प्रेग्नेंसी डबल मार्कर टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव आने पर इन बातों का रखें ध्यान
अगर आपका प्रेग्नेंसी डबल मार्कर टेस्ट पॉजिटिव आता है तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है। आपको डॉक्टर के पुष्टि करने का इंतजार जरूर करना है। ऐसे बेहद ही कम मामले हैं, जिनमें प्रेग्नेंसी डबल मार्कर टेस्ट पॉजिटिव आया हो और इसका कंफर्मेट्री टेस्ट भी पॉजिटिव आए।
अंत में हम आप से यही कहेंगे कि प्रेग्नेंसी के दौरान हर टेस्ट की अपनी अहमियत होती है। ऐसे में यह टेस्ट कराने को लेकर हमेशा पॉजिटिव रहें। डॉक्टर को स्वास्थ्य संबंधी परिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जरूर बताएं। यह आपके और शिशु दोनों की हेल्थ के लिए बेहतर साबित होगा।
प्रेग्नेंसी डबल मार्कर टेस्ट के लाभ
- अगर यह टेस्ट में आपके बच्चे को डाउन सिंड्रोम की परेशानी सामने आती है, तो आपको एक और एडवांस टेस्ट कराने के लिए सोचने और अपने डॉक्टर से परामर्श लेने की जरूरत हो सकती है।
- आप डायग्नोस्टिक टेस्ट से गुजर सकते हैं अगर यह टेस्ट पॉजिटिव आता हैं।
- आपके पास अच्छी पहचान दर है।
- अगर आपके भ्रूण के इस टेस्ट के बाद पॉजिटिव रिजल्ट आया है और आप इसको सही साबित करने के लिए डायग्नोस्टिक टेस्ट के लिए जाते हैं तो आप गर्भपात करवा सकते हैं। अगर यह टेस्ट पहले किया जाता है, तो गर्भपात करने की जटिलताओं को कम किया जा सकता है और आप सक्शन टर्मिनेशन के माध्यम से अपनी गर्भावस्था को खत्म करने का विकल्प भी चुन सकते हैं।
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प्रेग्नेंसी डबल मार्कर टेस्ट के नुकसान
प्रेग्नेंसी डबल मार्कर टेस्ट के जितने फायदे हैं उतने ही नुकसान भी हो सकते हैं।
- यह कई लोगों के लिए महंगा और अप्रभावी है।
- यह चुनिंदा शहरों में ही उपलब्ध है।
- अगर आप पाते हैं कि इस टेस्ट आपके पास उपलब्ध है और आप इसे करवाना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि आप ऐसा करने से पहले अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह लें। अपने डॉक्टर से इस टेस्ट के बारे में सवाल पूछें। जब आप इसके बारे में पूरी तरह से आश्वस्त हो तभी इस टेस्ट करवाएं।
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डाउन सिंड्रोम क्या होता है?
डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। भ्रूण की प्रत्येक कोशिका 46 गुणसूत्रों से बनती है, जो 23 गुणसूत्र के दो अलग-अलग जोड़े होते हैं। एक भ्रूण को बनाने के लिए 23 गुणसूत्रीय दो कोशिकाएं एक साथ आकर मिलती हैं। जोकि एक 46 जोड़ी जायगोट बनता है। इसके बाद ही यह भ्रूण का रूप लेता है। कुछ मामलो में कोशिकाओं के विभाजन के दौरान गुणसूत्रों का एक अतिरिक्त जोड़ा दोनों गुणसूत्र के जोड़ो में से किसी एक में मिल जाता है। यहां गुणसूत्र के दो जोड़े होने के बजाय तीन जोड़े हो जाते हैं। इस प्रकार की अनियमित्ता के चलते बच्चे में सामान्य शारीरिक और जन्मजात बदलाव पैदा होते हैं। इन्हें डाउन सिंड्रोम कहा जाता है। ऐसे बच्चे मानसिक रूप से विकलांग भी हो सकते हैं।
इस टेस्ट कराने से गर्भवती महिला पहले से किसी भी तरह की कॉम्प्लिकेशन के बारे में जान सकती है। इसके लिए डॉक्टर बहुत कम सलाह देते हैं। इस टेस्ट कराने से पहले वह पेशेंट की हिस्ट्री भी पूछते हैं। अगर आपको इसके बारे में और जानकारी चाहिए तो अपने डॉक्टर से इसके बारे में और जानकारी ले सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में इस टेस्ट के बारे में बताया गया है। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई प्रश्न है तो आप कमेंट कर पूछ सकते हैं।