के द्वारा एक्स्पर्टली रिव्यूड डॉ. पूजा दाफळ · Hello Swasthya
अक्सर देखा गया है कि किडनी में पथरी होने पर उसके आकार के आधार पर ही ऑपरेशन किया जाता है। लेकिन जब पथरी होना शुरू हुआ रहता है, तभी दवा दे कर पथरी को मूत्र मार्ग से निकालने की कोशिश की जाती है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग 12 फीसदी लोग किडनी में स्टोन की समस्या से जूझ रहे हैं। कई बार लोग डर जाते हैं कि किडनी स्टोन जानलेवा ना हो जाए। डरने जैसी कोई बात नहीं है, बल्कि आपको अपना इलाज पूरी तरह से करना चाहिए। इसके लिए अगर आप चाहें तो पथरी का आयुर्वेदिक इलाज भी कर सकते हैं। क्योंकि किडनी स्टोन का आयुर्वेदिक इलाज कई तरह की जड़ी-बूटियों, थेरिपी और औषधियों से किया जाता है।
किडनी स्टोन या पथरी तब होता है, जब किडनी में कैल्शियम और ऑक्सालेट जैसे कई तत्व इक्ट्ठा या जमा हो जाते हैं, तो वो कंकड या स्टोन के रूप में बदल जाते हैं। इसे ही स्टोन यानी कि पथरी की बीमारी कहा जाता है। किडनी स्टोन से बचने के लिए डॉक्टर्स ऐसी चीजें खाने से मना कर देते हैं, जिनमें ऑक्सालेट, यूरिक एसिड, कैल्शियम की मात्रा अधिक पाई जाती है, जैसेः टमाटर, बैंगन आदि। किडनी स्टोन लगभग चार प्रकार के होते हैं।
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किडनी स्टोन मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं। किस चीज के एकत्र होने से किडनी स्टोन बन रहा है, इसी आधार पर ही किडनी स्टोन को बांटा गया है :
सिस्टाइन स्टोन (Cystine Stones)
हमारे मूत्र के साथ एक अवयव सिस्टाइन भी निकलता है। जिसकी मात्रा ज्यादा होने पर वह किडनी में स्टोन के रूप में इक्ट्ठा होने लगता है। जिसके कारण ही सिस्टाइन स्टोन हो जाता है। वहीं, सिस्टाइन स्टोन काफी रेयर किडनी स्टोन है।
यूरिक एसिड स्टोन (Uric Acid Stones)
यूरिक एसिड हमारे लिवर से निकलने वाला एसिड है, जो मूत्र के द्वारा हमारे शरीर से बाहर निकलता है। लेकिन जब शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो वह स्टोन का रूप ले लेता है। इससे ही किडनी स्टोन बन जाती है।
कैल्शियम ऑक्सालेट स्टोन (Calcium Oxalate Stones)
कैल्शियम ऑक्सालेट स्टोन किडनी में ऑक्सालेट के कणों या स्टोन के रूप में एकत्र होने के कारण हो जाते हैं। ये किडनी स्टोन का एक सामान्य रूप है, जो ज्यादातर लोगों में पाया जाता है।
कैल्शियम फास्फेट स्टोन (Calcium Phosphate Stones)
किडनी में जब फास्फेट की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो वह बड़े कणों के रूप में एकत्र हो जाती है। ऐसे में किडनी में दर्द और समस्या पैदा होने लगती है। कैल्शियम फास्फेट स्टोन किडनी स्टोन का सबसे सामान्य प्रकार है।
आयुर्वेद में किडनी में पथरी को अश्मरी के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद में किडनी में पथरी होने के लिए माना गया है कि पेट से हो कर ही ये समस्या किडनी तक पहुंचती है। जिससे शरीर में बढ़ा हुआ यूरिक एसिड किडनी में जमा होने लगता है। आयुर्वेद के अनुसार किडनी में पथरी होने का मुख्य कारण कफ दोष में असंतुलन को माना गया है। आयुर्वेद में भी किडनी की पथरी को चार भागों में बांटा गया है :
आयुर्वेद में किडनी स्टोन की अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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किडनी में पथरी होने पर लक्षण में पेशाब करने में गंभीर दर्द (मूत्र शूल) होता है। इसके अलावा अन्य सामान्य लक्षण भी शामिल हैं:
यदि स्टोन संक्रमण के कारण बनता है, तो दूसरे लक्षण भी दिख सकते हैं जैसे,
किडनी स्टोन के अन्य लक्षणों की जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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किडनी में बनने वाले यूरिन में कैल्शियम, सिस्टीन, यूरिक एसिड, या फॉस्फेट, मैग्नीशियम और अमोनियम का मिश्रण (स्ट्रूवाइट) की मात्रा अधिक हो जाती है। जिस कारण से किडनी में स्टोन बन सकते हैं। ज्यादा प्रोटीन की मात्रा आहार के द्वारा लेने से और बहुत कम पानी पीने से पथरी होने का रिस्क बढ़ जाता है। लगभग 85% किडनी की पथरी कैल्शियम से बनती है।
किडनी की पथरी का आयुर्वेदिक इलाज थेरिपी, जड़ी-बूटी और औषधियों की मदद से किया जाता है :
किडनी की पथरी का आयुर्वेदिक इलाज निम्न कर्म के द्वारा की जाती है :
स्वेदन कर्म
किडनी की पथरी का आयुर्वेदिक इलाज स्वेदन कर्म के द्वारा किया जाता है। इसमें व्यक्ति को तेल या भाप की सहायता से शरीर से पसीना निकलवाया जाता है जिससे शरीर में वात का संतुलन हो सके और यह किसी भी तरह से शरीर में कोई समस्या ना उत्पन्न कर सके। इस कर्म में पसीने के द्वारा बॉडी डिटॉक्स होता है।
विरेचन कर्म
विरेचन कर्म ब्लड द्वारा या मल के द्वारा शरीर को डिटॉक्स करने की आयुर्वेदिक प्रक्रिया है। जिसमें जड़ी-बूटियों के द्वारा मल निष्कासन की प्रक्रिया कराई जाती है। इससे आपके पेट में मौजूद अम्ल निकल जाता है और एसिडिटी की समस्या से निजात मिलती है। वहीं, ब्लड निकाल कर विरेचन कर्म कराने के लिए जोंक का सहारा लिया जाता है। जिसे व्यक्ति के पेट पर रख कर ब्लड को सक कराया जाता है, इसके बाद फिर जब जोंक पर्याप्त मात्रा में ब्लड को चूस लेती हैं तो उन पर हल्दी डाल कर उन्हें मरीज की त्वचा से अलग किया जाता है। विरेचन कर्म कराने से शरीर में मूत्र निष्कासन दुरुस्त होता है और वात दोष में राहत मिलती है।
वमन कर्म
वमन कर्म, पंचकर्म का एक हिस्सा है। जिसमें किडनी की पथरी से ग्रसित व्यक्ति को उल्टी कराई जाती है, जिससे उसके पेट के अंदर से उल्टी के जरिए पथरी बनने के कारक, जैसे- कैल्शियम, ऑक्सालेट आदि की अधिक मात्रा बाहर निकल जाए। इसके लिए वच, नीम, काला नमक, परवल, कैलेमस का पाउडर आदि जड़ी बूटियों का सेवन कराया जाता है। जिसका सेवन करने से उल्टी होती है।
बस्ती कर्म
बस्ती कर्म आयुर्वेद में किया जाने वाला एनिमा है। एनिमा को मल मार्ग में डाल कर मलाशय से सारा मल बाहर निकालने के लिए उपयोग में लाया जाता है। एनिमा लगाने से शरीर में से सभी अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। जिससे शरीर में किसी भी प्रकार का अपशिष्ट पदार्थ शेष ना रह जाए। बस्ती कर्म में जड़ी-बूटियों की मदद से मल त्याग कराया जाता है। इससे वात संतुलित होता है और किडनी में पथरी से राहत मिलती है।
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किडनी की पथरी का आयुर्वेदिक इलाज निम्न जड़ी-बूटियों के द्वारा की जाती है :
कुलथी
कुलथी को किडनी की पथरी का रामबाण इलाज माना जाता है। इसलिए ज्यादातर वैद्य या डॉक्टर कुलथी को पथरी का आयुर्वेदिक इलाज करने के लिए उपयोग करते हैं। कुलथी को काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। कुलथी यूरीन को बढ़ावा देते हैं, जिससे पेशाब की मदद से पथरी शरीर के बाहर निकल जाए। कुलथी के बीजों का उपयोग पाउडर के रूप में किया जाता है।
गोखरू
गोखरू एक प्रकार की दर्द निवारक जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग किडनी में पथरी के कारण होने वाले दर्द में किया जाता है। इसके अलावा ये एक मूत्रवर्धक भी है, जो पेशाब में खून आने और दर्द जैसी समस्या को कम करता है। गोखरू का काढ़ा या चूर्ण बना कर सेवन करने से किडनी स्टोन में आराम मिलता है।
पाषाणभेद
पाषाणभेद एक प्रकार की जड़ी-बूटी होती है, जो हिमालय पर पाई जाती है। इस जड़-बूटी का नाम पाषाणभेद इसलिए पड़ा है, क्योंकि ये शरीर में बनने वाली पथरी को भेद सकती है, यानी कि ठीक कर सकता है। पाषाणभेद राइजोम्स होता है, जो शरीर में यूरिक एसिड को नियंत्रित करता है। इसके अलावा पथरी को तोड़ कर मूत्र मार्ग से बाहर निकालने में मददगार साबित होता है। पाषाणभेद का काढ़ा बना कर पीने से पथरी ठीक हो सकती है। लेकिन इस जड़ी-बूटी का प्रयोग डॉक्टर के दिशा-निर्देश पर करें।
पुनर्नवा
पुनर्नवा की जड़ का प्रयोग किडनी स्टोन के इलाज में किया जाता है। पुनर्नवा का अर्क या काढ़ा शहद या गुड़ के साथ मिला कर सेवन करना चाहिए। पुनर्नवा का उपयोग पित्त दोष के लिए किया जाता है। ऐसे में ये शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालता है।
नारियल का फूल
नारियल के फूल को 12 मिलीलीटर पानी में पीस कर 0.5 ग्राम यवक्षार के साथ मिला कर सेवन करने से भी पथरी में राहत मिलती है।
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किडनी की पथरी का आयुर्वेदिक इलाज निम्न औषधियों के द्वारा की जाती है :
यवक्षार
यवक्षार आयुर्वेदिक दवा होने के साथ ही प्राकृतिक रूप से कई तरह के केमिकल से युक्त दवा है। यवक्षार में पोटैशियम सल्फेट, पोटैशियम कार्बोनेट, पोटैशियम बाइकार्बोनेट, पोटैशियम क्लोराइड आदि का मिश्रण पाया जाता है। पोटैशियम के ये सभी कम्पाउंड एलकेलाइजर के रूप में काम करते हैं। ये एल्केलाइजर किडनी स्टोन को तोड़ कर मूत्र मार्ग से बाहर निकलने में मदद करता है। इसके साथ ही इसमें जौ का क्षारीय रूप मौजूद होता है। ये किडनी में होने वाले दर्द को भी कम करता है।
चंद्रप्रभा वटी
चंद्रप्रभा वटी में लगभग 70 से अधिक जड़ी-बूटियां मिली होती है। चंद्रप्रभा वटी टैबलेट के रूप में बाजार में उपलब्ध है। इसमें कपूर, शिलाजीत, अरंडी, गुग्गुल, वच आदि जड़ी-बूटियां मिली होती है। ये पथरी के कारण पेशाब में होने वाले दर्द को कम करता है।
गोखरू गुग्गुल
गोखरू गुग्गुल में गोखरू, गुग्गुल, त्रिफला आदि जड़ी-बूटियां मिली होती हैं। ये दवा मूत्रवर्द्धक के रूप में इस्तेमाल होती है, जिससे पथरी मूत्र मार्ग से होते हुए बाहर निकल जाता है।
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आयुर्वेद के अनुसार पथरी के लिए डायट और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत जरूरी है। हेल्दी लाइफ स्टाइल और हेल्दी खाने के लिए :
क्या करें?
क्या ना करें?
पथरी का आयुर्वेदिक इलाज आप ऊपर बताए गए तरीकों से कर सकते हैं। लेकिन आपको ध्यान देना होगा कि आयुर्वेदिक औषधियां और इलाज खुद से करने से भी सकारात्मक प्रभाव नहीं आ सकते हैं। इसलिए आप जब भी पथरी का आयुर्वेदिक इलाज के बारे में सोचें तो डॉक्टर का परामर्श जरूर ले लें। उम्मीद करते हैं कि आपके लिए पथरी का आयुर्वेदिक इलाज की जानकारी बहुत मददगार साबित होगी।
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