ब्लड क्लॉट्स यानी खून के थक्के दरअसल खून का ही जमा हुआ रूप होते हैं। यह जैल की तरह होते हैं और तब नसों या आर्टरीज में जम जाते हैं, जब खून तरल से पार्शियली सॉलिड रूप में बदल जाता है। क्लॉटिंग बहुत ही सामान्य है लेकिन क्लॉट्स उन स्थितियों में खतरनाक साबित हो सकते हैं, जब वो खुद से डिसॉल्व नहीं हो पाते। इनके ट्रीटमेंट में दवाइयां, थेरेपी और सर्जरी आदि शामिल है। जिनका उद्देश्य ब्लड क्लॉट को बड़ा होने से रोकना और भविष्य में ब्लड क्लॉट्स विकसित होने की संभावना को कम करना है। ब्लड क्लॉट्स के उपचार के लिए फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) का प्रयोग किया जाता है। जानिए, क्या है फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) और इसके फायदों और रिस्क फैक्टर्स के बारे में भी जानें।
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी क्या है? (Fibrinolytic Therapy)
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) को थ्रंबोलिटिक थेरेपी (Thrombolytic Therapy) के नाम से भी जाना जाता है। यह थेरेपी आमतौर पर खून के थक्कों को तोड़ने या नष्ट करने के लिए दवाओं का उपयोग है, जो हार्ट अटैक और स्ट्रोक दोनों का मुख्य कारण हैं। फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) या थ्रंबोलिटिक थेरेपी (Thrombolytic Therapy) में एक ड्रग जिसे लायटिक्स (Lytics) या क्लॉट बस्टर (Clot Buster) कहा जाता है, को लेने की सलाह दी जाती है। इस थेरेपी में ब्लड क्लॉट्स को डिसॉल्व करने के लिए इस दवा को लेने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ब्लड क्लॉट्स के कारण मुख्य आर्टरीज या नसें ब्लड हो सकती है या गंभीर और जानलेवा कॉम्प्लीकेशन्स का कारण बन सकती हैं।
इसके अधिक प्रभाव के लिए थेरेपी को जल्दी से जल्दी शुरू करने की सलाह दी जाती है इससे पहले कि कोई भी परमानेंट डैमेज हो। फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी के ट्रीटमेंट सेशन की लेंथ इसके अंडरलायिंग कारणों पर निर्भर करती है। एक सेशन में साठ मिनट भी लग सकते हैं तो कई बार यह 48 घंटों का भी हो सकता है। जानिए क्यों प्रयोग की जाती है यह फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी।
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फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी के लाभ क्या हैं? (Benefits of Fibrinolytic Therapy)
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) में दो तरह से क्लॉट बस्टिंग एजेंट्स यानी लायटिक्स (Lytics) का प्रयोग किया जा सकता है। पहला है पेरीफेरल IV (Peripheral IV) यानी सिस्टेमिक थ्रंबोलिटिक्स (Systemic Thrombolysis) और दूसरा है कैथेटर (Catheter) के माध्यम से सिस्टेमिक थ्रंबोलिसीस (Systemic Thrombolysis) का प्रयोग। हार्ट अटैक (Heart Attack), स्ट्रोक (Stroke) और पल्मोनरी एम्बोलिस्म (Pulmonary Embolism) की स्थिति में क्लॉट्स नष्ट करने वाली ड्रग को पेरीफेरल इंट्रावेनस (IV) लाइन (Peripheral Intravenous (IV) Line) में माध्यम से डिलीवर किया जाता है।
इसे मरीज को इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU) में रख कर दिया जाता है और इस दौरान हार्ट व लंग फंक्शन को मॉनिटर किया जाता है। यह दवा ब्लड स्ट्रीम में तब तक सर्कुलेट करती है, जब तक यह क्लॉट तक नहीं पहुंच जाती। लेकिन, कई बार डायल्यूशन के कारण दवा के प्रभाव कम हो सकता है, या उच्च खुराक की आवश्यकता हो सकती है। जिससे रक्तस्राव की संभावना बढ़ जाती है। यह थेरेपी निम्नलिखित समस्याओं के प्रतिकूल प्रभावों को रिवर्स या कम कर सकती है:
- दिमाग की आर्टरीज का ब्लॉक होना यानी स्ट्रोक (Stroke)
- दिल की आर्टरीज का ब्लॉक होना यानी हार्ट अटैक (Heart Attack)
- फेफड़ों की आर्टरीज का ब्लॉक होना यानी पल्मोनरी एम्बोलिस्म (pulmonary Embolism)
- टांगों की नसों का ब्लॉक होना यानी डीप वेन थ्रोम्बोसिस (Deep Vein Thrombosis)
- टांगों की आर्टरीज को ब्लॉक करना यानी एक्यूट आर्टेरियल थ्रोम्बोसिस (Acute Arterial Thrombosis)
- ब्लॉक्ड सर्जिकल बायपास, ब्लॉक्ड डायलिसिस फिस्टुला या कैथेटर्स (Blocked Surgical Bypasses, Blocked Dialysis Fistulas or Catheters)
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फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) का उपयोग आमतौर पर स्ट्रोक और हार्ट अटैक के आपातकालीन उपचार के रूप में किया जाता है। इस थेरेपी को जब रोगी अस्पताल में उपचार में आने के तीस मिनटों के बाद ही प्राप्त करना चाहिए। जानिए क्यों किया जाता है इसका प्रयोग:
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हार्ट अटैक (Heart Attack)
ब्लड क्लॉट हार्ट की आर्टरी को ब्लॉक कर सकता है। जब रक्त द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी के कारण हृदय की मांसपेशियों का हिस्सा नष्ट हो जाता है, तो इसके कारण हार्ट अटैक भी हो सकता है।
यह थेरेपी मेजर क्लॉट को जल्दी डिजॉल्व करने का काम करती हैं और हार्ट में ब्लड फ्लो को फिर से शुरू करने में मदद करती है। यही नहीं यह हृदय की मांसपेशियों को नुकसान से बचाने में भी सहायक है। इस थेरेपी के प्रयोग से हार्ट अटैक को रोका जा सकता है। लेकिन, अगर हार्ट अटैक शुरू होने के बारह घंटों के बीच में इस थेरेपी का प्रयोग किया जाए तो परिणाम बेहतर होते हैं।
यह थेरेपी ज्यादातर लोगों में दिल में कुछ ब्लड फ्लो को रिस्टोर करती है। हालांकि, ब्लड फ्लो पूरी तरह से सामान्य नहीं हो सकता है और कुछ हद तक मांसपेशियों को नुकसान हो सकता है। इसके इसके बाद अन्य मेडिकल प्रोसीजर, जैसे एंजियोप्लास्टी (Angioplasty) और स्टेंटिंग (Stenting) के साथ कार्डियक कैथीटेराइजेशन (Cardiac Catheterization) की आवश्यकता हो सकती है।
डॉक्टर कई फैक्टर्स के बारे में विचार कर के रोगी के लिए थ्रोम्बोलाइटिक थेरेपी देने के बारे में निर्णय लेंगे। इन फैक्टर्स में रोगी के चेस्ट पैन का इतिहास और ईसीजी टेस्ट के परिणाम शामिल हैं। इसके अलावा भी अन्य फैक्टर को ध्यान में रखा जा सकता है, जैसे
- उम्र (Age)
- लिंग (Sex)
- मेडिकल हिस्ट्री (Medical History)
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) इन स्थितियों में नहीं दी जाती है:
- अगर रोगी को कोई रीसेंट हेड इंजरी हुई हो (Recent Head Injury)
- ब्लीडिंग प्रॉब्लम (Bleeding problems)
- ब्लीडिंग अल्सर (Bleeding Ulcers)
- प्रेग्नेंसी (Pregnancy)
- हाल में कोई सर्जरी हुई हो (Recent Surgery)
- कोई ब्लड थिनिंग दवाई ले थे हों (Taken Blood Thinning Medicines)
- ट्रॉमा (Trauma)
- असंतुलित हाय ब्लड प्रेशर (Uncontrolled High Blood Pressure)
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स्ट्रोक्स (Strokes)
मेडलिनप्लस (MedlinePlus) के अनुसार अधिकतम स्ट्रोक तब होते हैं जब ब्लड क्लॉट ब्रेन में मौजूद ब्लड वेसल तक मूव कर जाता है और उस जगह के ब्लड फ्लो को ब्लॉक कर देता है। इस तरह के स्ट्रोक में फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) का प्रयोग किया जाता है ताकि ब्लड क्लॉट जल्दी से घुल जाए। पहले स्ट्रोक के लक्षण नजर आने के तीन घंटों के अंदर इस थेरेपी के प्रयोग से स्ट्रोक से होने वाले नुकसान हो कम किया जा सकता है। यह थेरेपी देने का निर्णय इस चीजों पर निर्भर करता है:
- ब्रेन सीटी स्कैन (Brain CT Scan) करने पर यह बात सिद्ध हो जाए कि ब्रेन में कोई ब्लीडिंग नहीं है
- मेडिकल हिस्ट्री
- यह थेरेपी किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दी जाती है जिसमें ब्रेन में ब्लीडिंग हो। इससे स्ट्रोक बदतर हो सकता है। जानिए, कैसे की जाती है इस थेरेपी की तैयारी?
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फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी की तैयारी कैसे करें? (Fibrinolytic Therapy)
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) या थ्रंबोलिटिक थेरेपी (Thrombolytic Therapy) का प्रयोग आपातकालीन उपचार के लिए किया जाता है। अगर आप में किसी ऐसी स्थिति का निदान होता है, जिसके उपचार में इस थेरेपी का प्रयोग होना है। तो आपको इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU) में हार्ट और लंग फंक्शन की क्लोज मॉनिटरिंग के लिए ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके लिए आपको जल्दी करने के लिए कहा जा सकता है, खासकर अगर आपका उपचार कैथेटर-डायरेक्टेड थ्रोम्बोलिसिस द्वारा होना हो।
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फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी के बाद की प्रक्रिया क्या होती है? (Procedure after Fibrinolytic Therapy)
अधिकतर मामलों में फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) का उपचार लक्षणों को उलट देगा या कम कर देता है। हालांकि, फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) हर बार सफल नहीं होती और हर बार इसके प्रयोग से ब्लड क्लॉट डिसॉल्व नहीं होते। खासतौर, पर अगर ट्रीटमेंट में देरी हो जाए। ऐसा भी हो सकता है कि क्लॉट डिसॉल्व हो जाए। लेकिन, प्रभावित टिश्यूज को (जैसे दिल, दिमाग, फेफड़े या टांग में) ब्लड फ्लो के लंबे समय तक ब्लॉक होने के कारण स्थायी रूप से नुकसान हो। ट्रीटमेंट के बाद सर्जन रोगी के लक्षणों को फिर से जांचेंगे। इमेजिंग टेस्ट जैसे सीटी-स्कैन (CT-Scan), इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram), वेनोग्राम (Venogram) का प्रयोग किसी भी बचे हुए ब्लड क्लॉट्स की जांच के लिए किया जा सकता है।
ब्लड क्लॉट के बनने के अंडरलायिंग कारणों के अनुसार डॉक्टर आपको अन्य उपचार की सलाह दे सकते हैं जैसे बैलून एंजियोप्लास्टी (Balloon Angioplasty), स्टेंटिंग (Stenting) या ओपन सर्जरी (Open Surgery) आदि। आपको ब्लड थिनर की भी सलाह दी जा सकती है जिसमें हेपरिन (Heparin) और वार्फरिन (Warfarin) आदि शामिल हैं।
लेकिन एक सफल ट्रीटमेंट के बाद भी क्लॉट ब्लड वेसल में फिर से बन सकता है। अगर ऐसा होता है तो रोगी को किसी और ट्रीटमेंट की जरूरत हो सकती है। ताकि, ब्लड क्लॉट के अंडरलायिंग कारणों को दूर किया जा सके और डैमेज्ड टिश्यूज और अंगों को रिपेयर किया जा सके। जानिए इस थेरेपी से जुड़े जोखिमों के बारे में।
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फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी से जुड़े जोखिम कौन से हैं? (Risks of Fibrinolytic Therapy)
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) से जुड़ा सबसे बड़ा रिस्क है ब्लीडिंग। ऐसा माना जाता है कि इस थेरेपी से उपचारित पांच प्रतिशत रोगियों में अधिक ब्लीडिंग की समस्या पाई जाती है। हालांकि, ब्रेन में ब्लीडिंग का जोखिम केवल एक प्रतिशत होता है। लेकिन, ब्लीडिंग की स्थिति में इस उपचार को तुरंत रोक देना चाहिए। यह ब्लीडिंग त्वचा में किसी भी पंक्चर साइट पर हो सकती है जैसे जहां IVs का प्रयोग किया गया हो,किसी घाव या इंजरी साइट पर भी यह ब्लीडिंग हो सकती है। यही नहीं, यह ब्लीडिंग इस तरह से भी हो सकती है:
- यूरिन में ब्लड (Blood in Urine)
- नोजब्लीड (Nosebleed)
- मल में ब्लड (Bloody Stools)
- अचानक बहुत अधिक वजाइनल ब्लीडिंग (Vaginal Bleeding)
- ब्रेन ब्लीड (Brain Bleed)
इस थेरेपी से जुड़ा एक और जोखिम है एंबोलाइजेशन (Embolization)। जैसे ही क्लॉट नरम होता और घुल जाता है तो यह छोटे टुकड़े में टूट सकता है और प्रभावित अंग (जैसे, पैर या फेफड़े) में गहराई तक जा सकता है जिससे न केवल इसके लक्षण बदतर हो सकते हैं बल्कि अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।
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यह तो थी फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) के बारे में पूरी जानकारी जिसका प्रयोग ब्लड क्लॉट्स को नष्ट करने के लिए किया जाता है। हालांकि इस थेरेपी का प्रयोग कम मामलों में ही किया जाता है। लेकिन ब्लड क्लॉट्स जमने की समस्या को रोकने के लिए आपको कुछ खास चीजों का ध्यान रखना चाहिए जैसे नियमित फिजिकल एक्टिविटी करें (Physical Activity), धूम्रपान न करें (Don’t smoke), पौष्टिक आहार का सेवन (Healthy food), हेल्दी वेट मेंटेन रखें (Right Weight), पर्याप्त नींद लें (Enough Sleep) और तनाव से बचें (Avoid Stress)। इससे आपको पूरी तरह से स्वस्थ रहने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही अगर आपके मन में फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) को लेकर कोई भी चिंता या सवाल है तो अपने डॉक्टर से अवश्य संपर्क करें। ब्लड क्लॉटिंग की स्थिति में भी इसके लक्षणों को पहचानें और मेडिकल हेल्प लें।
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