लक्षण
पार्किंसंस रोग (Parkinson Disease) के लक्षण क्या है?
पार्किंसंस रोग के लक्षण हर व्यक्ति में अलग हो सकते हैं। शुरुआत में इसके लक्षण पर कोई खास ध्यान नहीं देता है। ज्यादातर इसके लक्षण शरीर के एक हिस्से पर नजर आने शुरू होते हैं। वक्त के साथ स्थिति खराब हो जाती है, शुरुआत में इस रोग के संकेत और लक्षण निम्न हो सकते हैं:
सूंघने की क्षमता में कमी (decreased ability to smell)
आमतौर पर लोगों को किसी भी चीज की गंध आसानी से आ जाती है, लेकिन पार्किंसंस रोग (Parkinson Disease) होने पर सूंघने की क्षमता में कमी हो जाती है। कुछ लोगों को गंध का ज्ञान नहीं हो पाता है।
कब्ज (constipation)
वैसे तो कब्ज कुछ लोगों में आम ही होता है, लेकिन पार्किंसंस रोग से पीड़ित व्यक्ति को कब्ज की समस्या परेशान करती रहती है।
आवाज बदल जाती है (voice changes)
इस रोग के कारण आवाज में परिवर्तन हो जाता है। आवाज का पिच कम से ज्यादा हो सकता है। कई बार स्वर के कम या फिर ज्यादा होने की वजह से सामने वाले व्यक्ति को बात समझने में दिक्कत हो सकती है।
छोटी, तंग लिखावट (small, cramped handwriting)
पार्किंसंस रोग के कारण हाथों में कंपकपी का एहसास होता है जिससे लिखावट में भी फर्क नजर आ सकता है। ऐसे लोगों को लिखने में दिक्कत आ सकती है।
कंपकंपी (tremor)
पार्किंसंस रोग के दौरान रोगी को कंपकंपी का एहसास हो सकता है। कंपकंपी आमतौर पर हाथों से शुरू होती है।
धीमी चाल (slow movement)
पार्किंसंस रोग के कारण शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं, जो पेशेंट के चलने की गति को भी प्रभावित कर सकते हैं। पीड़ित व्यक्ति को पैर घसीट कर भी चलना पड़ सकता है।
हाथ, पैर और धड़ की कठोरता (stiffness of arms, legs, and trunk)
हाथ, पैर और गले में अकड़न का एहसास हो सकता है। इसी कारण से दिनचर्या के अन्य काम को करने में भी दिक्कत महसूस हो सकती है। रोग से ग्रसित व्यक्ति को चलने के साथ ही बैलेंस बनाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही शरीर थोड़ा झुका हुआ सा महसूस हो सकता है।
पार्किंसंस रोग के चार मुख्य लक्षण होते हैं:
- हाथ, पैर, जबड़े या सिर में कंपन (Tremor in hands, arms, legs, jaw or head)
- अंगों और धड़ की कठोरता (Stiffness of the limbs and trunk)
- चाल धीरे होना (Slowness of movement)
- संतुलन बिगड़ना (Impaired balance)
कुछ लोगों में डिप्रेशन या भवानात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं। निगलने में दिक्कत, ठीक से बोल न पाना, यूरिन संबंधित परेशानियां, कब्ज, त्वचा रोग और नींद टूटना आदि भी इसके लक्षण हैं।
इस रोग की शुरुआत आमतौर से हाथ या उंगलियों की कंपन से होती है। हो सकता है आप जब आराम कर रहे हो तब आपके हाथों में कंपकपी हो जाए। वक्त के साथ इस रोग से ग्रसित लोगों के काम करने की क्षमता प्रभावित होने लगती है। इन लोगों को सरल सा काम करने में भी बहुत मेहनत करनी होती है। चलने की गति धीमी हो जाती है। यहां तक कि खड़े होने में भी कठिनाई महसूस होती है। लोग पैरों को घसीट कर चलने लगते हैं। कुछ लोगों के शरीर के किसी हिस्से की मांसपेशियों में अकड़न होने लगती है। इस बीमारी में शरीर झुक जाता है।
पार्किंसन रोग में कई लोगों की आवाज में परिवर्तन आ जाता है तो किसी की लिखावट बदल जाती है। लिखावट छोटी हो सकती है और लिखने में तकलीफ हो सकती है।
यदि आपको पार्किंसन रोग से जुड़ा कोई लक्षण नजर आता है तो बिना देरी करें डॉक्टर से कंसल्ट करें।
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कारण
पार्किंसंस रोग (Parkinson Disease) किन कारणों से होता है?
इस बारे में फोर्टिस हॉस्पिटल, मुलुंड की फिजिशियन एंड इंफेक्शन डिजीज स्पेशलिस्ट डा. अनीता मैथवे का कहना है कि रोग में मस्तिष्क में कुछ तंत्रिका कोशिकाएं धीरे-धीरे टूट जाती हैं या मर जाती हैं। कई लक्षण न्यूरॉन्स के नुकसान के कारण होते हैं जो आपके मस्तिष्क में डोपामीन नामक एक रासायन का उत्पादन करते हैं। जब डोपामीन का उत्पादन बंद हो जाता है और शरीर में उसका स्तर गिरने लगता है तो यह सामान्य मस्तिष्क गतिविधि का कारण बनता है। इस स्थिति में दिमाग शरीर के अलग-अलग अंगों पर नियंत्रण रख पाने में असक्षम होता है, जिससे पार्किंसंस रोग के लक्षण नजर आते हैं।
पार्किंसंस रोग के कारण अज्ञात हैं, लेकिन निम्न कारक इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं:
आपके जीन (genes): शोधकर्ताओं ने एक विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन की पहचान की है जो इस रोग का कारण बन सकता है।
पर्यावरण ट्रिगर (Environmental triggers): कुछ टॉक्सिन्स या पर्यावरणीय कारकों के संपर्क में आने से पार्किंसंस रोग का खतरा बढ़ सकता है।
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रिस्क फैक्टर्स को समझें
पार्किंसंस रोग (Parkinson Disease) के क्या जोखिम हैं?
इस बीमारी के जोखिम कारक निम्नलिखित हैं:
बढ़ती उम्र: बहुत कम होता है कि यह रोग युवाओं में देखा जाए। आमतौर पर यह बढ़ती उम्र में देखने को मिलता है। समय के साथ इसका जोखिम बढ़ता जाता है। सामान्य तौर पर यब बीमारी 60 या उससे अधिक उम्र में देखने को मिलती है।
पुरुषों को होता है ज्यादा रिस्क: महिलाओं की तुलना में यह रोग पुरुषों में ज्यादा देखने को मिलता है। कई शोध इस बात का समर्थन करते हैं, जिसमें अमेरिकी जर्नल एपिडेमियोलॉजी में बड़े अध्ययन शामिल हैं।
आनुवंशिकता: यदि आपके परिवार में किसी को यह रोग है तो आपको भी इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।
विषाक्त पदार्थ के संपर्क में आने से: वनस्पतिनाशकों और कीटनाशकों के बार बार संपर्क में आने से भी इस रोग के होने की संभावना अधिक होती है।
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निदान और उपचार
पार्किंसंस रोग (Parkinson Disease) का निदान कैसे किया जाता है?
इस रोग के परीक्षण के लिए वर्तमान में कोई जांच नहीं है। इसके लिए आपको न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाने की जरूरत होगी। डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री, लक्षणों के आधार पर इस रोगा का निदान करेंगे। आपके चिकित्सक इसके साथ हो रही अन्य परेशानियों को दूर करने के लिए परीक्षण कराने का सुझाव दे सकते हैं।
पार्किंसंस रोग (Parkinson Disease) का उपचार क्या है?
इस रोग को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन दवाओं के जरिए इसके लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। गंभीर मामलों में डॉक्टर सर्जरी रिकमेंड कर सकते हैं। डॉक्टर आपको ऐसी दवाएं लिख सकते है जो मस्तिष्क में डोपामीन की अपूर्ति को पूरा करती है।
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पार्किंसंस रोग (Parkinson Disease) में डायट का रखें विशेष ख्याल
पार्किंसंस रोग से पीड़ित व्यक्तियों को अपने खानपान का विशेष ख्याल रखना चाहिए। उन्हें खाने में एंटीऑक्सीडेंट फूड लेने चाहिए। एंटीऑक्सीडेंट फूड ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के साथ ही दिमाग को डैमेज होने से बचाते हैं।
खाने में ओमेगा 3 एस फूड को शामिल करना चाहिए। ऐसे फूड हार्ट के साथ ही ब्रेन के लिए भी हेल्दी होते हैं।
खाने में लाइम ग्रीन बींस (lime green beans) को शामिल करें।
पार्किंसंस रोग से पीड़ित व्यक्ति को खाने में डेयरी प्रोडक्ट को नहीं लेना चाहिए। साथ ही सैचुरेचेड फैट को भी अवॉयड करना चाहिए।
अगर खानपान पर विशेषतौर पर ध्यान दिया जाए तो पार्किंसंस रोग के बढ़ने की गति को रोकने में हेल्प मिलती है।
उपरोक्त दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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