो स्तर देखता है उस आधार पर निदान के लिए दूसरे टेस्ट करने की फैसला लेते हैं।
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अल्फा फिटोप्रोटीन टेस्ट अगर पोजिटिव आये तो क्या है निदान
अल्फा भ्रूणप्रोटीन परीक्षण अगर पोजिटिव आता है तो डॉक्टर उसी आधार पर दूसरे परीक्षण की बात सोचते हैं। लेकिन यह भी व्यक्ति के शारीरिक और शरीर के भीतरी संरचना पर निर्भर करता है।
एएफपी टेस्ट के सिरिज में पेरिनेटल टेस्ट होता है उसको मल्टिप्ल मार्कर या ट्रिपल स्क्रीन टेस्ट कहते हैं। अल्फाफिटोप्रोटीन टेस्ट के अलावा ट्रिपल स्क्रीन टेस्ट किया जाता है उसमें एचसीजी, प्लासेंटा से उत्पादित हार्मोन और एस्ट्रिऑल एक तरह का एस्ट्रोजन का होता है जो फीटस से बनता है। इस तरह के परीक्षण डाउन सिंड्रोम और दूसरे जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगने के लिए किया जाता है।
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अगर आपके शिशु को इस तरह के बर्थ डिफेक्ट होने की आशंका होती है तो एक दूसरे तरह के टेस्ट करने की सलाह दी जाती है वह है सेल-फ्री डीएनए। यह भी एक तरह का ब्लड टेस्ट होता है जो प्रेग्नेंसी के दसवें हफ्ते में की जाती है। इस टेस्ट से भी डाउन सिंड्रोम या कुछ विशेष जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाया जा सकता है। एमनियोसेंटेसिस भी एक और टेस्ट होता है जिसके बारे में पहले भी बताया गया है। इस टेस्ट में भ्रूण के चारो तरफ जो एमनियोटिक फ्लूइड होता है उसको डॉक्टर सुई के मदद से नमूना लेने के लिए लेते हैं और उसकी जांच करते हैं। इससे शिशु का जेनेटिक डिसऑर्डर का पता चल जाता है। लेकिन मुश्किल की बात यह है कि इस टेस्ट से भ्रूण को नुकसान पहुँचने की संभावना रहती है।
अब तक चर्चा से आपको पता चल ही गया है कि अल्फा भ्रूणप्रोटीन परीक्षण क्यों किया जाता है। इसलिए अपने शिशु के सुरक्षा के लिए इस टेस्ट को करने से कभी न कतराये और न ही नजरअंदाज करें।