के द्वारा एक्स्पर्टली रिव्यूड डॉ. पूजा दाफळ · Hello Swasthya
मस्तिष्क में सूजन को इंसेफेलाइटिस कहा जाता है। यह बीमारी वायरल इंफेक्शन के कारण होती है। कुछ रेयर मामलों में यह बैक्टीरिया या कवक द्वारा भी होती है। कभी कभी शरीर का इम्यून सिस्टम मस्तिष्क के ऊतकों पर अटैक कर देता है, इसकी वजह से भी इंसेफेलाइटिस की समस्या होती है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति गर्दन में ऐंठन, गुस्सा, चिड़चिड़ापन सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसे दिमागी बुखार के नाम से भी जाना जाता है.
इंसेफेलाइटिस दो प्रकार का होता है- प्राइमरी और सेकेंडरी। प्राइमरी इंसेफेलाइटिस में वायरस मस्तिष्क को सीधे प्रभावित करता है। जबकि सेकेंडरी इंसेफेलाइटिस तब होता है जब इंफेक्शन शरीर के किसी अन्य हिस्से से होते हुए मस्तिष्क में फैलता है। अगर समस्या जद बढ़ जाती है तो आपके लिए गंभीर स्थिति बन सकती है । इसलिए इसका समय रहते इलाज जरूरी है। इसके भी कुछ लक्षण होते हैं, जिसे ध्यान देने पर आप इसकी शुरूआती स्थिति को समझ सकते हैं।
इंसेफेलाइटिस एक रेयर ब्रेन डिसॉर्डर है। ये महिला और पुरुष दोनों में सामान प्रभाव डालता है। पूरी दुनिया में लाखों लोग इंसेफेलाइटिस से पीड़ित हैं। लगभग 15 प्रतिशत इंसेफेलाइटिस के मामले एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों में पाए जाते हैं। इंसेफेलाइटिस के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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इंसेफेलाइटिस के लक्षण अचानक दिखायी देते हैं और हल्के या गंभीर हो सकते हैं। हालांकि हर व्यक्ति में इस बीमारी के लक्षण अलग-अलग होते हैं। इंसेफेलाइटिस के ये लक्षण सामने आने आते हैं :
कभी-कभी कुछ लोगों में इसमें से कोई भी लक्षण सामने नहीं आते हैं और अचानक व्यक्ति कोमा में चला जाता है।
शिशुओं और छोटे बच्चों में इंसेफेलाइटिस के अलग लक्षण दिखायी देते हैं। बच्चों में इस बीमारी के लक्षण सामने आने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए
बच्चों में इंसेफेलाइटिस के ये लक्षण सामने आते हैं :
ऊपर बताएं गए लक्षणों में किसी भी लक्षण के सामने आने के बाद आप डॉक्टर से मिलें। हर किसी के शरीर पर इंसेफेलाइटिस अलग प्रभाव डाल सकता है। यदि मरीज बेहोश हो जाए या तेज सिरदर्द और बुखार से पीड़ित हो डॉक्टर को तुरंत दिखाएं। ज्यादा जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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इंसेफेलाइटिस मस्तिष्क में वायरल, फंगस और बैक्टीरिया के इंफेक्शन के कारण होता है। कई तरह के वायरस के इंफेक्शन से व्यक्ति इस बीमारी की चपेट में आता है। हर्पीस सिंपलेक्स वायरस, खसरा के वायरस, मच्छरों से फैलने वाले एर्बोवायरस और जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण भी यह बीमारी होती है। हालांकि इंसेफेलाइटिस के 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में बीमारी का सटीक कारण नहीं पता चल पाता है। इंसेफेलाइटिस बच्चों और बुजुर्गों एवं कमजोर इम्यून सिस्टम वाले व्यक्तियों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है।
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इंसेफेलाइटिस से पीड़ित मरीजों, विशेषरुप से बुजुर्गों को कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। शुरूआती चरण में ही इस बीमारी का इलाज न कराने से व्यक्ति कोमा में जा सकता है या उसकी मौत हो सकती है। इसके अलावा व्यक्ति को बहरापन, मिर्गी और यादाश्त में कमी की समस्या भी हो सकती है। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के रूप ना समझें। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
इंसेफेलाइटिस का पता लगाने के लिए डॉक्टर शरीर की जांच करते हैं और मरीज का स्वास्थ्य इतिहास भी देखते हैं। इस बीमारी को जानने के लिए कुछ टेस्ट कराए जाते हैं :
कुछ मरीजों में ब्रेन बायोप्सी के द्वारा इंसेफेलाइटिस का पता लगाया जाता है। बायोप्सी के लिए मरीज के ब्रेन टिश्यू का छोटा सा सैंपल लिया जाता है। हालांकि बायोप्सी तब की जाती है जब मरीज में इंसेफेलाइटिस के गंभीर लक्षण सामने आ रहे हों। जरूरत पड़ने पर डॉक्टरब्लड और यूरीन की जांच करते हैं। इससे मस्तिष्क में वायरस और अन्य इंफेक्शन का पता चलता है।
इंसेफेलाइटिस का कोई सटीक इलाज नहीं है। लेकिन, कुछ थेरिपी और दवाओं से व्यक्ति में इंसेफेलाइटिस के असर को कम किया जाता है। मांसपेशियों को नियंत्रित करने के लिए मरीज को स्पीच थेरिपी और व्यवहार कौशल में सुधार लाने के लिए साइकोथेरेपी दी जाती है। इंसेफेलाइटिस के लिए तीन तरह की मेडिकेशन की जाती है :
इसके अलावा ब्रेन की सूजन कम करने के लिए मरीज को कॉर्टिकोस्टीराइड दिया जाता है और उसे वेंटिलेशन पर रखा जाता है। बेचैनी और चिड़चिड़ापन दूर करने के लिए नींद की दवाएं दी जाती हैं। साथ ही डायट और जीवनशैली में बदलाव करने से भी इसका जोखिम कम होता है।
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अगर आपको इंसेफेलाइटिस है तो आपके डॉक्टर वह आहार बताएंगे जिसमें बहुत अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते हों। इसके साथ ही इंसेफेलाइटिस से बचने के लिए समय पर इंजेक्शन लगवाने की भी सलाह दी जाती है। मच्छरों से बचने के लिए घर के आसपास पानी जमा नहीं होने देना चाहिए और कपड़ों से पूरे शरीर को ढककर रखना चाहिए। इंसेफेलाइटिस होने पर आपको ये आहार लेना चाहिए:
इसके अलावा मरीज को नियमित मेडिटेशन और ब्रीदिंग एक्सरसाइज करने की सलाह दी जाती है। इस संबंध में आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि आपके स्वास्थ्य की स्थिति देख कर ही डॉक्टर आपको उपचार बता सकते हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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