हेमरेज आमतौर पर हल्के रूप में होता है और इसमें नाक से खून आना, पॉजिटिव टॉर्निक्वेट टेस्ट (डेंगू का पता लगाने के लिए), मसूड़ों से रक्तस्राव और ब्लड वेसल्स की वजह से त्वचा से रक्तस्राव होना शामिल है। योनी से रक्तस्राव, इंट्राक्रेनियल रक्तस्राव (मस्तिष्क के ब्लड वेसल्स के क्षतिग्रस्त होने पर) या खून की उल्टी होना हेमरेज के कुछ ज्यादा गंभीर लक्षण हैं। डेंगू फीवर की सबसे गंभीर समस्या ‘प्लाज़्मा लीकेज’ को माना जाता है, यह कैपलरी की भेद्यता बढ़ जाने के कारण होता है। इसकी वजह से डेंगू शॉक सिंड्रोम जैसी जानलेवा समस्या हो सकती है, इसे हाइपोटेंशन के नाम से भी जाना जाता है। यह ब्लड प्रेशर के कम होने की स्थिति होती है, जिसमें मस्तिष्क तक सही मात्रा में रक्त नहीं पहुंच पाता है।
यह भी पढ़ें : सोरियाटिक गठिया की परेशानी होने पर अपनाएं ये उपाय
डेंगू हेमरेज फीवर (डीएचएफ) मरीजों की निगरानी रखना
यदि मरीज डीएचएफ के इलाज पर है तो मरीज की हार्ट रेट, कैपलरी रिफिल, त्वचा के रंग और बुखार को आईसीयू की व्यवस्था में लगातार देखा जाता है। पल्स का दबाव और ब्लड प्रेशर स्थिर है या नहीं उस पर भी कड़ी निगरानी रखी जाती है। सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर आमतौर पर अंतिम लक्षण के रूप में माना जाता है जब मरीज शॉक में होता है। इसलिए, चिकित्सकों को त्वचा और अन्य हिस्सों पर रक्तस्राव के लक्षण पर जरूर नजर रखनी चाहिए।
डेंगू बुखार का इलाज किस तरह किया जा सकता है
आमतौर पर मरीजों का बुखार नियंत्रित करने के लिए एंटी-पायरेटिक दवाएं दी जाती हैं; डेंगू से पीड़ित बच्चों को बुखार की वजह से दौरे पड़ने का खतरा रहता है- यह ऐंठन की समस्या होती है जोकि रक्त में संक्रमण की वजह से बुखार के बढ़ने के कारण होता है; ऐसे में आमतौर पर डायजेपाम दिया जाता है। दौरे की स्थिति में मरीजों के हाइड्रेशन स्तर पर नजर रखी जाती है। यह जरूरी है कि मरीजों और पेरेंट्स को डिहाइड्रेशन के कुछ तय लक्षणों के बारे में बताया जाए ताकि उन्हें खतरों की जानकारी हो। साथ ही किसी को उनके यूरीन आउटपुट पर भी नजर रखनी चाहिए। यदि मरीज मुंह से तरल चीजें नहीं ले पा रहा है तो आमतौर पर उन्हें आईवी फ्लूइड दिया जाता है। यह बहुत जरूरी है कि मरीज की हार्ट रेट, कैपेलरी रिफिल, पल्स का दबाव, ब्लड प्रेशर और यूरीन आउटपुट पर लगातार नजर रखी जाए। ऑक्सीजन तथा इलेक्ट्रोलाइट थैरेपी भी दिया जाना जरूरी है, वैसे यह बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है। प्लेटलेट ट्रांसफ्यूज़न तभी दिया जाता है यदि प्लेटलेट काउंट 10,000 से कम हो या फिर रक्तस्राव हो रहा हो।
जब बात आती है डेंगू के गंभीर मामलों के इलाज की तो यह बहुत जरूरी है कि मरीजों के गंभीर लक्षणों पर कड़ी नजर रखी जाए। समय पर और पर्याप्त इलाज शॉक जैसी गंभीर स्थितियों से बचाने के लिए बेहद जरूरी है।
और पढ़ें: मेडिकल स्टोर से दवा खरीदने से पहले जान लें जुकाम और फ्लू के प्रकार