कभी-कभी आपने महसूस किया होगा कि तेज आवाज सुनने से आपके कानों में दर्द की शिकायत हो जाती है, ऐसे में कई बार हमें इसे ठीक करने के लिए डॉक्टर की मदद लेनी पड़ती है। आज हम आपको कानों से जुड़ी एक ऐसी ही तकलीफ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) के नाम से जाना जाता है। दरअसल अकूस्टिक ट्रॉमा कानों में होनेवाली उस इनर इंजरी को कहते हैं, जो हाय डेसीबल आवाज के सुनने पर होती है। ये इंजरी अचानक तेज आवाज सुनने या लगातार हाय डेसीबल नॉइस को सुनने की वजह से हो सकती है।
कैसे होता है अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma)?
मस्तिष्क में हुई किसी इंजरी की वजह से भी ये स्थिति पैदा हो सकती है। इस स्थिति में कानों में मौजूद
ईयरड्रम रप्चर हो जाते हैं या कानों में और किसी तरह की इंजरी हो जाती है। ईयरड्रम कानों के मध्य भाग और अंदरूनी भाग की सुरक्षा करते हैं, साथ ही ये ब्रेन को छोटे-छोटे वायब्रेशन के लिए सिंग्नल भी भेजने का काम करते हैं। अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) में ये
ईयरड्रम डैमेज हो जाते हैं, जिसके चलते व्यक्ति के सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है। चलिए अब जानते हैं अकूस्टिक ट्रॉमा के प्रकारों के बारे में।
यदि आपके डॉक्टर को अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) के लक्षण दिखाई देते हैं, तो वे सबसे पहले अचानक इंजरी की वजह से होने वाले ट्रॉमा या तेज आवाज की वजह से हुए ट्रामा में फर्क पहचानेंगे। अलग-अलग तरह के ट्रॉमा को अलग-अलग ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है।
किन लोगों को अकूस्टिक ट्रॉमा हो सकता है?
कई बार अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) होने के पीछे आपके रोजाना के कामों का योगदान होता है, इसीलिए कुछ खास लोगों को अकूस्टिक ट्रॉमा होने के चांसेस बढ़ जाते हैं। आइए जानते हैं किन लोगों को अकूस्टिक ट्रॉमा होने के चांसेस होते हैं।
ऐसे लोग जो लंबे समय तक
तेज आवाज वाले इंडस्ट्रियल इक्विपमेंट के साथ काम करते हैं, उन्हें अकूस्टिक ट्रॉमा हो सकता है। साथ ही ऐसे लोग जो लंबे समय तक हाय डेसिबल साउंड (High Decibel Sound) के आसपास लंबे समय तक काम करते हैं या रहते हैं, ऐसे लोगों को अकूस्टिक ट्रॉमा की दिक्कत हो सकती है।
इसके अलावा जो लोग लगातार म्यूजिक कॉन्सर्ट अटेंड करते हैं और हाई डेसिबल म्यूजिक (High Decibel Sound) सुनते हैं, ऐसे लोगों को भी अकूस्टिक ट्रॉमा हो सकता है। इसके अलावा जरूरी इक्विपमेंट के बिना तेज आवाज के आस पास जाना, आपको अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) की तकलीफ दे सकता है। कहा जाता है कि 70 डेसिबल से कम रेंज की आवाज आपके सुनने के लिए सेफ़ मानी जाती है।
बता दें कि 3 फैक्टर्स
अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) में मेन रोल निभाते हैं, जिसमें डेसिबल में नापी हुई साउंड की इंटेंसिटी (Sound intensity), साउंड की पिच या फ्रीक्वेंसी और उस व्यक्ति द्वारा उस पार्टिकुलर साउंड के साथ बिताया गया समय, यह तीनों अकूस्टिक ट्रॉमा में जरूरी फैक्टर्स माने जाते हैं।
क्या हैं अकूस्टिक ट्रॉमा के लक्षण? (Symptoms of acoustic trauma)
जैसा कि पहले हम बता चुके हैं अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) का एक सबसे बड़ा लक्षण है हियरिंग लॉस (hearing loss) यानी सुनने की क्षमता खत्म होना। अकूस्टिक ट्रॉमा में कान के इनर लेवल में इंजरी होती है। कान में मौजूद
सेंसेटिव हेयर सेल्स अपने कनेक्शन को खो देते हैं, जिसकी वजह से सुनने में तकलीफ होती है। यहां तक कि तेज आवाज की वजह से ईयर स्ट्रक्चर (ear structure) में भी डैमेज देखा जा सकता है। 130 डेसिबल से ज्यादा की अचानक आवाज कान के नेचुरल माइक्रोफोन को डैमेज कर सकती है और कुछ अकूस्टिक इंजरी में ईयर ड्रम और कान के अंदर के छोटे मसल्स भी डैमेज हो सकते हैं।
लंबे समय तक कान की इंजरी की वजह से कई लोगों को सबसे पहले
हाई फ्रीक्वेंसी साउंड सुनने में दिक्कत शुरू होती है और बाद में लो फ्रीक्वेंसी सुनाई देना भी बंद हो जाती है। इसलिए आपका डॉक्टर अलग-अलग फ्रीक्वेंसी के साउंड पर आपका रिस्पांस देखकर अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) का पता लगा सकते हैं।
इसके अलावा और अकूस्टिक ट्रॉमा में एक लक्षण
टिनिटस भी हो सकता है। टिनिटस (Tinnitus) कानों में इंजरी की वजह से बजिंग या रिंगिंग साउंड सुनाई देता है जिन लोगों को माइल्ड या मॉडरेट टिनिटस की समस्या होती है, वह शांत जगह पर इस समस्या को महसूस कर सकते हैं। टिनिटस आपको कई कारणों से हो सकता है, इसमें ड्रग का इस्तेमाल करने या ब्लड वेसल के बदलाव भी एक कारण के सकता है। लेकिन यह आमतौर पर तेज आवाज के अचानक एक्सपोजर की वजह से होता है।
टिनिटस (Tinnitus) की समस्या परसिस्टेंट या क्रॉनिक भी हो सकती है, लंबे समय तक यदि आपको टिनिटस की समस्या हो तो आपको अकूस्टिक ट्रॉमा की दिक्कत हो सकती हैं।
कैसे पहचानें अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) को?
अकूस्टिक ट्रॉमा पहचानने के कुछ तरीके हो सकते हैं, इसमें डॉक्टर आप से सवाल कर सकते हैं कि हाल ही में आप किसी ऊंची आवाज के संपर्क में आए हैं या नहीं। इसके अलावा
ऑडियोमेट्री (Acoustic) के जरिए भी और अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) को पहचाना जा सकता है। इस टेस्ट में आपको साउंड की अलग-अलग तेज आवाज को सुनाया जाता है और उस पर आपका रिस्पांस नोट किया जाता है।
अकूस्टिक ट्रॉमा का ट्रीटमेंट (Treatment of acoustic trauma)
अकूस्टिक ट्रॉमा को अलग-अलग तरह से ट्रीट किया जा सकता है। इसके लिए टेक्नोलॉजिकल हियरिंग असिस्टेंट (Technological Hearing Assistance) जरूरत पड़ सकती है। आपके डॉक्टर आपके लिए
टेक्नोलॉजिकल असिस्टेंट दे सकते हैं, जिसमें हियरिंग एड का इस्तेमाल होता है। इसमें कौक्लियर इम्प्लांट का इस्तेमाल हियरिंग लॉस की स्थिति में अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) में किया जा सकता है।
इसके अलावा ईयर प्रोटेक्शन में डॉक्टर आपको ईयर प्लग्स इस्तेमाल करने की सलाह दे सकते हैं, जिसमें आपके कानों की रक्षा की जा सके। इस तरह के इयर प्लग्स को पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) (Personal Protective Equipment [PPE]) तौर पर जाना जाता है। यह उन लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, जो लोग तेज आवाज में काम करते हैं।
मेडिकेशन भी अकूस्टिक ट्रॉमा का इलाज हो सकता है। आपके डॉक्टर अकूस्टिक ट्रॉमा (Acoustic Trauma) की स्थिति में
ओरल स्टेरॉयड मेडिकेशन दे सकते हैं। ऐसा कुछ विशेष केसेस में ही किया जा सकता है। यदि आप की सुनने की क्षमता कम हो गई है, तो आपको डॉक्टर नॉइस प्रोटेक्शन की सलाह दे सकते हैं।
अकूस्टिक ट्रॉमा में यदि हियरिंग लॉस (Hearing loss) होता है, तो उसे दोबारा ठीक नहीं किया जा सकता, इसीलिए अपने कानों की पूरी तरह से देखभाल करना और तेज आवाजों से अपने कानों को बचा कर रखना बेहद जरूरी है।