टर्नर सिंड्रोम शिशु की बौद्धिकत्ता को प्रभावित नहीं करता है। यह उसकी लंबाई और फर्टिलिटी को प्रभावित करता है। इस सिंड्रोम से ग्रसित बच्चे को हार्ट डिफेक्ट्स, असामान्य गर्दन जैसी स्वास्थ्य से संबंधित कुछ समस्याएं हो सकती हैं लेकिन, निगरानी और उपचार के साथ टर्नर सिंड्रोम वाली महिला लंबा और स्वास्थ्य जीवन व्यतीत कर सकती है।
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क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम
यह एक अन्य सेक्स गुणसूत्र विकार है। यह पुरुषों को प्रभावित करता है। इसमें एक अतिरिक्त गुणसूत्र X (46XXY) होता है। ऐसे मामले सिर्फ 500 से लेकर 1000 डिलिवरी में से एक में सामने आता है।
इस विकार से पीड़ित लड़कों में टेस्टोस्टेरॉन का उत्पादन कम होता है। क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम से पीड़ित लड़के अक्सर लंबे होने के साथ कुछ भी सीखने में असमर्थ होते हैं। इस विकार से पीड़ित कई लड़कों को छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है और वह आसानी से हेल्दी और लंबा जीवन जीते हैं।
शिशुओं में अनुवांशिक विकार का पता लगाने के टेस्ट
शिशुओं में अनुवांशिक विकार का पता लगाने के लिए कुछ तरह के टेस्ट काफी कारगर होते हैं, जिनमें एमनियोसेंटेसिस टेस्ट प्रमुख माना जाता है। साल 1970 के दशक की शुरुआत तक, शिशुओं में अनुवांशिक विकार या जन्मजात विसंगतियों का जन्म से पहले निदान करने की दिशा में एमनियोसेंटेसिस टेस्ट द्वारा गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं का पता लगाना था।
क्या है एमनियोसेंटेसिस टेस्ट?
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट एक डायग्नोस्टिक टेस्ट है। जिसकी मदद से डॉक्टर मां की गर्भ में पल रहे शिशुओं में अनुवांशिक विकार का पता लगा सकते हैं। इस टेस्ट को करने के लिए डॉक्टर मां की गर्भ से एमनियोटिक द्रव का थोड़ा सा नमूना लेते हैं। इस द्रव में गर्भ में पल रहे शिशु की कुछ कोशिकाएं होती हैं और प्रयोगशाला में इनका परीक्षण किया जाता है। एमनियोसेंटेसिस टेस्ट आमतौर पर दूसरी तिमाही में 15 से 18 सप्ताह की गर्भावस्था के बीच किया जाता है। डॉक्टर इस टेस्ट की सलाह तभी देते हैं जब उन्हें शिशुओं में अनुवांशिक विकार होने की संभावना नजर आती है।
अंत में हम यही कहेंगे कि शिशुओं में अनुवांशिक विकार के कारण, प्रकार और उपचार को समझना बेहद जरूरी है। प्रेग्नेंसी से पहले गुणसूत्र की इन समस्याओं से बचने के लिए नियमित तौर पर अपने डॉक्टर के पास जाएं। इससे समय रहते इस समस्या की पहचान संभव होगी बल्कि, उचित उपचार भी हो पाएगा।