परिचय
लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस (Lumbar spinal stenosis) क्या है?
हमारी पीठ और पैर के दर्द का एक आम कारण रीढ़ की हड्डी का स्टेनोसिस होता है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढती जाती हैं वैसे वैसे हमारे रीढ़ की हड्डियों में भी बदलाव होता जाता है। बढती उम्र के साथ ही इन हड्डियों में रगड़ के कारण रीढ़ की हड्डी की नलिका (Canal) संकुचित हो जाती है, इस स्थिति को स्पाइनल स्टेनोसिस कहा जाता है।
50 वर्ष की आयु तक 95% लोगों में रीढ़ की हड्डी से सम्बन्धित इस समस्या का होना लाजमी है। स्पाइनल स्टेनोसिस सबसे अधिक 60 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में होता है। लोअर पेन की समस्या पुरुषों और महिलाओं में समान रूप से होता है।
बहुत ही कम संख्या में लोग पीठ की समस्याओं के साथ पैदा होते हैं, जो कमर के निचले हिस्से से सम्बन्धित रीढ़ की हड्डी के स्टेनोसिस में विकसित होते हैं। इसे जन्मजात स्पाइनल स्टेनोसिस (Lumbar spinal stenosis) के रूप में भी जाना जाता है। यह पुरुषों में सबसे अधिक बार होता है। आमतौर पर 30 और 50 की उम्र के बीच लोग इनके लक्षणों को नोटिस करते हैं।
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कारण
लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस का कारण क्या हैं? (Cause of Lumbar spinal stenosis)
लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस का सबसे आम कारण गठिया है। गठिया शरीर में किसी भी जोड़ों को नुकसान पंहुचा कर हमें तकलीफ दे सकता है |
रीढ़ (Spine) में गठिया के होने से डिस्क नष्ट होने के साथ साथ पानी की मात्र खोने लगता है, बच्चों और वयस्कों में डिस्क में पानी की मात्रा अधिक होती है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी डिस्क सूखने लगती है और कमजोर पड़ने लगती है। इस समस्या के कारण डिस्क में गैप या डिस्क वाली जगह पर हड्डियों से बनी गाँठ के बनने की शिकायत शुरू होने लगती है |
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पीठ के निचले हिस्से में गठिया के होने का एक कारण जोड़ों के चारों ओर स्नायुबंधन (ligaments) के आकार में वृद्धि होना भी हैं। जिस कारण नसों के लिए जगह कम हो जाती है। एक बार रीढ़ की नसों को काम करने के लिए जगह कम पड़ जाती है तो नसों में दबाव और दर्द जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
लक्षण
लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस के लक्षण (Symptoms of Lumbar spinal stenosis) हैं?
लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस से पीड़ित ब्यक्ति निम्न तरह के लक्षणों को महसूस कर सकता है-
पीठ दर्द– लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस वाले लोगों को पीठ दर्द (Back pain) हो भी या नहीं भी हो सकता है, यह गठिया होने वाली जगह के आधार पर निर्भर करता है।
नितंबों या पैरों में जलन– रीढ़ की नसों पर दबाव से उन जगहों पर दर्द हो सकता है, जहाँ से तंत्रिकाएं हो कर गुजरती हैं।यह आमतौर पर नितंबों के आस पास शुरू होता है और पैरों तक अपना असर दिखता है। जैसे-जैसे यह आगे बढ़ता है वैसे वैसे पैर में दर्द और जलन की शिकायत हो सकती है।
नितंब या पैरों में सुन्नता या झुनझुनी- जैसे-जैसे तंत्रिका (नसों) पर दबाव बढ़ता है, अकड़न और झुनझुनी अक्सर जलन व दर्द के साथ होती है। हालांकि सभी रोगियों को जलन, सुन्नता और झुनझुनी दोनों एक साथ नहीं होते हैं ।
पैरों में कमजोरी (Foot drop) – एक बार दबाव क्रिटिकल स्तर तक पहुँच जाता है, तो कमजोरी एक या दोनों पैरों में हो सकती है। कुछ रोगियों के पैर में दर्द होता है, या ऐसा महसूस होता है कि उनका पैर चलते समय जमीन पर फिसल जा रहा हो ।
आगे झुकने या बैठने के साथ कम दर्द- कमर से सम्बन्धित रीढ़ के अध्ययन से पता चलता है कि आगे की तरफ झुकाव की स्थिति तंत्रिकाओं (नसों) के लिए निर्धारित स्थान को बढ़ा सकता है। कई रोगियों को आगे की तरफ झुकने और बैठने की वजह से कुछ राहत मिलती है। आमतौर पर सीधे खड़े होने और चलने से यह दर्द और भी गंभीर हो जाता है ।
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चिकित्सीय परिक्षण
मेडिकल इतिहास और शारीरिक परीक्षा
डाक्टर द्वारा आपके लक्षणों और चिकित्सा के इतिहास को जानने के बाद, आपका डॉक्टर आपकी पीठ की जांच करेगा। जिसमे आपकी पीठ का बारिकी से निरीक्षण और पीठ के अलग-अलग हिस्सों को दबाने के साथ साथ आगे और पीछे की तरफ झुका कर देखता है कि दर्द किन किन हिस्सों में है।
इमेजिंग टेस्ट
कुछ अन्य परीक्षण जो आपके डॉक्टर को इस रोग की पुष्टि करने में मदद कर सकते हैं, जिसमे निम्न परिक्षण शामिल हैं:
एक्स-रे- हालांकि हम एक्स-रे (X-ray) की सहायता से हम केवल हड्डियों की जांच कर करते हैं, लेकिन अगर आपको लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस होने का संदेह है तो एक्स-रे के द्वारा डाक्टर को इसकी पहचान करने में मदद मिल सकती है । एक्स-रे के द्वारा हड्डियों में होने वाले बदलाओं को भी देख सकते हैं | आगे और पीछे की ओर झुका कर लिए गए एक्स-रे से हमारेजोड़ों में होने वाली “अस्थिरता’ (बदलाव) को भी देखा जा सकता है । स्पोंडिलोलिस्थीसिस (Spondylolisthesis ) कहा जाता है।
Magnetic resonance imaging (MRI)- इसके द्वारा ऊतकों की अच्छी तरह से जांच लिया जा सकता है चाहे वह कितनी छोटी और सूक्ष्म ही क्यों न हों जैसे मांसपेशियों, डिस्क, नसों और रीढ़ की हड्डी की।
कंप्यूटेड टोमोग्राफी (CT स्कैन)- CT स्कैन हमारे रीढ़ की क्रॉस-सेक्शन इमेज को बना सकता है। इस प्रक्रिया में नसों को अधिक स्पष्ट रूप से दिखाने के लिए डाई को रीढ़ में इंजेक्ट किया जाता है, जिससे डॉक्टर को यह जानने में मदद मिल सकता है कि कहीं नस में संकुचित (दब) तो नही रहा है।
उपचार
नॉनसर्जिकल ट्रीटमेंट
नॉनसर्जिकल ट्रीटमेंट ऑप्शन फंक्शन को रिस्टोर करने और दर्द से राहत देने पर फोकस करता हैं। हालांकि यह विधि रीढ़ की हड्डी के कैनाल (Canal) की संकीर्णता में सुधार नहीं करती हैं, इससे पीड़ित लोगो की माने तो इस तरह के उपचार से कुछ राहत मिल सकती है ।
भौतिक चिकित्सा (Physical therapy)- स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज, मसाज से पेट के हिस्सों के साथ साथ कमर से सम्बन्धित क्षेत्रों को भी आराम मिलता है।
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कमर का कर्षण(खीचना) (Lumbar traction)- हालांकि यह कुछ रोगियों में सहायक हो सकता है, लेकिन कर्षण के बहुत सीमित परिणाम हैं। इसकी प्रभावशीलता (असर) का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। यह एक प्रकार से कमर से जुड़े कशेरुकाओं पर एक समान बल लगाने की प्रक्रिया है।
एंटी इंफ्लेमेटरी मेडिकेशन(Anti-inflammatory medications)- लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस रीढ़ की हड्डी पर दबाव के कारण होता है, तंत्रिका (nerve) के चारों तरफ सूजन को कम करने से दर्द से राहत मिल सकती है। गैर-स्टेरायडल दवाएं (NSAIDs) शुरू में तो दर्द से राहत प्रदान करती हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद इसका असर कम हो जाता है |
अधिकांश लोग एस्पिरिन और इबुप्रोफेन (Aspirin and ibuprofen) जैसे प्रतिबंधित दवाओं के नुक्सान से भली भाँती परिचित हैं। लेकिन तब भी इनका इस्तेमाल करते हैं, इन दवाओं का उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए, नहीं तो इसकी वजह से पेट में अल्सर भी बन सकता है ।
एक्यूपंक्चर(Acupuncture)। लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस के दर्द के उपचार में एक्यूपंक्चर कुछ हद तक असरदार होने के साथ साथ यह बहुत सुरक्षित भी हो सकता है, लेकिन इस इस विधि से ज्यादे दिनों तक फायदा नही मिल सकता है |
कायरोप्रैक्टिक मैनीपुलेशन (Chiropractic manipulation)- कायरोप्रैक्टिक मैनीपुलेशन आम तौर पर तो सुरक्षित होता है और लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस के दर्द को दूर करने में मदद कर सकता है। यदि किसी मरीज को ऑस्टियोपोरोसिस या डिस्क हर्नियेशन है तो उसका अच्छी तरह से देखभाल किया जाना चाहिए।
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उपचार
शल्य चिकित्सा (Surgical Treatment)
लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस (lumbar spinal stenosis) के इलाज के लिए दो मुख्य सर्जिकल विकल्प हैं: लैमिनेक्टॉमी और स्पाइनल फ्यूजन। दोनों विकल्पों में अधिक दर्द से राहत मिल सकती है।
लैमिनेक्टॉमी(Laminectomy)- स्पाइनल स्टेनोसिस के मामले में मेरूदंड (Spinal column) संकरी हो जाता है, जिससे रीढ़ की हड्डी और साथ ही नसों की जड़ों पर दबाव पड़ता है। स्पाइनल स्टेनोसिस रीढ़ की हड्डी के सिकुड़ने, रीढ़ गठिया (Spine arthritis), जन्मजात दोष, हड्डियों और स्नायुओं (Ligaments) की सूजन, एकोंड्रॉप्लासिया (Achondroplasia; बौनापन), रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर, डिस्क खिसकना (Slipped disc) और किसी गहरी चोट के परिणामस्वरूप विकसित होता है। जिससे निजात पाने के लिए, लैमिनेक्टॉमी का उपयोग किया जाता है |
स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी- इस सर्जरी में इफेक्टिव हड्डी को जोड़ने के लिए मैटल की एक रॉड का इस्तेमाल किया जाता है। फ्यूजन सर्जरी में मरीज की रीढ़ के दोनों तरफ मैटल की रॉड लगा दी जाती है जिसे बाद में हड्डी के एक टुकड़े से जोड़ दिया जाता है। इससे रीढ़ के बीच की हड्डी धीरे-धीरे विकसित हो जाती है। इस प्रक्रिया को स्पाइनल फ्यूजन कहते हैं। जब यह प्रोसीजर चल रहा होता है तो स्पाइनल के दोनों तरफ लगी रॉड की वजह से हड्डी एक दम सीधी रहती है।
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जोखिम
सर्जरी से होने वाले जोखिम
नसों को ढकने वाली झिल्लियों में छेद या फटने के डर
हड्डी जुड़ने में विफलता
हड्डियों के बीच पकड़ की कमी
तंत्रिका में चोट
आगे की सर्जरी की जरूरत
लक्षण और दर्द के राहत में कमी
लक्षणों की वापसी
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें।