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Prepatellar bursitis: प्रीपेटेलर बर्साइटिस  क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और इलाज

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Sharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 28/05/2020

Prepatellar bursitis: प्रीपेटेलर बर्साइटिस  क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और इलाज

परिचय

प्रीपेटेलर बर्साइटिस क्या है?

बर्सा एक छोटी, जेली जैसे थैली होती है। ये थैली कंधे, कोहनी, कूल्हे, घुटने और एड़ी में स्थित होती हैं। इन थैलियों में तरल पदार्थ भरा होता है जो हड्डियों और नरम ऊतकों के बीच में होता है। यह जोड़ों वाली जगह पर घर्षण को कम करने में कुशन की तरह काम करते हैं। प्रीपेटेलर बर्साइटिस एक प्रकार की बर्सा की सूजन है, जो घुटनों या जोड़ों में होती है। यह तब होता है जब बर्सा पूरी तरह से घिस जाता है। इससे बहुत अधिक तरल पदार्थ निकलता है। जिसके कारण सूजन हो जाती है। यह सूजन घुटने के आस-पास के हिस्सों पर दबाव डालती है।

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इस बीमारी का इलाज संभव है। इलाज के बाद मरीज को अपने घुटनों पर ज्यादा दबाव नहीं डालना चाहिए। जो लोग स्पोर्ट्स में एक्टिव रहते हैं उन्हें नीपैड का इस्तेमला करना चाहिए। इससे वे बर्साइटिस से बच सकते हैं। जो लोग घुटने के बल चलने की कोशिश करते हैं उन्हें ये समस्या ज्यादा होती है। प्रीपेटेलर बर्साइटिस तब भी हो जाता है जब इम्यून सिस्टम पर दबाव पड़ता है। इससे बर्सा बैक्टीरिया से संक्रमित हो जाते हैं, इसे सेप्टिक बर्साइटिस कहते हैं। प्रीपेटेलर बर्साइटिस घुटनों में होते हैं।

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कारण

प्रीपेटेलर बर्साइटिस होने का कारण क्या है?

प्रीपेटेलर बर्साइटिस होने के कई कारण हो सकते हैं। यह अक्सर घुटने में लगातार दबाव पड़ने के कारण होता है। प्लंबर, छत बनाने वाले, कालीन बनाने वाले, कोयला खनिज में काम करने वाले और बगीचों में काम करने वाले लोगों में प्रीपेटेलेर की समस्या ज्यादा देखी जाती है। क्योंकि इन लोगों के काम में घुटने पर ज्यादा दबाव पड़ता है। इसके अलावा स्पोर्ट्स पर्सन और एथलीट्स को भी इन समस्याओं से गुजरना पड़ता है। क्योंकि खेल खेलते समय वे कई बार गिर जाते हैं या उनके घुटनों पर चोट लग जाती है। ऐसे में प्रीपेटेलर बर्साइटिस की समस्या पैदा होती है। इन खेलों में फुटबॉल, कुश्ती या बास्केटबॉल शामिल हैं।

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जानते हैं प्रीपेटेलर बर्साइटिस के अन्य कारण:

कोई पुरानी चोट- घुटने पर चोट लगने से बर्सा को नुकसान पहुंचता है। जिससे बर्सा रक्त से भर जाएगा और फिर घुटनों में सूजन होना शुरू हो जाती है। हालांकि शरीर रक्त को फिर से अवशोषित कर लेता है लेकिन बर्सा में सूजन बनी रह सकती है। इससे घुटने में बर्साइटिस के लक्षण दिखने लगते हैं।

लंबे समय तक घुटने टेकना- बर्साइटिस अक्सर “मिनी-ट्रॉमा’ के कारण होता है। जो गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है। अगर आप कालीन पर भी बार-बार घुटने टेकते हैं तो भी आपमें प्रीपेटेलर बर्साइटिस के लक्षण दिखाई दे सकते हैं।

अन्य समस्याएं-ऑस्टियोअर्थराइटिस, रयूमेटाइड गठिया, गाउट या स्यूडो गाउट जैसी बीमारी झेल रहे लोगों में भी बर्साइटिस की समस्या हो सकती है। इन बीमारियों का उपचार होने के बाद बर्साइटिस की समस्या भी ठीक हो सकती है।

प्रीपेटेलर बर्साइटिस जीवाणु संक्रमण के कारण भी हो सकता है। अगर घुटने में चोट हो, किसी कीड़े ने काटा हो या गिरने से खरोंच आई हो तो बैक्टीरिया बर्सा थैली के अंदर पहुंच सकते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते हैं। इसे संक्रामक यानी सेप्टिक बर्साइटिस कहा जाता है। संक्रामक बर्साइटिस आम समस्या नहीं है, लेकिन गंभीर है। ऐसे में मरीज को तुरंत इलाज की जरूरत होती है।

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लक्षण

प्रीपेटेलर बर्साइटिस के लक्षण क्या हैं?

  • प्रीपेटेलर बर्साइटिस होने पर घुटने में दर्द और सूजन होना एक आम लक्षण है। इसमें घुटने कोमल हो जाते हैं और सूजन के कारण घुटने को जमीन पर रखने में परेशानी होती है।
  • इसके अलावा घुटने के ऊपर की त्वचा के नीचे छोटे गांठ महसूस किए जा सकते हैं। कभी-कभी ये गांठ महसूस होती है। ये गांठ बहुत कोमल हो सकती हैं। ये गांठ बरसा ऊतक की मोटी तह होती हैं जो सूजन की वजह से बनती हैं।
  • बर्सा थैली में सूजन होने पर यह तरल पदार्थ से भर जाती है। जितना ज्यादा घुटने पर दबाव पड़ता है उतनी ही ये तरल पदार्थ से भरती जाती है और सूजन भी बढ़ जाती है। जो लोग जमीन पर घुटने टेककर ज्यादा काम करते हैं, उनका बर्सा बेहद मोटा हो जाता है। जैसे घुटने पर कोई नीपैड चढ़ा हो।
  • जब घुटनों में तेज चोट लगती है तो प्रीपेटेलर बर्साइटिस के लक्षण तुरंत नजर आने लगते हैं। लेकिन अगर बार—बार घुटने पर दबाव पड़ने से ये समस्या होती है तो लक्षण धीरे-धीरे दिखाई देते हैं।
  • इसके अलावा घुटने में दर्द हमेशा बना रह सकता है।
  • कभी-कभी बुखार भी महसूस हो सकता है। ऐसा सेप्टिक बर्साइटिस में होता है।
  • कभी-कभी घुटने में गांठ जैसी महसूसता हो सकती है।

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परीक्षण

प्रीपेटेलर बर्साइटिस का परीक्षण कैसे होता है?

  • प्रीपेटेलर बर्साइटिस का पता लगाने के लिए शारीरिक परीक्षण की जरूरत होती है।
  • ऐसे मामलों में चोट लगने के बाद तुरंत सूजन आ जाती है। ऐसे में डॉक्टर चोट की गहराई का पता लगाने के लिए एक्स-रे का सहारा लेते हैं। इससे पता चल जाता है कि kneecap में क्या समस्या है।
  • क्रोनिक बर्साइटिस का पता लगाने के लिए किसी भी विशेष परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। ये डॉक्टर जांच करके पता लगा लेते हैं।
  • अगर जांच में डॉक्टर यह पता नहीं लगा पाते कि बर्सा में संक्रमण हुआ है या नहीं। तो वे इंजेक्शन के माध्यम से बर्सा से तरल पदार्थ को निकालते हैं, जिसे लैब में टेस्ट किया जाता है। लैब में संक्रमण का पता चल जाता है।
  • सेप्टिक बर्साइटिस के लिए डॉक्टर मरीज को एंटिबायोटिक देते हैं।
  • इसके अलावा अगर डॉक्टर को मरीज के शरीर में व्हाइट ब्लड सेल्स कम लगते हैं तो भी सेप्टिक बर्साइटिस होने की संभावना हो सकती है।
  • साथ ही डॉक्टर ग्लूकोज लेवल भी टेस्ट करते हैं। इससे भी संक्रमण का पता चल जाता है।
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इलाज

प्रीपेटेलर बर्साइटिस का इलाज क्या है?

  • प्रीपेटेलर बर्साइटिस के कुछ इलाज बिना सर्जरी के भी हो सकते हैं।
  • बिना सर्जरी के किया गया इलाज ज्यादा असरदार होता है। ये इलाज तभी किया जा सकता है ​जब बर्सा में सिर्फ सूजन हो।
  • सेप्टिक बर्साइटिस होने पर सर्जरी करना जरूरी हो जाता है।
  • सूजन होने पर घुटनों पर ज्यादा दबाव ना डालें। इससे लक्षण बढ़ सकते हैं। इलाज होने के दौरान ज्यादा चलने-फिरने से बचें।
  • ज्यादा व्यायाम ना करें, खेले-कूदे नहीं और साइकिल चलाने से भी बचें।
  • दिन में 3 या 4 बार 20 मिनट के लिए घुटने पर बर्फ से सिकाई करें। इससे सूजन कम होगी और दर्द में भी आराम मिलेगा।
  • नेपरोक्सन और आइबूप्रोफेन जैसी दवाएं दर्द से राहत दे सकती हैं और सूजन को को कम करती हैं।
  • यदि सूजन और दर्द दवाई देने के बाद भी कम नहीं हो रहा है तो डॉक्टर इंजेक्सन बर्से में जमा हुए तरल पदार्थ को निकाल सकते हैं।
  • सेप्टिक बर्साइटिस का शुरू में एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज किया जाता है।
  • इलाज के बाद भी अगर सूजन कम नहीं हो रही है तो डॉक्टर सर्जरी करने की सलाह देते हैं। इससे घुटनों में फिर से लचीलापन आ जाएगा।

। बेहतर जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श करें।

डिस्क्लेमर

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